कहानी : खामोश सा अफसाना
शेफाली से बिछड़े अतुल को दस साल से ज्यादा हो गए थे पर अतुल उसे एक पल को नहीं भूल पाया। उसकी निगाहें हर जगह शेफाली को ही ढूंढती रहती।
इस बीच अतुल की शादी हो गई और वो प्यारे से बच्चों का पिता भी बन गया पर शेफाली कल ही एक साथी कर्मचारी ने बताया था कि सोशल नेटवर्किंग के माध्यम से आप किसी से भी जुड़ सकते हैं, देख सकते हैं बातें कर सकते है। अतुल के दिल मे आशा की किरण जाग गई, शायद दुनिया की इस भीड़ में शेफाली से दुबारा मुलाकात हो जाये और दूसरे ही दिन न जाने क्या सोचकर अतुल ने इ एम आई वाला एक स्मार्ट फोन ले लिया। उसकी उंगलियां शेफाली के नाम को ढूंढ़ती रहती पर शेफाली नहीं थी कही नहीं थी। नम्रता ने एक दिन दबे स्वर में कहा भी था।
वैसे भी घर के बहुत सारे खर्चे है, बच्चों के स्कूल की फीस भी अभी जमा नहीं हुई । इसकी क्या जरूरत थी। क्या अब तुम बताओगी मेरी क्या जरूरत है क्या नही। अतुल की बात सुन नम्रता का चेहरा उतर गया।नम्रता की गलती सिर्फ इतनी ही तो थी एउसने मुझ से शादी की थी। अतुल को खुश रखने के लिए उसने कितनी कोशिश की थी, शादी के वक्त किसी ने उससे कहा दिया था कि अमित को मीठा खाना बहुत पसंद है। माँ .पापा को मधुमेह था पर वो बिना नागा उसके खाने के डिब्बे में मीठा रखना नहीं भूलती।शायद वो हमारे सम्बन्धों के बीच आई इस कड़वाहट को मीठे से दूर करने की नाकाम कोशिश कर रही थी। अतुल जब ऑफिस में टिफिन बॉक्स खोलता सहकर्मी लपक कर उसकी तरफ चले आते। नम्रता के हाथों के स्वादिष्ट खाने के सब कायल थे पर जिसको खाना पसंद आना चाहिए वो मुँह में एक कौर भी न डालता और अतुल बाबू आज भाभी ने क्या भेजा है
अतुल चुपचाप डिब्बा साथी कर्मचारियों की तरफ सरका देता और मिठाई चपरासी के हाथों में दे देताए न जाने क्यों एक अजीब सा सुकून उसके चेहरे पर पसर जाता। कभी-कभी उसे ऐसा लगता कि वो इस तरह से नम्रता को अतुल से शादी करने की सजा दे रहा हो।
मैं नहीं मना कर पाया तो क्या नम्रता मुझ से शादी करने से मना नहीं कर सकती थी। कहाँ मैं और कहाँ वो एक बार तो सोचना चाहिए था पापा को, पर नहीं ऐसी लड़की गले से बांध दी जिसका जीवन घर से शुरू होता है और घर पर खत्म होता है। पापा की दवाई माँ की एक्सरसाइज बच्चों का स्कूल एबिजली का बिलएमौसी जी के पोते के मुंडन में नेग .व्यवहार हर चीज़ उंगलियों पर रहती है। क्या ऐसी लड़की चाहिए थी उसे जिसे दुनिया की तो फिक्र है पर अपने पति को क्या पसन्द हैए इसका ख्याल भी नहीं।
शादी की शुरुआती दिनों में नम्रता अतुल की गाड़ी के हॉर्न पर दौड़ी चली आती, कमर तक झूलती चोटी, आँखों मे काजल एकरीने से काढ़े बाल, माथे पर सिंदूरी बिंदी का रंग अतुल के आगमन की सूचना से और भी सिंदूरी हो जाता। उसकी खुशी चेहरे से टपकती थी। एक बार उसने कितना हुलस कर पूछा था, श्चमचम कैसा बना था, मम्मी से पूछकर बनाया था।ष् और अतुल ने कितनी बेदर्दी से कहा था एष्पता नहींए मुझे मीठा पसन्द नहीं ऑफिस के चपरासी को दे दियाए कैसा बना कल चपरासी से पूछकर बताऊंगा। नम्रता की आँखे छलछला गई, पर अतुल का दिल नहीं पिघला।
मन की झुंझलाहट सम्बन्धों पर साफ दिखती थी। पापा सब चुपचाप देख रहे और समझ भी रहे थेएपर जवान बेटे से कहते भी तो क्या। नम्रता पापा की पसन्द थी, धीरे.धीरे वो सबकी पसन्द बन चुकी थी पर जिसका हाथ थामे वो इस घर में आई थी वो उसकी पसन्द कभी न बन पाई। पापा ने एक दिन अतुल से कह भी दिया,
अतुल पानी पर लिखा इंसान खुद पढ़ता है, पर पत्थर पर लिखा दुनिया पढ़ती है अब तय तुम्हें करना है कि अपनी जिंदगी की कहानी तुम पानी पर लिखना चाहते हो या पत्थर पर अतुल की झुंझलाहट और भी बढ़ जाती, क्या था नम्रता में ऐसा जो हर आदमी उसके नाम की माला जपता है वो, वो शेफाली के पैर की धूल भी नहीं।
