“जब नाराज होगी प्रकृति”
समीक्षक- विभूति भूषण झा
श्रीमती निमिषा सिंघल
सर्वप्रथम “जब नाराज होगी प्रकृति” कविता संग्रह हेतु श्रीमती निमिषा सिंघलजी को मैं बहुत-बहुत बधाई, शुभकामनाएँ देता हूँ. इस कविता संग्रह का प्रकाशन सर्वप्रिय प्रकाशन, दिल्ली ने बहुत ही आकर्षक आवरण में मूल्य ₹ 250 रखकर किया है. इस कविता संग्रह में 47 कविताएँ और कुछ क्षणिकाएँ हैं. कवयित्री की यह पहली पुस्तक है तो निश्चित रूप से ही मनोबल बढ़ाने की और सार्थक बातें होनी चाहिए. कविता के क्षेत्र में कवयित्री का पहला कदम है. कहीं कहीं भाव भारी भंगिमा से ओतप्रोत है तो कहीं नयापन झलक जाता है. कुल मिलाकर ठीक ही कहेंगे. पंक्तियों को देखेंगे तो बात समझ में आयेगी.
कविता ‘जब नाराज होगी प्रकृति’ में लिखती हैं कि
“तब नीली नहीं
फैली होगी काली क्रूर रोशनी आकाश में
जैसे बहुत बीमार चेहरे में धँसी आँखों ने
सेंध मार दी हो किसी ब्लैक हॉल में.
बढ़ जायेगी समुद्र में ज्वार-भाटों की तीव्रता
मछलियाँ किनारों पर पड़ी तड़प रही होंगी.
मन के भीतर फट पड़ेंगे कई तरह के ज्वालामुखी
मुख से आयेंगे कई तरह के लावे बाहर
कलेजा कसमसायेगा और पीयेगा
क्रोध और भय का कोई सम्मिश्रित पेय
तमाम सुरंगों के मुख हो जायेंगे बंद
इतने पत्थर टूटेंगे पहाड़ों की छाती से
गिरेंगीं सर से सौ तरह की बिजलियाँ
हवा हो जायेगी बावरी.”
यह कविता संग्रह कच्चे आमों की टोकरी की तरह है. कहीं कुछ मीठा सा खट्टापन है, कहीं तीक्ष्णता ज्यादा है कहीं तीक्ष्णता कम है.
“नयी स्त्री की खोज” कविता में लिखती हैं कि
“सुनो स्त्रियो!
हाँ!
तुम्ही से कुछ कहना है मुझे.
ईश्वर ने चुना तुम्हें परीक्षा के लिए
उतरती रहीं खरी
हर परीक्षा में तुम.
धैर्य, दुख, शोषण, पीड़ा
अस्तित्व रहित रहकर भी
जीया जीवन
आत्महत्या नहीं की
जिंदा रखा खुद को.
इतना ही नहीं
अनेक विषमताओं में घिरकर
चेहरे पर खिलाए रखी
भुवन मोहिनी मुस्कान.
“मौसम के रंग जिंदगी के संग” कविता में लिखती हैं कि
“मौसम का मिजाज भी तुम सा है
कभी जून की गर्मी सा उबाल खाता
तो कभी अंगारे बरसाती जुबां सा.
कभी जुलाई-अगस्त की बरखा-सा नेह बरसाता
जैसे जलते तवे पर
डाल दी हो किसी ने पानी की बूँदें
तवे पर छुन-छुन की ध्वनि के साथ
पहले उबाल फिर शांत होती बूँदें
जैसे मुझे मनाते-मनाते
तुम्हारे चेहरे पर भी कभी क्रोध कभी प्रेम मा जा रहा हो
फिर मना ही लेते हो प्रेम से.”
“मुस्कुराहटें” कविता में लिखती हैं कि
“मुस्कुराहटें कीमती बहुत
रो-रो कर इन्हें न गंवाओं तुम
मानो ना बुरा हर एक बात का
थोड़ी सी खुशी ढूँढ लाओ तुम.
