रंजना डीन की दो कविताएं
दौर-ए-मुश्किल है
हर इंसान परेशां है मगर
ये बुरा वक्त भी
जाने के लिए आया है
छुपा बैठा है घरों में
हर एक शख़्स यूँ के
जैसे बाहर किसी
बुरी बला का साया है
वो बचाये या बुलाये
ये है मर्ज़ी उसकी
ज़मी या आसमाँ
सब पर उसी का साया है
हम तो बरसों से हवाले
किये हुए खुद को
वो हर मुश्किल में
नई शक्ल ले के आया है
रख भरोसा तेरे दिल में ही
छुपा बैठा है वो
तेरे ही जिस्म में
अपना घर बनाया है
दुआ हर रोज़ है की जल्द
ये बला जाये
जिसने इंसान को इंसान से
डराया है
हौसला ही है रास्ता
और हिम्मत ही दवा
ये बहुतों को मुसीबत से
बचा लाया है
दौर-ए-मुश्किल है
हर इंसान परेशां है मगर
ये बुरा वक्त भी
जाने के लिए आया है
वक़्त के साथ ज़िन्दगी
ज़िन्दगी के साथ सोच
सोच के साथ हम
यूँ बदलते जाते हैं
जैसे गेंहू के दाने…
कभी हरे नरम
कभी सुनहरे ठोस
कभी पिसे, कभी गुंधे
कभी तवे पर सिंकते
कभी आँच पर भूनते
नित नए रंग में ढलते
और एक दिन बना कर निवाला
वक़्त गटक जाता है हमें
पर गेंहू का उगना
और भूख का जागना
चलता रहता है यूँ ही…
- रंजना डीन