अनूदित रूसी कहानी : शत्रु
मूल लेखक : अन्तोन चेखव
अनुवाद : सुशांत सुप्रिय
सितम्बर की एक अँधेरी रात थी । डॉक्टर किरीलोव के इकलौते छह वर्षीय पुत्र आंद्रेई की नौ बजे के थोड़ी देर बाद डिप्थीरिया से मृत्यु हो गई । डॉक्टर की पत्नी बच्चे के पलंग के पास गहरे शोक व निराशा में घुटनों के बल बैठी हुई थी ।तभी दरवाज़े की घंटी कर्कश आवाज़ में बज उठी ।
घर के नौकर सुबह ही घर से बाहर भेज दिए गए थे , क्योंकि डिप्थीरिया छूत से फैलने वाला रोग था । किरीलोव ने क़मीज़ पहनी हुई थी । उसके कोट के बटन खुले थे । उसका चेहरा गीला था , और उसके बिन-पुँछे हाथ कारबोलिक से झुलसे हुए थे । वह वैसे ही दरवाज़ा खोलने चल दिया । ड्योढ़ी के अँधेरे में डॉक्टर को आगंतुक का जो रूप दिखा , वह था — औसत क़द , सफ़ेद गुलूबंद और बड़ा और इतना पीला पड़ा हुआ चेहरा कि लगता था जैसे कमरे में उससे रोशनी आ गई हो ।
” क्या डॉक्टर साहब घर पर हैं ? ” आगंतुक के स्वर में जल्दी थी ।
” हाँ ! आप क्या चाहते हैं ? ” किरीलोव ने उत्तर दिया ।
” ओह ! आपसे मिल कर ख़ुशी हुई । ” आगंतुक ने प्रसन्न हो कर अँधेरे में डॉक्टर का हाथ टटोला और उसे पा लेने पर अपने दोनो हाथों से ज़ोर से दबाकर कहा , ” बेहद ख़ुशी हुई । हम लोग पहले मिल चुके हैं । मेरा नाम अबोगिन है … गरमियों में ग्चुनेव परिवार में आपसे मिलने का सौभाग्य हुआ था । आपको घर पर पा कर मुझे ख़ुशी हुई … भगवान के लिए मुझ पर कृपा करें और फ़ौरन मेरे साथ चलें । मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ … मेरी पत्नी बेहद बीमार है … मैं गाड़ी लाया हूँ । ”
आगंतुक की आवाज़ और उसके हाव-भाव से लग रहा था कि वह बेहद घबराया हुआ है । उसकी साँस बहुत तेज़ चल रही थी और वह काँपती हुई आवाज़ में तेज़ी से बोल रहा था मानो वह किसी अग्निकांड या पागल कुत्ते से बचकर भागता हुआ आ रहा हो । उसकी बात में साफ़दिली झलक रही थी और वह किसी सहमे हुए बच्चे जैसा लग रहा था । वह छोटे-छोटे अधूरे वाक्य बोल रहा था और बहुत-सी ऐसी फ़ालतू बातें कर रहा था जिनका मामले से कोई लेना-देना नहीं था ।
” मुझे डर था कि आप घर पर नहीं मिलेंगे । ” आगंतुक ने कहना जारी रखा , ” भगवान के लिए , आप अपना कोट पहनें और चलें … दरअसल हुआ यह कि पापचिंस्की … आप उसे जानते हैं , अलेक्ज़ेंडर सेम्योनोविच पापचिंस्की मुझसे मिलने आया । थोड़ी देर हम लोग बैठे बातें करते रहे । फिर हमने चाय पी । एकाएक मेरी पत्नी चीख़ी और सीने पर हाथ रख कर कुर्सी पर निढाल हो गयी । उसे उठा कर हमलोग पलंग पर ले गए । मैंने अमोनिया लेकर उसकी कनपटियों पर मला और उसके मुँह पर पानी छिड़का , किंतु वह बिल्कुल मरी-सी पड़ी रही । मुझे डर है , उसे कहीं दिल का दौरा न पड़ा हो … आप चलिए … उसके पिता की मौत भी दिल का दौरा पड़ने की वजह से हुई थी … । ”
किरीलोव चुपचाप ऐसे सुनता रहा जैसे वह रूसी भाषा समझता ही न हो ।
जब आगंतुक अबोगिन ने फिर पापचिंस्की और अपनी पत्नी के पिता का ज़िक्र किया और अँधेरे में दोबारा उसका हाथ ढूँढ़ना शुरू किया तब उसने सिर उठाया
