थिरु (कहानी)
शाम का समय था, थिरु अपने घर की ओर जा रही थी।दरअसल वह किसानों के घर काम करने जाती और अपने तथा परिवार का गुजर- बसर करती थी।उस दिन काम थोड़ा ज्यादा था जिस कारण देर हो गई। थिरु जल्दी -जल्दी अपने घर की ओर बढ़ रही थी, घर में उसके दो बच्चे और शराबी पति उसका इंतजार कर रहे थे।उसका घर बस्ती से थोड़ी दूरी पर बसे एक पारा -टोला में था और बस्ती तथा उसके घर तक के बीच में लगभग 2किमी खेतों से होते हुए रास्ता था।
रास्ते में थोड़ा झुरमुट भी पड़ता और झुरमुट में ही एक नाली भी थी जहां से होते हुए खेतों का अधिक पानी नदी तक जाता था।उस शाम थिरु के साहस और किस्मत की परीक्षा होनी थी । थिरु के बढ़ते कदम सहसा रुक गए जब उसने खेत से विरंगा को निकलते देखा। विरंगा बलात्कार की सजा काट चुका था और उसकी छवि किसी राक्षस से कम न थी। थिरु ने चारों ओर देखा पर उसे कोई नजर नही आया जो उसे थोड़ा- सा साहस दे सके।
रंगा थिरु की ओर बढ़ा उस वहसी के आंखों में हवस साफ दिख रहा था उसके अंदर का बलात्कारी जानवर जाग गया ,वह हाथ में आये इस मौके को छोड़ना नही चाहता था।विरंगा थिरु की ओर बढ़ा,थिरु पीछे की तरफ भागने लगी ,विरंगा दौड़ने लगा अब थिरु भी दौड़ते हुए मन ही मन ईश्वर को पुकारने लगी।वह झुरमुट की तरफ भागी ताकि छुप सके।विरंगा हरामी तो था ही शातिर भी था उसने झुरमुट में थिरु को जाते देख अपनी रफ्तार रोक दी।
थिरु भी झुरमुट में जाकर एक झाड़ी के पीछे छुप गई।उसने गहरी सांस ली ,उसे लगा कि उसने विरंगा को धोखा दे दिया, लेकिन अगले ही पल उसकी चीख निकल गई जब उसके बालों को पकड़ कर विरंगा ने उसे खींचते हुए जमीन पर लिटा दिया,थिरु ने छूटने की कोशिश की परन्तु विरंगा के मजबूत हाथों ने उसे जकड़ लिया।थिरु ने विरंगा के मुंह पर थूका और गालियाँ देने लगी ,ईश्वर से गुहार करने लगी,बचाओ- बचाओ चिल्लाने लगी ,रोने लगी ,दूसरी तरफ विरंगा थिरु के कपड़े फाड़ने लगा, फिर अपने कपड़े निकालकर थिरु के गालों को स्पर्श करने लगा।थिरु को बेहोशी आने लगी ,वह निराश होने लगी और उसके हाथ अपने आप शिथिल पड़ने लगे।विरंगा ने थिरु के शक्ति पर विजय पा ली।
विरंगा की आंखे हवस के रोग से भरी हुई थी ,वह थिरु के कमर को छूने लगा कि तभी थिरु के हाथों को एक पत्थर मिला और अपने आधे- अधूरे चेतना से ही थिरु ने मां भवानी का नाम लेकर विरंगा के चेहरे पर मारा , पत्थर का प्रहार तेज था विरंगा को तेज दर्द हुआ और वह अपने हाथों से चेहरे को पकड़ कर कराहने लगा ,तभी थिरु ने उठकर दोबारा से वह पत्थर विरंगा के सिर पर मारना चाहा लेकिन अचानक उसने अपने हाथ रोक लिए,दरअसल उसे विरंगा के टांगों के बीच का वह संवेदन शील अंग दिख रहा था जिसका इस्तेमाल विरंगा औरतों की इज्जत लूटने में करता था।थिरु ने मां भवानी का नाम लेकर विरंगा के उस अंग पर जोर से पत्थर दे मारा और झुरमुट से बाहर निकल आयी ,विरंगा के दर्द की गूंज उस शाम झुरमुट में गूंजती रही।
थिरु दौड़ते हुए घर पहुंची और अंदर जाकर घर के किवाड़ बंद कर दिए,वह हांफ रही थी उसके बच्चों ने जब उसे इस हालत में देखा तो पास जाकर पूछने लगे कि -क्या?हुआ।थिरु उन्हें गले लगाकर रोने लगी ।उसका पति शराब के नशे में धुत्त पड़ा था ,अगले दिन विरंगा को लोगों ने झुरमुट में पड़ा पाया और पुलिस के हवाले कर दिया।
कहानीकार-जपेश कुमार प्रधान
ग्राम-बड़ेलोरम,पोस्ट-परसवानी
जिला-महासमुन्द(छ ग)
मो.नं.-8319275723
रचना- अप्रकाशित ,मौलिक
Email_japeshpradhan26@gmail.com