November 17, 2024

अलग कुर्सी से, हो गए पाए।
जो थे सहारे,हो गए पराए ।।

निशां तक नहीं,अहले वफा का।
आदमी दिल लगाने,कहाँ जाए।।

हुए बरसों, सितम सहते-सहते ।
लोग जुल्मों से हैं, घबराए ।।

दिल के जख्मों का,है इलाज नहीं।
तुम न समझो तो,कौन समझाए ।।

जहान में हूँ, हकीकत में नहीं ।
जमाने ने, बहुत दांव आजमाए ।।

तकदीर में , लिखा लाए जुदाई ।
उम्र गुजरी,जिन्दगी से उकताए ।।

‘मुसाफिर’हर शख्स,बेमुर्रवत यहाँ।
अब तो हमें,रास्ता भी बरगलाए ।।
मुसाफिर

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