February 23, 2025

बसंत के दूत-खैरझिटिया

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पूस धुँधरा,कोहरा अउ ठुठरत जाड़ ल गठियाके जइसे ही जाय बर धरथे,तब माँगे महीना माँघ बसंती रंग के सृंगार करे पहुना बरोबर नाचत गावत मटमटावत आथे।माँघ महीना म पुरवा सरसर सरसर गुनगुनाय ल धर लेथे।सुरुज नारायण घलो जइसे जइसे बेरा बाढ़त जाथे अपन तेज ल बढ़ायेल लगथे,जेहा अड़बड़ मन ल भाथे, क़ाबर की जाड़ भर ललचाय रिहिस।जाड़ ल जावत देख चिरई -चिरगुन,जीव- जानवर पेड़-पउधा,बाग-बगइचा अउ मनखे मन मतंग होय बर लग जथे।खेत खार म उन्हारी,उतेरा जेमा चना,गहूँ, तिवरा, सरसो,मसूर के संगे संग बखरी बारी के धनिया,मेथी,पॉलक,मटरी अउ रंग रंग के साग भाजी पुरवइया हवा म नाचेल लग जथे। तरिया, नँदिया,नरवा के पानी धीर लगाके लहरा मारत,रद्दा रेंगत मनखे ल तँउरे बर बलाथे।ऊँच ऊँच बर,पीपर,कउहा,सेम्हर,बम्हरी,साल,सरई,तेंदू,चार,
डुमर अउ कतको पेड़ मतंग होके नाचेल धर लेथे।बाग बगइचा म रंग रंग के फूल तितली,भौरा के संगे संग मन भौरा ल घलो अपन तीर खिंचेल धर लेथे।अमरइया म कोयली के गाना,तरी म बंधाये झूलना अउ पेड़ म झूलत झोत्था झोत्था मउर मन ल मोह लेथे।बोइर पेड़ म लटलट ले लदाये हरियर पिंवरी अउ लाल फर ल देख के बिना एकात ढेला मारे जिवरा नइ अघाय। हवा म झूलत कोकवानी अमली देख भला काखर मुँह म पानी नइ आय?गरती,तेंदू,चार ,महुवा,पिकरी,डूमर खावत कतको चिरई मन मनभर गीत गाथे।
माँघ तिथि पंचमी देवी सरस्वती के पूजा पाठ के दिन होथे,ये दिन ले फागुन के गीत,झाँझ,मंजीरा गली गली चौरा चौरा म सुनायेल धर लेथे।बसंत ऋतु के स्वागत सत्कार म नाचा – गम्मत,मड़ई ,मेला,गीत कविता चारो मुड़ा गूँजेल लग जथे।बसंत ऋतु म परसा,सेम्हर लाली लाली फूल म लदाये बर लग जथे।बिरवा के पिवरी पात झरथे अउ नवा पान फोकियायेल लगथे।बसंत ऋतु सब ऋतु ले खास होथे,ये समय घर,बन,बारी,बखरी,खेत,खार,नदी,पहाड़ सबो चीज म खुशी सहज दिखथे।गावत झरना,चिरई चिरगुन,पुरवा अउ नाचत पेड़-पात,लइका सियान सबो जघा दिख जथे।सरसो,राहेर,चना ,गहूँ,अरसी, मसूर,लाख,लाखड़ी सबो रंग रंग के फूल धरके नाचे गाये कस लगथे।बसंत ऋतु म कोयली के गाना,नँगाड़ा के थाप,फाग अउ मेला मड़ई मन मोह लेथे।ये सब ला देख देख सबके मन म खुशी दउड़त रथे।भुइयाँ के दसना म रंग रंग के खेल खेलत मन मतंग रथे।
पहली मनखे मनके मन म बसन्त के वास होवय तरिया,नँदिया,डोली,डंगरी,घाट,बाट,बारी बखरी,बाग बगइचा, खेत खार घर के दुवारी ले नजर आय।प्रकृति के कोरा म ठिहा ठउर रहय,चिरई- चिरगुन छानी परवा म नाचे गाये।घर के दुवारी म लाली दसमत,अँगना म तुलसी के चौरा,गमकत गोंदा, ममहावत दवना,घमाघम फुले अउ झूले मुनगा,बारी म सेमी नार,भाजी पाला,झूलत केरा खाम,अउ कतको मनमोहक छटा अइसने मन लुभावत रहय,आज ये दृश्य देखे बर नइ मिले।
कँउवा के कांव कांव लटपट म सुनाथे,तब कोयली,मैना,सुवा,गौरैया के गीत ल छोड़ दे।
फेर जब जब बसंत आथे अन्तस् म ये सब हिलोर लेय बर धर लेथे।बिन परसा फूल देखे घलो ओखर लाली रंग अन्तस् म अपन सुन्दराई ल बगरा देथे।। कवि के कविता म फूले सरसो,अरसी,सरसो,महुवा,अमुवा अउ बोहावत पुरवैया बसंत ऋतु के सन्देश देथे।आज प्रकृति में वो सबो सुन्दराई खोजे म घलो नइ मिले,तब फेर बसन्त ऋतु के सन्देश मनखे मन ल कोन देवय?कवि नइ होतिस त कोन हवा ल महकातिस?कोन बसंती रंग के बौछार करतिस?आज प्रकृति के बसंती सुघराई असल रूप म तो बिरले देखेल मिलथे,फेर कवि अपन कविता म बसंत के दूत बनके वइसने गीत गाथे जइसे कोयली कूह कूह कुहूक के बसंत के राग अलापथे।
मनखे मन प्रकृति ले दिनों दिन दुरिहावत हावय।निर्माण के चक्कर म दिनों दिन उजाड़ सहज होगे हे।पेड़ पउधा,बारी बखरी,नंदिया तरिया,खेत खार सब म मनखे मन अपन स्वारथ के झंडा गाड़ देहे।उहाँ कहाँ कोयली,कहाँ पुरवइया, कहाँ अमरइया अउ काय बसंत? फेर आज कवि मन बसंत के दूत बरोबर कोयली कस गावत गावत अपन लेखनी म नँदिया,तरिया,झरना,डोंगरी,पहाड़,सरसो,चना,गहूँ,डूमर,अमरइया,सुवा,मैना,परसा,तेंदू,चार,चिरौंजी अउ जम्मो बसंत के सुघराई ल उकेरत हे।जेला पढ़ सुन के बसंत अन्तस म बस जावत हे।कोन जन बाँचे खोंचे अमरइया म अउ के दिन कोयली गाही,अउ बसंत के सन्देश दे पाही।फेर कलम धरे कवि कस ये कोयलिया म जब जब बसंत आही तब तब बसंत के दूत बनके जम्मो बसन्ती सुघराई ल सबके अन्तस् म बगराही।

जीतेन्द्र वर्मा”खैरझिटिया”
बाल्को(कोरबा)

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