जुझारू योद्धा पत्रकार थे पटेरिया
स्मृति शेष / श्री शिवअनुराग पटेरिया
आंचलिक पत्रकारिता के जुझारू हस्ताक्षर
विजयदत्त श्रीधर
उन्नीस सौ अस्सी के दशक की शुरुआत में छतरपुर में जिला प्रशासन के साथ पत्रकारों की मुठभेड़ में जो युवक योद्धा पत्रकार के रूप में उभरा, उसे चालीस बरस की यशस्वी पत्रकारिता में शिवअनुराग पटेरिया के नाम से पहचाना गया। 13 जनवरी 1958 को छतरपुर जिले के गाँव बिजावर में जन्मे शिवअनुराग पटेरिया पिछले एक महीने से कोरोना वायरस से लड़ रहे थे। इंदौर के बाम्बे हास्पिटल में उनका इलाज चल रहा था। वे कोरोना से मुक्त भी हो गए थे परंतु कमजोरी इतनी अधिक थी कि दिल के दौरे का झटका बर्दाश्त नहीं कर सके। 12 मई 2021 की सुबह उनका निधन हो गया। वे अपने पीछे माँ, शिक्षक पत्नी सुजाता, अमेरिका में कार्यरत आईटी एक्सपर्ट बेटी नेहा और बेटा प्रखर, भाई और बहनों का भरा पूरा परिवार शोकाकुल छोड़ गए हैं। इनके अलावा उनके मित्रों, सहयोगियों, प्रशंसकों और उन्हें अपना मार्गदर्शक, गुरु मानने वालों का प्रदेश भर में फैला एक बृहत् परिवार भी है जिनके हृदय भरे हुए और आँखें नम हैं।
छतरपुर कालेज से इतिहास में एम.ए. करने के साथ-साथ सन 1978 में पत्रकारिता आरंभ करने वाले शिवअनुराग पटेरिया 1980-81 में छतरपुर में हुए एक बलात्कार काण्ड के अपराधी पुलिसकर्मी को बचाने की प्रशासन की करतूत के खिलाफ भड़के जन आंदोलन में कलम के योद्धा के तौर पर उभरे। एक-दो अपवादों को छोड़कर पूरे छतरपुर जिले के पत्रकार एकजुट थे, लामबंद थे। जिला प्रशासन द्वारा दबाई गई एक जाँच रिपोर्ट हस्तगत कर स्थानीय साप्ताहिक समाचार पत्र ‘शुभ भारत’ और ‘क्रांति कृष्ण’ में छपने के बाद जिला प्रशासन कलेक्टर की अगुवाई में पत्रकारों के दमन पर आमादा हो गया। तब वहाँ के पत्रकार जान बचाकर भोपाल भाग आए। यहाँ मध्यप्रदेश आंचलिक पत्रकार संघ ने उन्हें तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष श्री सुंदरलाल पटवा से मिलवाया। श्री पटवा और तब के कम्युनिस्ट विधायक कपूरचंद घुवारा ने विधानसभा में यह मामला जोरशोर से उठाया। संवेदनशील मुख्यमंत्री श्री अर्जुन सिंह ने विधानसभा में छतरपुर काण्ड की न्यायिक जाँच कराने की घोषणा कर दी। न्यायिक जाँच हुई जिसमें जिला प्रशासन पूरी ताकत लगाकर भी पत्रकारों को दोषी नहीं ठहरा पाया। इस संघर्ष में उभरे तीन होनहार युवकों राजेश बादल, शिवअनुराग पटेरिया और विभूति शर्मा को ‘नईदुनिया’ के संपादक श्री राजेन्द्र माथुर ने अपने अखबार के लिए चुन लिया।
श्री शिवअनुराग पटेरिया ‘नईदुनिया’, ‘चौथा संसार’, ‘जनसत्ता मुंबई’, ‘संडे आब्जर्वर’ से होते हुए ‘लोकमत समाचार’ के मध्यप्रदेश ब्यूरो चीफ बने। पत्रकारिता के साथ-साथ उन्होंने पुस्तक लेखन में भी रुचि विकसित की और अब तक उनकी 30 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जनसंपर्क मध्यप्रदेश की राजेन्द्र माथुर फैलोशिप के अंतर्गत श्री शिवअनुराग पटेरिया ने नक्सली समस्या का गहन अध्ययन किया। इस शोध के आधार पर ‘व्यवस्था के खिलाफ बंदूक’ पुस्तक प्रकाशित हुई। ‘मध्यप्रदेश संदर्भ’ और ‘छत्तीसगढ़ संदर्भ’ उनकी अत्यधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तकें हैं जो प्रतियोगी परीक्षार्थियों के लिए काफी उपयोगी हैं। नेशनल बुक ट्रस्ट के लिए उन्होंने ‘मध्यप्रदेश’ शीर्षक से पुस्तक लिखी जिसके एकाधिक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। प्रतिरक्षा पत्रकारिता, समाचारपत्र प्रबंधन, बिन पानी सब सून, समय की नदी आदि उनकी चर्चित पुस्तकें हैं।
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय की ‘स्वतंत्र भारत में भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता’ शोध परियोजना की फैलोशिप के अंतर्गत श्री शिवअनुराग पटेरिया ने जबलपुर की पत्रकारिता पर केस स्टडी की। ‘मध्यप्रदेश की हिन्दी पत्रकारिता’ पुस्तक डा. राकेश पाठक के साथ लिखी। इस पुस्तक का महाकोशल, बघेलखण्ड और बुंदेलखण्ड वाला अध्याय पटेरियाजी ने लिखा। छत्तीसगढ़ हिन्दी ग्रंथ अकादमी ने इस पुस्तक का प्रकाशन किया है। मूर्धन्य संपादक राजेन्द्र माथुर पर मोनोग्राफ भी उन्होंने लिखा है।
श्री शिवअनुराग पटेरिया को सप्रे संग्रहालय का ‘माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता पुरस्कार’, केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय का ‘मेदिनी पुरस्कार’, मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी का ‘डा. शंकरदयाल शर्मा अवार्ड’ और मध्यप्रदेश निगम मंडल कर्मचारी महासंघ का ‘सत्यनारायण तिवारी लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ मिले हैं। श्री पटेरिया पिछले तीन दशक से विभिन्न विश्वविद्यालयों की पत्रकारिता कक्षाओं में व्याख्यान देने जाते रहे हैं। पत्रकारिता कार्यशालाओं में भी उनकी सक्रिय भागीदारी रही है। पिछले एक दशक में वे भोपाल के विभिन्न टेलीविजन चैनलों पर बहसों में नियमित रूप से बुलाए जाते रहे हैं और उन्होंने तार्किक विश्लेषण की छाप भी छोड़ी है। श्री पटेरिया मध्यप्रदेश आंचलिक पत्रकार संघ के अध्यक्ष भी रहे हैं।
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