और उदासीन भाव से हर शब्द पर बल देते कहा , ” मुझे खेद है कि मैं आपके घर नहीं जा सकूँगा … पाँच मिनट पहले मेरे बेटे की … मौत हो गई है । ”
” अरे नहीं ! ” पीछे हटते हुए अबोगिन फुसफुसाया , ” हे भगवान ! मैं कैसे ग़लत मौक़े पर आया हूँ । कैसा अभागा दिन है यह … वाकई यह कितनी अजीब बात है । कैसा संयोग है यह … कौन सोच सकता था ! ”
उसने दरवाज़े का हत्था पकड़ लिया । वह समझ नहीं पा रहा था कि वह डॉक्टर की मिन्नत करता रहे या लौट जाए । फिर वह किरीलोव की बाँह पकड़ कर बोला , ” मैं आपकी हालत बख़ूबी समझता हूँ । भगवान जानता है कि ऐसे बुरे वक़्त में आपका ध्यान खींचने की कोशिश करने के लिए मैं शर्मिंदा हूँ । लेकिन मैं क्या करूँ ? आप ही बताइए , मैं कहाँ जाऊँ ? इस जगह आपके अलावा कोई डॉक्टर नहीं है । भगवान के लिए आप मेरे साथ चलिए ! ”
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वहाँ चुप्पी छा गई । किरीलोव अबोगिन की ओर पीठ फेरकर एक मिनट तक चुपचाप खड़ा रहा । फिर वह धीरे-धीरे ड्योढ़ी से बैठक में चला गया । उसकी चाल यंत्रवत और अनिश्चित थी । बैठक में अनजले लैंपशेड की झालर सीधी करने और मेज़ पर पड़ी एक मोटी किताब के पन्ने उलटने के उसके खोए-खोए अंदाज़ से लग रहा था कि उस समय उसका न कोई इरादा था , न उसकी कोई इच्छा थी और न ही वह कुछ सोच पा रहा था । वह शायद यह भी भूल गया था कि बाहर ड्योढ़ी में कोई अजनबी भी खड़ा है । कमरे के सन्नाटे और धुँधलके में उसकी विमूढ़ता और मुखर हो उठी थी । बैठक से कमरे की ओर बढ़ते हुए उसने अपना दाहिना पैर ज़रूरत से ज़्यादा ऊँचा उठा लिया और फिर दरवाज़े की चौखट ढूँढ़ने लगा । उसकी पूरी आकृति से एक तरह का भौंचक्कापन झलक रहा था , जैसे वह किसी अनजाने मकान में भटक आया हो । रोशनी की एक चौड़ी पट्टी कमरे की एक दीवार और किताबों की अलमारियों पर पड़ रही थी । वह रोशनी ईथर और कार्बोलिक की तीखी और भारी गंध के साथ सोनेवाले उस कमरे से आ रही थी जिसका दरवाज़ा थोड़ा-सा खुला हुआ था … डॉक्टर मेज़ के पास वाली कुर्सी में जा धँसा । थोड़ी देर तक वह रोशनी में पड़ी किताबों को उनींदा-सा घूरता रहा , फिर उठकर सोनेवाले कमरे में चला गया ।
सोनेवाले कमरे में मौत का-सा सन्नाटा था । यहाँ की हर छोटी चीज़ उस तूफ़ान का सबूत दे रही थी जो हाल में ही यहाँ से गुज़रा था । यहाँ पूर्ण निस्तब्धता थी । बक्सों , बोतलों और मर्तबानों से भरी तिपाई पर एक मोमबत्ती जल रही थी , और अलमारी पर एक बड़ा लैंप जल रहा था । ये दोनो पूरे कमरे को रोशन कर रहे
थे । खिड़की के पास पड़े पलंग पर एक बच्चा लेटा था जिसकी आँखें खुली थीं और चेहरे पर अचरज का भाव था । वह बिल्कुल हिल-डुल नहीं रहा था , किंतु उसकी खुली आँखें हर पल काली पड़कर उसके माथे में ही गहरी धँसती जा रही लगती थीं । उसकी माँ उसकी देह पर हाथ रखे , बिस्तर में मुँह छिपाए , पलंग के पास झुकी बैठी थी । वह पलंग से पूरी तरह चिपटी हुई थी ।
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डॉक्टर मातम में झुकी बैठी अपनी पत्नी की बगल में आ खड़ा हुआ । पतलून की जेबों में हाथ डालकर और अपना सिर एक ओर झुकाकर वह अपने बेटे की ओर ताकने लगा । उसका चेहरा भावहीन था । केवल उसकी दाढ़ी पर चमक रही बूँदें ही इस बात की गवाही दे रही थीं कि वह अभी रोया है ।
