हास्य और व्यंग्य के महारथी (पद्म श्री) डॉ. सुरेन्द्र दुबे
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति संयुक्त राज्य अमेरिका में भारतीय साहित्य-संस्कृति और अध्ययन की एक अग्रणी संस्था है। यह संस्था पिछले चार दशकों से उत्तरी अमेरिका के कई शहरों में मंचीय हिंदी कवि सम्मेलन की परम्परा को एक वार्षिक काव्य श्रंखला के रूप में मनाती आ रही है। समिति द्वारा हर साल आयोजित कविता के वाचिक उत्सव में भारत के शीर्ष कवियों को आमंत्रित किया जाता है।
~ऐसे ही शीर्ष कवियों में, पद्मश्री एवं डी. लिट् मानद उपाधि से विभूषित, अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से सम्मानित, विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त प्रतिष्ठित और प्रेरक कवि डॉ. सुरेन्द्र दुबे का नाम हिन्दी काव्य जगत में अग्रणी है। उनसे मेरा परिचय 1998 में हुआ जब वह अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति की वार्षिक काव्य श्रंखला में आमंत्रित कवि के रूप में जुड़े। तत्पश्चात, उनके हास्य काव्य के ठहाकों और विचारणीय व्यंग्य रचनाओं को सुनने तथा उनके सानिध्य का सौभाग्य 2009, 2017 व 2019 की काव्य श्रंखलाओं में भी प्राप्त हुआ। हिंदी साहित्य में किए गए उनके उल्लेखनीय योगदान का हम दिल से आदर करते हैं। मुझे प्रसन्नता है कि मैं डॉ. सुरेन्द्र दुबे के सम्मान स्वरूप यह पत्र लिखने का सुअवसर प्राप्त कर सका। उनका अभिनंदन करते हुए मैं स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ।
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डॉ. सुरेन्द्र दुबे, एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्होंने साहित्यिक जगत में अपनी अनूठी हास्य और व्यंग्य शैली से एक विशिष्ट स्थान बनाया है। उनकी साहित्यिक यात्रा में अनेक महत्वपूर्ण पड़ाव आए हैं। उन्होंने न केवल भारत में, बल्कि अमेरिका सहित विदेशों में भी अपनी काव्य प्रतिभा का लोहा मनवाया है। उनकी कविताओं का अनुवाद कई भाषाओं में किया गया है और वे विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक मंचों पर सम्मानित हो चुके हैं।
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पूर्व सचिव, डॉ. दुबे का व्यक्तित्व और कृतित्व हमें यह सिखाता है कि कैसे एक व्यक्ति अपनी कला और साहित्य के माध्यम से समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है। उनकी हास्य व्यंग्य शैली न केवल मनोरंजन करती है, बल्कि समाज की समस्याओं पर भी गहरी चोट करती है। उनकी कविताओं के द्वारा हमें वर्तमान समय का चित्र चलचित्र की भाँति चलता हुआ दिखाई देता है।
डॉ. सुरेन्द्र दुबे का जीवन और कृतित्व साहित्यिक जगत के लिए एक प्रेरणा स्रोत है। उनके प्रतिबद्ध साहित्यिक योगदान को देखते हुए, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि डॉ. सुरेन्द्र दुबे साहित्यिक जगत के एक अनमोल रत्न हैं। उनके ७२वें जन्म दिवस पर यह अभिनंदन ग्रंथ उनके प्रति हमारी श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है। मैं शुभकामनाओं सहित उनकी निरंतर सफलता की कामना करता हूँ तथा उनके शतायु और यशस्वी होने की प्रार्थना करता हूँ।
आलोक मिश्रा, चेअरमैन
अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति, संयुक्त राज्य अमेरिका