November 21, 2024

कभी कभी मेरे दिल में…

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कभी कभी मेरे दिल में
वीरेन्द्र सरल
बात सुबह की है। मेरा दिल दिमाग की खिड़की, दरवाजे खोलकर गुनगुनी धूप का आनंद ले रहा था। तभी एक अजनबी ने दिमाग के भीतर घुसने की कोशिश की।
दिल ने उसे डपटते हुए कहा, ” ये मिस्टर! ये क्या बदतमीजी है। बिना परमिशन के कहाँ घुसे जा रहे हो?”
अजनबी ने दिल को घूर कर देखा और कहा, “लगता है आज आपकी तबियत ठीक नहीं है। अरे मैं तो हमेशा आपके दिमाग में आते जाते रहता हूँ। आज परमिशन लेने की बात कहाँ से आ गई। यदि मैं आना जाना बंद कर दूं तो आप एक लेखक के दिल कहलाने के काबिल नहीं रहेंगे। मैं कौन हूँ क्या आपको पता नहीं है। जरा गौर से देखो, मैं आपका अपना खयाल हूँ, समझे महराज?”
दिल ने खयाल को देखकर अपनी गलती स्वीकार करते हुए कहा, “सॉरी। खयाल जी। पता नहीं मुझे आज क्या हो गया है। दरअसल कल पुरुष दिवस पर मेरी धड़कन ने मेरी जमकर आरती उतारते हुए बधाई दी है। इसलिए आज मूड ठीक नहीं है मगर तुम भी आज एकदम बदले हुए लुक में हो। आओ, बैठों और सुनाओ क्या हालचाल है।”
दिल की बात सुनकर खयाल जोरदार ठहाका लगाया फिर बोला, “अच्छा है, सालभर में एक दिन पुरुष दिवस होता है वर्ष भर के बाकी दिनों में तो पुरुष विवश ही होता है। पुरुष प्रजाति को विलुप्त होने से बचाने के लिए ही किसी के मन में पुरुष दिवस मनाने का विचार आया होगा।”
दिल ने कहा, ” खैर जो भी हो। एक दिन ही सही पुरुष दिवस का अपना अलग मजा है। अच्छा खयाल! एक बात बताओ। आजकल विभिन्न विमर्श की बातें सभा संगोष्ठियों में होती है। कभी तुमने पुरुष विमर्श की बातें कहीं सुनी?”
खयाल ने नजदीक आकर फुसफुसाते हुए कहा, “आवाज जरा धीमी रखिए सर! हमारी बातें कहीं आपकी धड़कन ने सुन ली तो आपकी खैर नहीं। यदि वह आपसे रूठकर बन्द हो गई तो आप तो मरेंगे ही मेरा भी यहाँ आना जाना बंद हो जाएगा।”
दिल ने घबराते हुए कहा, ” तुम्हारी बाते सही है पर क्या पुरुष विमर्श कहीं नहीं है।”
खयाल ने कहा, “एक सच्ची बात कहूँ, पुरुष हमेशा दो पाटन के बीच पिसने वाला प्राणी है। माँ और पत्नी की अपेक्षाओं के बीच झूलता हुआ पेंडुलम। यदि माँ की अपेक्षाएं पूरी नहीं हुई तो पुरुष जोरू के गुलाम का खिताब पाता है और यदि पत्नी की अपेक्षाएं पूरी नहीं होती तो पुरुष माँ के पल्लू से बंधा हुआ लल्लू के अलंकरण से अलंकृत होता है। पुरुष की अपनी भावनाएं, अपने सपने, अपनी आकांक्षाएं सब मां, पत्नी और बच्चों की खुशी के लिए समर्पित होते हैं।
पुरुष होने का मतलब नटों के करतब में रस्सी के उप्पर सन्तुलन साधकर चलना होता है।
और यही सन्तुलन परिवार की खुशी का मेरुदण्ड है। पुरुष दिवस या स्त्री दिवस मनाने का संदेश शायद यह है कि स्त्री पुरुष दोनों का महत्व समान है। कोई किसी से कम नहीं है। जिम्मेदारी की दृष्टि से कार्य मे भिन्नता हो सकती है पर लक्ष्य तो एक ही है। आपसी समझ के साथ चलते हुए परिवार, समाज , राष्ट्रीय खुशी की एक महत्वपूर्ण इकाई बनना है।”
इतना कहकर खयाल गाने लगा, “आज की मुलाकात बस इतनी, कर लेना बातें कल चाहे जितनी।”
दिल भी यह गाने लगा कि ” बीती हुई लम्हों की कसक साथ तो होगी। ख़्वाब में हो चाहे मुलाकात हो गई।”
दिल ने खयाल से कहा, कल फिर किसी विषय पर बात करेंगे। आज बस इतना ही, ठीक है।
मेरे दिल और खयाल के बातचीत बन्द होने के बाद मैं भी अपने काम में जुट गया।
वीरेन्द्र सरल
बोडरा, मगरलोड
जिला धमतरी, छत्तीसगढ़।

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