बाल कविताओं का ‘वसंत’ चला गया
बाल कविता लेखन के क्षेत्र में अपनी विशेष पहचान बना चुके कवि शंभूलाल शर्मा वसंत अब नहीं रहे । 11 अप्रैल 1948 को जन्मे वसन्त रायगढ़ के पास कर्मागढ़ नामक स्थान में निवास करते थे। देश की हर महत्वपूर्ण बाल पत्रिका में उनकी रचनाएं निरन्तर प्रकाशित होती रहती थीं। बेहद सहज-सरल भाषा में बाल कविताएं लिखने के कारण उनकी विशेष प्रतिष्ठा थी। यही कारण है कि दिविक रमेश जी के संपादन में साहित्य अकादमी से निकले महत्वपूर्ण संग्रह “प्रतिनिधि बाल कविता- संचयन” में भी वसंत जी की कविताएं शामिल की गई थी। वे मेरे अच्छे मित्र थे । समय-समय पर उनका फोन भी मेरे पास आता रहता था। खासकर जब साहित्य अकादमी से संग्रह प्रकाशित हुआ, तो उन्होंने प्रसन्न होकर मुझे फोन किया था। मुझे भी बधाई दी थी और कहा था कि ”मुझे अब तक वह पुस्तक नहीं मिल सकी है” । मैंने कहा था, ” जल्दी मिल जाएगी”।
आज से लगभग बीस साल पहले उन्होंने कर्मागढ़ में बाल साहित्य सम्मेलन करवाया था, जिसमें छत्तीसगढ़ के साथ देश के भी कुछ बाल साहित्यकार भी शामिल हुए थे। कर्मागढ़ में बेहद सादगी के साथ रहने वाले वसंत जी ने हम सब साहित्यकारों को बाद में आसपास की कुछ ऐतिहासिक जगहों के दर्शन भी कर आए थे । करमागढ़ में ही प्रागैतिहासिक काल के दुर्लभ भित्ति चित्र दिखाई देते हैं। कर्मागढ़ का सम्मेलन जयप्रकाश मानस की संस्था ‘सृजन सम्मान’ के द्वारा आयोजित हुआ था । उस दौरान वसंत जी से जो आत्मीय परिचय हुआ, वह निरन्तर प्रगाढ़ होता रहा। वसन्त जी भले ही एक छोटे से गाँव में रहते थे, मगर उनकी दृष्टि बहुत व्यापक थी, जो उनकी बाल कविताओं को पढ़ने से समझी जा सकती है। वसंत जी अंतिम सांस तक सुंदर प्यारी बाल कविताएं रचते रहे। वसंत जी की कुछ कविताएं ‘कविता कोश’ में भी उपलब्ध है। यूट्यूब पर भी उनकी कुछ बाल कविताएं मिल जाएंगी, जिसे उनके चाहने वालों ने स्वर दिया है। उनकी बारह प्रकाशित पुस्तके इस प्रकार हैं, सतरंगी कलियाँ, मामा जी की अमराई, चंदा मामा के आंगन में, बरखा ले आई पुरवईया, मेरा रोबोट, है ना , मुझे कहानी याद , जंगल में बजा नगाड़ा, कोयल आई , धूम मचाई, इक्यावन नन्हें गीत, जमाना रोबो का, शेरु की सभा, मैना की दूकान । उन पर केंद्रित ‘बगर गया वसंत’ नामक पुस्तक भी निकली, जिस का संपादन जयप्रकाश मानस ने किया था। वसंतजी ने छत्तीसगढ़ी में भी बाल गीतों की रचना की, जिनके नाम हैं, बादर के मांदर , नोनी बर फूल, आजा परेवा कुरु – कुरु, और, शंभूलाल शर्मा ‘वसंत’ के छत्तीसगढ़ी शिशुगीत ।
ऐसे समय में जब बाल साहित्य पर निरंतर काम हो रहा है, नई पीढ़ी भी बाल साहित्य के प्रति आकर्षित होती दिख रही है, तब वसंत जी का रहना बेहद महत्वपूर्ण होता। उनका मार्गदर्शन नये बाल साहित्यकारों को मिलता। दुर्भाग्यवश अब वे नहीं रहे लेकिन उनकी बाल कविताएं पढ़कर नई पीढ़ी को बहुत कुछ सीखने समझने को मिलेगा । यहां प्रस्तुत है ,उनकी एक बाल कविता। देखें उसकी सहज-सरल भाषा और अद्भुत प्रवाह :
अमराई तो खूब सजी है मैना की है शादी,
इसीलिए तो बगिया-बगिया कोयल करे मुनादी।
पड़की, सुग्गा, श्यामा, बुलबुल इक से एक चिरैया,
हँस-हँस मैना से बतियाएँ संग में है गौरैया।
चूँ-चूँ, चीं-चीं, कूँ-कूँ कितने स्वर में गाएँ बढ़िया,
ताक-धिना-धिन, फुदक-फुदक कर नाच रही हैं चिड़ियाँ।
डाल-डाल पर पात सजा है मौसम है सुखदाई,
शादी के दिन मैना रानी मन ही मन सकुचाई।
सोच रही है मैना क्या-क्या हुई शर्म से लाल,
मुझे बता दे, कोई- कैसी होती है ससुराल?
वसंत जी को शत-शत नमन!