तोड़ वर्जना की हर बेड़ी
तोड़ वर्जना की हर बेड़ी
मर्यादा का रखकर मान,
आज चली भारत की
बेटी भरने नई उड़ान.
सदियों पुरानी वो ज़ंजीरें
राहें जिनसे बाधित थीं,
चारदीवारी में रहने को
हर नारी ज्यों शापित थी.
गिरा के हर दीवार आज
वो अपनी प्रतिभा के बूते,
लांघ रूढ़ियों की बन्दिश को
बढा रही भारत का मान.
तोड़ वर्जना की हर बेड़ी
मर्यादा का रखकर मान,
आज चली भारत की
बेटी भरने नई उड़ान.
शिक्षा की महिमा को साबित
परिणामों से हमने किया है,
क्षेत्र कोई हो शिखर को छूकर
हमने नवल प्रतिमान रचा है.
नहीं चाहते हम अनुकम्पा
चाहें हम शिक्षा और ज्ञान,
पढ़ने का बस अवसर चाहें
गढ़ना तो अपना है काम.
तोड़ वर्जना की हर बेड़ी
मर्यादा का रखकर मान,
आज चली भारत की
बेटी भरने नई उड़ान.
नारी ने ही की है रक्षा
हर युग में इस मनुज जात की,
प्रश्न समग्र अस्मिता का हो
तो करे न परवा किसी बात की.
संकट शमन ये करे अकेले
निर्भरता ना किसी साथ की,
धर कर रूप शक्ति का
करती सदा असुर सन्धान.
तोड़ वर्जना की हर बेड़ी
मर्यादा का रखकर मान,
आज चली भारत की
बेटी भरने नई उड़ान.
–जितेन्द्र मानिकपुरी