अतुल शेफाली को कभी भूल नहीं पाया, शेफाली उस चांद की तरह थी जिसे न पा पाने की कसक अतुल को जीवन भर सालती रही। दिन गुजर रहे थे पर अतुल की जिंदगी मानो थम सी गई थी। वो मशीन की तरह काम करता एइन दिनों उसका अवसाद और भी बढ़ता जा रहा था।वो घर से बाहर रहने के बहाने ढूंढने लगा था, बॉस से कहकर वो ओवर टाइम भी करने लगा। वो नम्रता की परछाई से भी दूर भागने लगा था। आज ऑफिस में सुबह से ही बहुत चहल.पहल थी। एक नई महिला बॉस की नियुक्ति हुई थीएसुना था बड़ी सुंदर और तेज तर्रार है। एक साथी मित्र ने चुटकी लेते हुए कहा भी था चलो ऑफिस में मन लगा रहेगा।
अतुल मुस्कुरा कर रह गया। सब नए बॉस से मिलने ऑफिस की तरफ चल पड़े, उसी भीड़ में अतुल भी था। नई बॉस सभी का अभिवादन स्वीकार कर रही थी।
थैंक यू थैंक यू वेरी मच, अच्छा लगा आप सभी से मिलकर उम्मीद करती हूं आप लोगों को भी अच्छा लगा होगा।
सबके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई, अपने नई बॉस से मिलकर एक.एक कर सभी कमरे से बाहर निकल जाए।
मिस्टर अतुल! आप यहीं रुके आपसे कुछ जरूरी बात करनी है।
जी! शिफा!!
शब्द गले में अटक से गएएशेफाली को अपने बॉस के रूप में देखकर अतुल आश्चर्य में था। उसी अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा थाएकि शेफाली से इस तरह से मुलाकात होगी। सब के जाने के बाद शेफाली तेजी से उठी और पर्दा खींचकर अतुल की बगल वाली कुर्सी पर बैठ गई।
व्हाट ए प्लेज़ेंट सरप्राइज अतुल!! तुम यहाँ मैं तो सोच भी नहीं सकती थी कि तुमसे जीवन में इस तरह मुलाकात होगी और सुनाओ शादी.वादी की कि नहीं।
शेफाली एक सांस में बोलती चली गई, अतुल के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कुराहट फैल गई। अतुल को अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था जिस लड़की को उसने इतनी शिद्दत से चाहा था उससे इस तरह मुलाकात होगी। कुछ भी तो नहीं बदला था, शिफाली वैसी ही चंचल, शोख़ और बिंदास थी। बिना बाँह के ब्लाउज पर प्योर शिफॉन की साड़ी को उसने बड़े सलीके से लपेट रखा था। तीर कमान सी भौहों के मध्य एक छोटी सी गोल काली बिन्दीए लाल रंग की लिपस्टिक से रंगे होंठ और बालों को करीने से काढ़कर बनाया हुआ फ्रेंच नॉट उसके चंचल चेहरे को एक अलग आभा दे रहे थे। कान के पास लटकती लटे मानो उसके चेहरे के साथ आँख.मिचौली कर रही थी।
हेलो मिस्टर अतुल!! मैं आपसे ही बात कर रही हूं कहां खो गए यार आदत नहीं गई तुम्हारी कॉलेज में भी तुम ऐसे ही बात करते.करते न जाने किस दुनिया में खो जाते थे और सुनाओ सब कहां है। राहुल, विनय, संतोष और वह जयाए गीता और हाँ सीमा की शादी कहां हुई।
सब ठीक है राहुलए संतोष जॉब में है विनय अपने पापा के साथ बिजनेस संभाल रहा। मिल तो नहीं पाता पर फोन जी से कभी.कभी बातचीत हो ही जाती है।
गुड यार अर्चना कहाँ है।
तुम्हारे जाने के बाद एक.एक करके सब की शादी हो गई। शादी के बाद उनसे कोई कांटेक्ट नहीं हो पाया। क्यों !! आजकल के जमाने में इतने सारे तरीके हैं फिर भी
शिखा जी ने बड़े ही आश्चर्य अतुल की तरफ देखा, शिफाली शादी के बाद जिंदगी इतनी आसान नहीं होती है।हो सकता हो उसके ससुराल वाले इतनी खुली सोच के ना होए इस कारण वह कॉलेज के मित्रों से संपर्क नहीं रख सकी। कभी.कभी पतियों की भी रजामंदी नहीं होती ऐसे में किया भी क्या जा सकता है। छोड़ो यह सब बातें
न जाने क्यों शेफाली का चेहरा गुस्से से लाल हो गया।
नफरत है मुझे ऐसी सोच से!!