कमरे की उदास निस्तब्धता में भी एक अजीब सौंदर्य था जो केवल संगीत द्वारा ही अभिव्यक्त किया जा सकता है । किरीलोव और उनकी पत्नी चुप थे । वे रोये नहीं । इस बच्चे के गुज़र जाने के साथ उनका संतान पाने का हक़ भी वैसे ही विदा हो चुका था जैसे अपने समय से उनका यौवन विदा हो गया था । डॉक्टर की उम्र चौवालीस साल की थी । उस के बाल अभी से पक गए थे और वह बूढ़ा लगता
था । उसकी मुरझाई हुई पत्नी पैंतीस वर्ष की थी । आंद्रेई उनकी एकमात्र संतान थी ।
अपनी पत्नी के विपरीत , डॉक्टर एक ऐसा व्यक्ति था जो मानसिक कष्ट के समय कुछ कर डालने की ज़रूरत महसूस करता था । कुछ मिनट अपनी पत्नी के पास खड़े रहने के बाद वह सोने वाले कमरे से बाहर आ गया । अपना दाहिना पैर उसी तरह ज़रूरत से ज़्यादा उठाते हुए वह एक छोटे कमरे में गया , जहाँ एक बड़ा सोफ़ा पड़ा था । वहाँ से होता हुआ वह रसोई में गया । रसोई और अलावघर के पास टहलते हुए वह झुककर एक छोटे-से दरवाज़े में घुसा और ड्योढ़ी में निकल आया ।
यहाँ उसकी मुठभेड़ गुलूबंद पहने और फीके पड़े चेहरे वाले व्यक्ति से दोबारा हो गई ।
” आख़िर आप आ गए ! ” दरवाज़े के हत्थे पर हाथ रखते हुए अबोगिन ने लम्बी साँस ले कर कहा , ” भगवान के लिए , चलिए । ”
डॉक्टर चौंक गया । उसने अबोगिन की ओर देखा और उसे याद आ गया … फिर जैसे इस दुनिया में लौटते हुए उसने कहा , ” अजीब बात है ! ”
अपने गुलूबंद पर हाथ रख कर मिन्नत भरी आवाज़ में अबोगिन
बोला , ” डॉक्टर साहब ! मैं आपकी हालत अच्छी तरह समझ रहा हूँ । मैं पत्थर-दिल आदमी नहीं हूँ । मुझे आपसे पूरी हमदर्दी है । पर मैं आपसे अपने लिए अपील नहीं कर रहा हूँ । वहाँ मेरी पत्नी मर रही है । यदि आपने उसकी वह हृदय-विदारक चीख़ सुनी होती , उसका वह ज़र्द चेहरा देखा होता , तो आप मेरे इस अनुनय-विनय को समझ सकते । हे ईश्वर ! … मुझे लगा कि आप कपड़े पहनने गए हैं । डॉक्टर साहब , समय बहुत क़ीमती है । मैं हाथ जोड़ता हूँ , आप मेरे साथ चलिए । ”
किंतु बैठक की ओर बढ़ते हुए डॉक्टर ने एक-एक शब्द पर बल देते हुए दोबारा कहा , ” मैं आपके साथ नहीं जा सकता । ”
अबोगिन उसके पीछे-पीछे गया और उसने डॉक्टर की बाँह पकड़ ली , ” मैं समझ रहा हूँ कि आप सचमुच बहुत दुखी हैं । लेकिन मैं मामूली दाँत-दर्द के इलाज या किसी रोग के लक्षण पूछने मात्र के लिए तो आपसे चलने की ज़िद नहीं कर रहा ! ” वह याचना भरी आवाज़ में बोला ,” मैं आपसे एक इंसान का जीवन बचाने के लिए कह रहा हूँ । यह जीवन व्यक्तिगत शोक के ऊपर है , डॉक्टर साहब । अब आप मेरे साथ चलिए । मानवता के नाम पर मैं आपसे बहादुरी दिखाने और धीरज रखने की अपील कर रहा हूँ । ”
” मानवता ! … यह एक दुधारी तलवार है ! ” किरीलोव ने झुंझलाकर कहा । ” इसी मानवता के नाम पर मैं आपसे कहता हूँ कि आप मुझे मत ले जाइए । यह सचमुच अजीब बात है … यहाँ मेरे लिए खड़ा होना भी मुश्किल हो रहा है और आप हैं कि मुझे ‘ मानवता ‘ शब्द से धमका रहे हैं । इस समय मैं कोई भी काम करने के क़ाबिल नहीं हूँ । मैं किसी भी तरह आपके साथ चलने के