प्रेम
अध:पतन करना पड़े तो
नदी की तरह करना
लोग नजीर बना देंगे
कहेंगे
‘प्रेम में थी नदी…’
किसी की तड़प में तड़पना पड़े तो
मछली बन जाना
मुहावरों में प्रयोग होगा
मछली की तरह तड़पते हुए…
होना हो निछावर तो
देशप्रेम से बड़ा दूसरा
कुछ हो ही नहीं सकता
नाम आते ही झुक जाएंगे अनगिनत सिर
प्रेम में क्या- क्या नहीं हुआ
तो सुनो
मैं आकाश से उतरूं तो
थामना मुझे शिव की तरह
ऊफनाऊं तो बन जाना
निदाघ से चर्रायी हुई धरती
मैं नहीं कह रही ;
फरहाद बन काटना पहाड़
और हो जाना मूर्छित
बदले में रोते-रोते मैं भी
कत्तई नहीं
बस ;
ओस बन गिरूं तो सजा लेना सिर पर
दुबली घास की तरह
अपरिचित दिलों में ही तो बनाता है प्रेम
अपनी जमीन
जिसे विश्वास के अतिरिक्त
और कुछ नहीं कह सकते
ताना -बाना से बुन सकते हो आप
रेशमी वस्त्र
न कि प्रेम …
लकीर के फकीर नहीं समझ सकते
इसकी परिभाषा
अनगिनत प्रेम कथाएं
ब्लैक -होल में समा चुकी हैं
मान्यताओं ने नहीं दिया था
आशीर्वाद…
फिर भी
हमारी कहानी उतरेगी कागज पर
और
वर्णों से मिल-मिलकर
बनाती रहेगी सन्धियां…
शब्दों के मिलने से हमें कहा जाएगा
भाषा की परिभाषा में समास
तुम कहोगे
बन्धन भी सात जन्मों का ही होता है
और मैं न जाने कहां- कहां घूम आयी
छोड़ो भी लोग कहेंगे प्रेम में थे दोनों
जैसे दीये में होती है तेल संग बाती
थाली में चोखा और बाटी
रसोईं में सिल व बट्टा
ये प्रेम के युग्म हैं
जाल नहीं
मायाजाल भी नहीं
जाल तो निर्दोषों को फांसने के लिए
बुनती रहती हैं मकड़ियां ….
हम तो प्यार में थे , हैं ;
आगे भी रहेंगे…
जैसे रहती है कलम में रोशनाई…
और लिखती है ‘प्रेम पत्र’
कवियों की कविताएं…
२-
“कोरोना”
घाम- बताश
ओस -पानी खाता हुआ पड़ा था
कहीं किसी वस्तु पर चिपका हुआ
आपके एक स्नेहिल भूल पर चिपककर
पहुंच गया वक्षप्रदेश
छाप रहा है
अपने अनगिनत संस्करण
बे-रोक टोक
ताकि अवरूद्ध की जा सकें तंत्रिकाएं
स्पन्दनहीन हो तंत्र
और यह बढ़ा हुआ तापमान
मल्लयुद्ध है
उसके तथा प्रतिरोधक शक्तियों के बीच
आपको पता नहीं
आप की स्नेहिल भूल
आप पर
परिवार पर , पड़ोस पर
एक संकट है…
नहीं ;
संकट नये नहीं होते
शिथिल रहते हैं
भांपते हैं अनुकूलन
वैसे भी धरती पर कोई चीज नष्ट कहां होती है
बस रूप बदलती है
देखिए न इस कोरोना विषकीट को ही
अनगिनत रूप बदल चुका है अब तक
जरुरत के मुताबिक
स्नेह लुटाइए जांच परखकर
लोकनिर्माण विभाग का वह साइनबोर्ड
तो याद होगा आप को
”सावधानी हटी दुर्घटना घटी”
घोषणा-
प्रेषित दोनों पद्य रचनाएं मौलिक तथा अप्रकाशित हैं।
मोती प्रसाद साहू
हवालबाग-अल्मोड़ा 263636 उत्तराखण्ड
9411703669
motiprasadsahu@gmail.com