तुर-तुरिया
पानी के झरने से ” तुर-तुर ” की आवाज़ पैदा होती है और इसी आवाज़ को सुनकर शब्द गढ़ लिया जाता है – तुरतुरिया।तब किसे पता था कि इसी जगह पर आदिकवि वाल्मीकि का आश्रम रहा होगा और लव और कुश नें इसी जगह पर पहली बार माता सीता को कहा होगा -माँ !
कविता से प्रेम करने वाले हर किसी के लिए तुरतुरिया खास है।विश्व की पहली कविता यहीं पर उपजी,ऐसी मान्यता है।यहाँ का हरा-भरा शांत वातावरण हमको यह महसूस कराने में समर्थ है कि इस जगह पर कुछ अद्वितीय रचा जा सकता है।चारो तरह ऊँचे-ऊँचे पहाड़ के बीच एक जलधारा निकली है,जिसे गौमुख का आकार दे दिया गया है।इस गौमुख के पानी की मिठास अपनें आप में खास है।तृप्त करनें वाली।इसी गौमुख के पास दो प्राचीन मूर्तियाँ रखी हुई हैं।जानकर साथी इस पर प्रकाश डालेंगे तो नई जानकारी मिलेगी।
तुरतुरिया जाना हर बार ताजगी तो देता ही है।हल्की गुलाब ठंड इन दिनों पड़ने लगी है।यहाँ के छोटे-बड़े पेड़ दो-चार बार जानें पर पहचानने लगते हैं।यही इस जगह की खासियत है।इसीलिए वाल्मीकि बाबा नें अपना आश्रम यहीं बना डाला और लिख डाली रामायण।तुरतुरिया छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए एक तीर्थ होकर जल,जंगल,ज़मीन से उन्हें सींचता है,साल भर हरा-भरा बना रहने के लिए,फिर-फिर तुरतुरिया लौटने के लिए !
दीपक कुमार तिवारी