आज की नई गजल
अलग कुर्सी से, हो गए पाए।
जो थे सहारे,हो गए पराए ।।
निशां तक नहीं,अहले वफा का।
आदमी दिल लगाने,कहाँ जाए।।
हुए बरसों, सितम सहते-सहते ।
लोग जुल्मों से हैं, घबराए ।।
दिल के जख्मों का,है इलाज नहीं।
तुम न समझो तो,कौन समझाए ।।
जहान में हूँ, हकीकत में नहीं ।
जमाने ने, बहुत दांव आजमाए ।।
तकदीर में , लिखा लाए जुदाई ।
उम्र गुजरी,जिन्दगी से उकताए ।।
‘मुसाफिर’हर शख्स,बेमुर्रवत यहाँ।
अब तो हमें,रास्ता भी बरगलाए ।।
मुसाफिर