कविताएंं

सच
विजय वर्तमान
जो मैंने देखा
वह कितना सच है
पता नहीं ।
जो मैंने सुना
उसके सच होने की
सम्भावना कितनी है
पता नहीं ।
जो मैंने कहा
पता है मुझे
वह सच नहीं है सौ – टका
मुँह से ही निकला वह मुंदा – ढका ।
सच मानिए
सामने आने वाला सच
प्रायः
सच्चा नहीं होता ।
× × ×
सुख
दुःख मेरे ,
रोये तुम ।
विस्मित , लज्जित और ठगे से
लगे भागने सब दुःख सरपट ।
सुख तेरे ,
नाचा मैं ।
फिर तो आने लगे सगे से
बिना बताये सब सुख झटपट ।
कितना सरल है
सुखी होना ।
***
सही पता
सूरज रोज़ सुबह
हमारी छत पर रखे
झरबेरा के गमले पर
ऐसे उगता है
जैसे यह गमला ही पूरब हो ।
सूरज रोज़ शाम
हमारे आँगन के एक कोने में
ऐसे डूबता है
जैसे यह कोना ही पश्चिम हो ।
दुनिया को नहीं पता
सूरज , गमला और आँगन को पता है
पूरब और पश्चिम का
सही पता ।
***
सिद्ध
सुबह हुई ,
सिद्ध हुआ
सूरज निकला है ।
शाम हुई ,
सिद्ध हुआ
सूरज डूब गया ।
सृष्टि में सबकुछ
कुछ – न – कुछ
सिद्ध करने के लिए होता है ।
तुम कब सिद्ध करोगे
अपने होने को ।