सच्ची सेवा का वक्त है महात्मनों !
हे सभी धर्मों के वीतरागियों ,
महानुभावों !
परहित और मनुष्यता को ही
धर्म का मूल मानने वालों !
उपदेश देकर
सेवा का पुण्य फल बताने वालों !
अभी बिलकुल माकूल वक्त है
उतरो जरा अपने दिव्य आसनों से
करो अपने साधन संपन्न भक्तों को जागृत
कि वे अविलम्ब जुट जाएं
पीड़ित मानवता की सेवा में
अभी अपने कहे शब्दों को
ठीक ठीक जीवन में उतारकर खुद तो देखो
कितना कठिन है सेवा कर्म
कितना सरल है
भावों की चाशनी में लपेटकर
अनुयायियों और भोले भक्तों को
उच्चादर्श की शिक्षा देना
एक युवा सन्यासी वह भी था
जो नहीं रमा किसी धूनी के इर्द-गिर्द
सेवा का प्रकल्प चुना अपने जीवन के लिए
रूढ़ियों पर किया सदा प्रहार
शिकागो की धर्म सभा में
विश्व मानवता के भारतीय दर्शन को
किया प्रतिस्थापित उसने
हे महापुरुषों !
संकट है तुम्हारे अपने देश पर
पूरी मनुष्यता पर छाए हैं जब
शोक के भीषण बादल
सिर्फ प्रार्थनाओं से काम नहीं चलेगा प्रभुओं !
खोल दो अपने आश्रमों के द्वार
जहाँ सुविधाओं की जगमग है
कथनी और करनी के भेद को मिटा दो
हे परम विभूतियों !
एकदम सही समय है यह
धर्म से कर्म पथ में बढ़ने का
हे वैराग्यवान महात्मनों !
जन्म – मृत्यु के रहस्य को जानने वालों
छू नहीं सकता मृत्यु भय आप सब को
तो निर्भय होकर कीजिए न उनकी सेवा
जो अभी मृत्यु से बेहद डरे हैं
कुछ मरे तो कुछ अधमरे हैं
हे धर्म धुरिणों !
जीवन ही नहीं बचेगा
तो जीने की कला भला किसे सिखाओगे
क्या अकेले ही बैठकर झुनझुना बजाओगे
सतीश कुमार सिंह