उदासी में चलो …
उदासी में चलो फिर मुस्कुराते हैं,
किसी प्यासे को पानी देके आते हैं
कभी एक पेड़ जब कोई लगाता है,
परिंदे आसमां में गीत गाते हैं
नये मौजू की ग़ज़लें हैं मगर हम तो,
छतों पर मीर, ग़ालिब गुनगुनाते हैं
मुझे रोने से भी कब चैन मिलता है,
ये आंसू कब किसी के ग़म मिटाते हैं
किसी का गम कभी इससे न ज्यादा है,
बिछड़ कर राम जब ‘ सीते ‘ बुलाते हैं
कभी ख्वाहिश हुई है मांगने की तब,
सितारे सब फ़ल़क से टूट जाते हैं
किसी ने जब कभी पूछा है माज़ी को ,
तो कुछ कहते नहीं हम, मुस्कुराते हैं
कि हर बाजी को ‘अभिजित’ खेलता छिपकर,
न जाने कैसे पत्ते खुल ही जाते हैं
अभिजित अयंक