पल्लवी पल की कविताएं
मेरे अन्दाज़ आज भी सबको पुराने लगते हैं।
कल ही के तो सारे किस्से और फसाने लगते हैं।
मैं वो काज ही नही करती जिसमें वक़्त ज्यादा लगे।
सुना है बदलने मे कभी अर्से तो कभी ज़माने लगते हैं!
जो इतनी शिद्दत से लगे हो की कोई होश नहीं,देखें तो आपके हाथ कितने खजाने लगते हैं।
अपनी फितरत छूपानी पड़ती है अब तो, जो खुश देखते हैं दिल दुखाने लगते हैं।
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दरवाजे पर तजुर्बे ने दस्तक दी, और उस तरफ एक इच्छा खिड़की पे बैठी हुई थी,
तजुर्बा दरवाजे से अन्दर आया सारे ख्वाब समेटे और गूंथने लगा एक फैसला जो समय की मांग था।
और फिर फैसले ने सोच के सारे दरवाजे बन्द कर दिये ताकी रोशनी का एक तिनका भी ना आ पाये।
पता है? इस तजुर्बे से फैसले के सफर के बीच वो इच्छा आज भी खिड़की पर बैठी है।