आओ चल पड़ें
थोड़ा उड़ चलें
नीले अंबर तले एक उड़ान लें.
रंग ढूँढ लें आसमान तले
आओ खुशियों को फिर नया नाम दें.
आओ चल पड़ें अम्बर तले.”
“तुम जो नहीं थी मेरे पास” कविता में लिखती हैं कि
“चूल्हे पर खाना बनाती स्त्री
राख में उंगलियों से बना रही थी
चित्र
जैसे पूरी जिंदगी का चलचित्र खींच रही हो
मायके ने बोझ समझ
पटक दिया इस गांव में
सिमट गई है जिंदगी जैसे
चूल्हे चौके की राख में.
सब्जी का ध्यान भूल
करने बैठ गई
हिसाब किताब जिंदगी से,
राख ने कितने ही चेहरे बदले.”
“देवदास” कविता में एक पंक्ति चेहरे पर मुस्कान ला देती है जब नायक नायिका को ताज़ी ताड़ी कहता है. पंक्तियाँ देखें कि
“आधा चाँद खिला होगा जिस दिन
उस दिन मिलने आऊँगा
अपनी नीलकमल सी आँखों में
मेरा इंतजार रखना.
मैं चंद्रकांता का वीरेंद्र बनकर आऊँगा.
महुआ के पेड़ से
पक कर झड़े फूल से तैयार
ताजी ताड़ी सी तुम
और मैं पारो के देवदास सा
तुम्हारा दास.”
“ये स्त्रियाँ” कविता में लिखती हैं कि
“स्त्रियाँ प्रेम करती हैं परिवार से
रखती हैं ख्याल हर दरों-दीवार का.
माफ कर देती है अपमान सहकर भी
सह जाती हैं चोट स्वाभिमान पर भी.
बार-बार टूट कर फिर जुड़ जाती हैं
अक्सर छुपा जाती हैं पीड़ा
मुस्कान के पीछे.
स्त्रियाँ रखती हैं
ख्याल सभी की पसंद का
परोसती हैं स्नेह भी
भोजन के साथ.
मुस्कुराहटों में ढूँढती हैं खुद की पसंद
और पा लेती हैं तृप्ति.”
पुस्तक के अंतिम भाग में कुछ क्षणिकाएँ हैं.
एक क्षणिका ‘माँ’ की पंक्तियों को देखें कि
“रेत मिट्टी में सने हाथों से पसीना पोंछती
देखती है दूर से
मजबूरी की धोती से बंधे बालक के पाँव
लोटता मिट्टी में
मचलकर पुकारता ‘माँ’
विचलित हो दूर से पुचकारती
भूख और मजबूरी से बंधे हैं उसकी ममता, उसके पाँव.”
“एक कप चाय” क्षणिका में लिखती हैं
“कप चाय में घुला है
तेरा मेरा साथ भी
होठों से कप की छुअन
फिर तेरा अहसास भी.”
“सहारे” क्षणिका में लिखती हैं कि
“कठिनाइयों से बाहर आना
इतना भी मुश्किल नहीं होता
बस छोड़ना पड़ता है
सहारे ढूँढना.”
इस पुस्तक के आवरण और नाम से इसे प्रकृति से संबंधित कविताओं की पुस्तक नहीं मान लें बल्कि इस पुस्तक में हर प्रकार की, प्रेम की, महिला विमर्श की, नारी शक्ति की, सामान्य जीवन की अनेक प्रकार की कविताएँ हैं. कुल मिलाकर यह एक मिश्रित कविता संग्रह है. कवयित्री की पहली पुस्तक है इसलिए प्रोत्साहन अवश्य मिलनी चाहिए. मैं इनको भविष्य की शुभकामनाएँ देता हूँ और इस पुस्तक हेतु पुनः बधाई, शुभकामनाएँ देता हूँ.