शालिनी वर्मा की लघुकथा

1 – खाली बेड
मैं अस्पताल में दो दिन से भर्ती हूँ l साथ में मेरा बेटा भी भर्ती है l चारों तरफ हाहाकार मचा है l एक – एक बेड के लिए मारामारी हो रही है l मैं सदा अपनी मर्ज़ी का मालिक रहा हूँ कभी मैंने अपने जीवन में किसी से दबकर काम नहीं किया l मेरी एक बड़ी कपड़ों की फैक्ट्री है l अपने रसूख से मुझे किसी प्रकार दो बेड तो मिल गए पर इन दो बेड के लिए कलक्टर से लेकर नेता तक सब के हाथ जोड़ने पड़े l आज मुझे साँस लेने में तकलीफ़ हो रही है ,ऑक्सीजन सिलेंडर ख़तम होने वाला है और नर्स कह रही है अस्पताल में केवल आज तक की ऑक्सीजन बची है l
एक – एक करके लोगों की साँसे टूट रही हैं l मेरा बेटा मेरे सामने दम तोड़ने लगा , उसका ऑक्सीजन सिलेंडर ख़तम हो गया था l उसकी पत्नी आकर मेरे पैरों में लिपट गई l पिताजी इनको बचा लीजिये l मेरा और मेरे बच्चों का अब क्या होगा ?
मेरी साँसें भी थमने लगीं थीं। थोड़ी देर में एक बेड जैसे ही खाली होता, वार्ड बॉय उस बेड पर लेते मरीज़ के निर्जीव शरीर को हटाते और दूसरा मरीज़ उस बेड पर लिटा दिया जाता l मेरे बेटे का बेड भी खाली हो चुका था l वार्ड बॉय उसके शरीर को अभी गाड़ी की तरफ नहीं ले जा रहा , वो प्रतीक्षा में है और कुछ बेड खाली हो जाएँ जभी एक साथ गाड़ी में लेकर जाएगा l
मेरी आँखें बंद हो चुकी हैं और अब उसने मेरे शरीर को भी अपनी गाड़ी में चढ़ा लिया है l मेरे बेड पर जल्दी से दूसरा मरीज़ लिटा दिया गया है l
2 एकांतवास
अमन ने पूरे अस्पताल को एक बार फिर गौर से देखा , गुलाबी चमकते कपड़ों में खड़ी नर्से और एक दम सफ़ेद रंग के कोट पहने डॉक्टर l एक महिला डॉ ने मुस्कराते हुए खूबसूरत फूलों का एक गुलदस्ता उसकी ओर बढाया और बोली ‘अमन जी , अब आप करोना से पूरी तरह ठीक हो चुके हैं और अपने घर जा सकते हैं l’
अमन ने गुलदस्ता लेते हुए उन सबको शुक्रिया कहा और ऑटो में बैठ गया l अचानक ऑटो वाले ने जोर से ब्रेक लगाया l पिछले 20 दिन में उसकी दुनिया में जैसे तूफान सा आ गया है l उसे याद आया जब २० दिन पहले वह ऑफिस से लौटा था और उसके सर में दर्द था l जब उसके दर्द में कुछ आराम नहीं आया तो उसने अपने डॉ को फ़ोन कर ही दिया l डॉ के समझाने पर आखिर उसने जाँच करवा ही ली l
पर अगले दिन जैसे सब बदल गया l दूसरे दिन ही उसे अस्पताल भेज दिया गया पर उसका एकांतवास तो ऐसा है जो ख़तम ही नहीं हो रहा l एक कमरे में बिलकुल अकेले ,हालाँकि बाकि सुविधा थीं पर पूरी दुनिया से अलग थलग l अचानक ऑटो वाले की आवाज़ ने उसे धरातल पर ला पटका l उसकी पत्नी और बच्चे घर के बाहर उसकी प्रतीक्षा में थे l पर ये क्या वो उन सब को अनदेखा करते हुए अपने घर के पीछे बने नौकरों के कमरे की ओर बढ़ने लगा l उसके कदम तेज़ होते जा रहे थे l हाँफते हुए वह कमरे में पड़ी खटिया के पास पहुंचा और उस पर लेटी एक बूढी औरत के पैरों में गिर गया l आँखों में आँसू भरकर उसने रुँधे गले से पुकारा – माँ , माँ मुझे माफ़ कर दो अब मैंने जाना , एकांतवास क्या होता है ? जो पीड़ा, जो एकांतवास मैंने 20 दिन झेला आप तो यह एकांतवास दो साल से झेल रही हैं l माँ हमने आपकी फेफड़ों की बीमारी के भय से आपको हम सब से अलग यहाँ रख दिया ताकि हम सब संक्रमित ना हो जाएँ l माँ मैंने आपके साथ जो किया अब वही सब मेरे साथ हुआ तब मुझे यह एहसास हुआ कि अपनों से दूर रहना क्या होता है ? l माँ आज मैं यह समझ गया हूँ कि हमें रोग से लड़ना है रोगी से नहीं l माँ चलो घर चलो l अमन माँ का हाथ पकड़ कर घर में प्रवेश करता है और अपनी पत्नी मिनल और बच्चों से कहता है ,आज से हम अपनी गलती का प्रायश्चित्त करेंगे , आज से दादी यहीं रहेंगी l उसकी माँ अपने आँसुओं को पोंछते अमन और बच्चों के गले जाती हैं और सोचती हैं करोना चाहे जैसा हो पर इस करोना ने उनके एकांतवास का अंत कर दिया l
कवयित्री ,लेखिका
नाम: शालिनी वर्मा
सेवारत- हिंदी अध्यापन व हिंदी साहित्य के क्षेत्र में 20 वर्षों से कार्यरत
वर्तमान में दिल्ली पब्लिक स्कूल दोहा क़तर में हिंदी अध्यापिका
वर्तमान पता – विला 7 ,657 अल वकरा ,दोहा कतर
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