ग़ज़ल
अपनी ही जान की अमाँ से गुरेज़
शोख़ कलियों को बाग़बाँ से गुरेज़
ख़ूँ की नदियाँ बहा दीं पाने को
कर रहा अब उसी मकाँ से गुरेज़
बदज़ुबाँ से तो हँस के मिलते हैं
और करते हैं बेज़ुबाँ से गुरेज़
दो क़दम क्या चले अकेले तुम
हो गया आज कारवाँ से गुरेज़
कल तलक़ सुनने को तरसते थे
यक़बयक़ क्यों है मेरी हाँ से गुरेज़
—
बलजीत सिंह बेनाम
जन्म तिथि:23/5/1983
शिक्षा:स्नातक
सम्प्रति:संगीत अध्यापक
उपलब्धियां:विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित
सम्पर्क सूत्र: 103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी