जिस्म को ज़ख्म जो हर…
जिस्म को ज़ख्म जो हर रोज नया देता है.
मेरा ये दिल भी उसे रोज दुआ देता है.
कितनी नफरत है उजालो से उसे मत पूछो.
शाम होते ही चरागो को भुजा देता है.
ऐसे खामोश़ खड़ा क्यू है मेरे यार बता.
इस तरह कौन भला किसको सज़ा देता है.
उसको माअलूम नही ज़िन्दगी का सख्त सफर.
कैसा हमदर्द है जीने की दुआ देता है.
जाने क्यू मस्जिदे खाली है मेरी बस्ती की.
जबकी एक शख्स वहाँ रोज सदा देता है.
उसका दीदार अजब शय है अजब शय है उबैद.
जां कनी में भी कयामत का मज़ा देता है.
उबैद अहमद उबैद.