ग़ज़ल
ग़ज़ल में फ़न, तख़य्युल, लफ़्ज़, लहजा कौन देखेगा
जहाँ सब बेसलीक़ा हों सलीक़ा कौन देखेगा
किसे है कारोबारे ज़ीस्त से फ़ुरसत घड़ी भर की
भला हर रोज़ दुनिया का तमाशा कौन देखेगा
सलामत माँ का साया है तो ये भी खुश नसीबी है
,न होगी माँ अगर बेटों का रस्ता कौन देखेगा
कहाँ दीवाने ग़ालिब और कहाँ मेरा सुकूने दिल
हो जब दरिया निगाहों में तो क़तरा कौन देखेगा
वो मज़दूरों पे चर्चा बैठकर ए सी में करते हैं
टपकता है जो माथे से पसीना कौन देखेगा
ये दुनिया है यहाँ तो हुस्न वालों की ज़रूरत है
तेरा उतरा हुआ ग़मगीन चेहरा कौन देखेगा
मेरी दाढ़ी मेरी टोपी तो तुमने देख ली लेकिन
मेरे दिल में बसा है जो तिरंगा कौन देखेगा
अगर है लीडरी का शौक खि़दमत का भी जज़्बा हो
यहाँ जम्हूरियत में शाही रूतबा कौन देखेगा
ये दुनिया अद्ल और इंसाफ़ से भर जाएगी इक दिन
सुख़नवर देखिये वो भी ज़माना कौन देखेगा
सुख़नवर हुसैन रायपुरी (छत्तीसगढ़)