बसंत पंचमी स्व. कौशल प्रसाद दुबे जी की 10 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर विशेष
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भावभीनी श्रद्धांजलि
(1)
सरस्वती वंदना
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स्व.कौशल प्रसाद दुबे
होने दो अहुग्रह का पावस झर झर
तमाच्छादित मानस को ज्योतिर्मय कर।
भाव भरा आह्वान, है मैया आवो
मन की मरू भूमि में नवरस बरसाओ-
मुझको अम्ब चाहिए तव प्रेरणा निर्झर
मेरी साधना अब तुम पर ही निर्भर।
होने दो…..
चाहो तो डुबाओ या मुझको उबारो
अर्पित जीवन है ठुकराओ या स्वीकारों-
मेरे मौन शब्दों को कर दो मुखर
निस्तेज भावों को कर दो प्रखर।
होने दो……..
अन्तहीन भटकन से मुझको बचाओ
मां वीणापाणी पथ मुझको दिखाओ-
कल्पना के पन्छियों को दे दो अम्बर
कि चारों दिशाओं में गूंजित हों स्वर ।
होने दो………
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(2)
सरस्वती वन्दना
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स्व.कौशल प्रसाद दुबे
हे माँ सरस्वती, हमें बुद्धि दो सद्ज्ञान दो।
हम चलें सदराह पर बस यही वरदान दो ।।
अधियारा चहुँ ओर फैला
घन घोर गर्जित है गगन,
जड़ता और गहन निराशा से
भरा हुआ है अन्तर्मन
मूर्छना को तोड़ दे, ऐसा नव विहान दो ।
हे माँ सरस्वती, हमे अमरता का ज्ञान दो ।।
लगन की लौ तेज कर
हमको बना दो तेजवान
पावन ज्ञान ज्योति निर्भर
मानस में हो प्रवहमान
आलोक पथ के पथिक को मंगल अभियान दो ।
हे माँ सरस्वती, हमें सार्व भौम पहचान दो
(बसंत पंचमी 2005)
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(3)
वन्दना के स्वर
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स्व. कौशल प्रसाद दुबे
वर दे, वर दे, वर दे माँ
तेरा ही हमें है अब आसरा
ऐसे न ठुकराओ, अम्बे
ममता का फैला दो न आंचरा
वर दे वर दे वर दे माँ ।
घिरी है तमिसा अन्तर्मन में
पावस की झड़ी है नयन में;
सब तरफ अंधेरा छाया घनेरा
जगमग कर दे माँ
वर दे, वर दे , वर दे माँ ।
जाने कब से रूठी है वाणी-
तुम तो कहलाती कल्याणी;्
भाव नहीं, प्रभाव नहीं
कोई नया स्वर दे माँ
वर दे, वर दे, वर दे माँ ।
होती है कमजोर मन की आशा
भावों को मरोर देती भाषा
अभिब्यक्ति मुझे दो शक्ति मुझे दो
उमंगों नई भर दे माँ वर दे माँ
वर दे, वर दे वर दे माँ
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(4)
आरती भारती की
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कल्मष कलुष कुटिलता हरणी
बुद्धि प्रदात्री हे जग जननी ।
कृपा करो इस कुंठित जन पर
पार लगे भ्रम की वैतरणी।।
बहु स्तरीय तमिस्रा की जो
तनी हुई यवनिका घनी ।
ज्ञान रश्मियां भेद न पातीं
डूब रही है आशा – तरणी ।।
छिन्न करो इस मोह जाल को
मुक्ति दायिनी माँ कल्याणी ।
दिशा दृष्टि उज्ज्वल निर्मल हों
ऐसा वर दो वीणा पाणी ।।
कल्मष……….
(बसंत पंचमी 2005)
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(5)
याचना
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शुद्ध-बुद्ध विचार देना
मति बिगड़ जाए तो माता
तुम उसे सुधार लेना-
स्वार्थ बुद्धि से परिचालित जन
आत्म रति में लिप्त है मन,
औरों को पग बाधित करके
हर कोई करता अग्र गमन ।
भेद बुद्धि हो प्रखर अगर तो
अम्ब मुझको उबार लेना
शुद्ध बुद्ध विचार देना।
प्रात में तम का आच्छादन
यह तो दिनकर का अपहरण
मात कहो क्या संभावित है,
स्थापित मूल्यों का अपघटन ?
गहन तम को चीर कर तुम
ज्ञान – रशि्म पसार देना
शुद्ध बुद्ध विचार देना
दृष्टि पावन, दृश्य पावन
पावन हो जाए हर दर्शन,
शुभ सात्विक संकल्पों से
पूर्ण हो सबके अन्तर्मन ।
कम न हो उर में हमारे
प्रेम का भण्डार देना
शुद्ध बुद्ध विचार देना ।
(08/04/08)
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(6)
साधना के क्षण
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साधना के क्षण हैं और भाव मगन मन है
ऐसे में माँ शारदे मुझको शरण में ले लो
स्तर स्तर तिमिर भागे, आलोक – पथ में
ऐसे में माँ भारती, मुझे नव सृजन में ले लो।
टूट गई सदियों की मूर्छना एक पल में
उभर गई सुकृतियां नव चेतना के तल में
ऊज्वस्वित प्राण में पुलकित हैं गात मेरे
दिव्य भाव विकसाते हैं हृदय जलजात मेरे।
साधना के क्षण है-
खुल गई सब ग्रन्थियां, धुल गई कटु स्मृतियां
झंकृत हैं तार तार मुखरित नव रागिनियां
जीवन का लक्ष्य जैसे उद्भासित हो गया
आराधना है चरम पर सौभाग्य जागृत हो गया।
साधना के क्षण हैं –
तेरी प्रेरणा का बल बन गया मेरा सम्बल
मेरी अर्चना अविकल बन गई मेरा तपफल
निनादित घन मण्डल है झंकृत अवनी तल
गहरे अन्तर्मन में भक्ति है तेरी अविचल
“साधना के क्षण है—
यह दुनिया तो खैर मुझे कहती है पागल
कटु तिक्त तीक्ष्ण कटाक्षों से सौ बार हुआ घायल
स्नेह सलिल से अविरल भीगा हुआ तव आंचल
घनी शीतल छाव बन गए ये झुके बादल।
साधाना के क्षण हैं….।।.
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【प्रस्तुति :- बसन्त राघव
पंचवटी नगर,मकान नं. 30
कृषि फार्म रोड,बोईरदादर, रायगढ़,पिन 496001
छत्तीसगढ़,basantsao52@gmail.com मो.नं.8319939396/9039011458】