माधुरी कर की कविता
मां मेरी आवाज सुन
नन्हे हाथ से तोड़ रहे पत्थर
हथौड़े की आवाज
मां, क्या सुन नहीं पाती
तेरे ऊंचे गलियारे के नीचे देख
चिलचिलाती धूप में नंगे पैर
सड़क किनारे कूड़ेदानों से झिल्लियां बंटोरते
तेरी गंदी चप्पल
मैं अपने पसीने से धोकर चमकाता हूं
इ्रन नन्हे हाथों से
तेरी हर सेवा के लिए
तैयार रहता हूं
कहते हैं-
मांबच्चों को पहले खिला कर ही
फिर खाती है
मां तुम कब खाती हो या नहीं
मैं त¨ भूखा रहता हूं
पेट की भूख
मेरे तन को जलाती है
ज्ञान की भूख
अज्ञानता की राह पर ले जाती है
शिक्षा की भूख
मुझे लाचार बनाती है
कह दे मां
तेरी क्या मजबूरी है
जननी जन्मभूमि स्वर्ग कहलाती है
तेरे आंचल का दूध
मुझ तक आते आते
शराब क्यों बन जाता है
क्या मैं शराब पीकर
भारत मां की जय कह पाउंगा
भगत, शिवा, गौतम, गांधी के
पहचिन्हों पर चल पाउंगा
मां मुझे संस्कारों की छड़ी दे
मां मुझे प्यार की हथकड़ी दे
मां, मेरी आवाज सुन