क्या हुआ शेफाली तुम इतनी नाराज क्यों हो गई एइसमें नया भी क्या है। यह तो हमारे समाज में हमेशा से होता आया है क्या तुम्हारे पति ने तुम्हें कभी नहीं रोका
शेफाली के चेहरे का रंग बदल गया ।
कुछ और बात करते हैं अतुल
कहाँ खो गए अतुल
मेरी छोड़ो शेफाली तुम अपनी बताओ… क्या करते हैं तुम्हारे पति और बच्चे।
शादी माई फुट!! मुझे इस शब्द से भी नफरत है।
शेफाली का चेहरे का रंग बदल गयाएशेफाली धम्म की आवाज के साथ कुर्सी पर बैठ गई। वो गुस्से से कांपने लगी और गुस्से से साड़ी के छोर को कभी उंगलियों में लपेटती तो कभी खुला छोड़ देती।कमरे में गहन सन्नाटा पसर गया। शेफाली की हालत देखकर अतुल की आगे पूछने की हिम्मत नहीं हुई। तब शेफाली ने ही चुप्पी तोड़ी,
अतुल विराट और मैं दो साल पहले ही अलग हो चुके हैं।
मैं माफी चाहती हूँ, मुझे पता नहीं था कि तुम्हारा तलाक हो चुका है।
तुम क्यो माफी मांग रहे हो, जिसे माफी मांगनी चाहिए उसे तो इस बात का अहसास भी नहीं था कि मैं पल.पल कैसे जी रही थी।
अतुल को समझ में नहीं आ रहा था कि इस परिस्थिति में वह क्या करें क्या न करे। वह अजीब सी स्थिति में उलझ गया था पर शेफाली उसकी मनोस्थिति से अनजान अपनी ही रौ में बोलती जा रही थी।
अतुल!! विराट एक मल्टीनेशनल कंपनी में बहुत बड़े पद पर थे। शादी के वक्त मैंने सोचा था कि हम दोनों जॉब करेंगे। ऐश से जिंदगी कटेगी पर जानते हो अतुल विराट और उसकी फैमिली ओ माय गॉड हारीबल है सब के सब। विराट अपने माता.पिता के इकलौते बेटे हैं। छोटी बहन की शादी नोएडा में हुई है विराट और उसका परिवार मुझसे चाहते थे कि मैं घर में बैठ कर गृहस्थी संभालूं। गृहस्थी, यही सब करने के लिए क्या मैंने इतनी पढ़ाई की थी। उस घर में कोई चैन से सोने भी नहीं देता था। 8.00 बजे सुबह मम्मी जी के मंदिर की घंटी बजने लगती। पापा शेफाली बेटा 8.00 बज गए हैं कह.कह कर घर सर पर उठा लेते।
न जाने क्यों अतुल के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई।
जानते हो अतुल विराट के पापा एकदम फिल्मी टाइप वाले ससुर थे उन्हें पार्वती और तुलसी टाइप वाली बहू चाहिए थी। जानते हो क्या कहते थे शेफाली हम लोगों के सामने नहीं तो कम से कम रिश्तेदारों के सामने पल्ला कर लिया करो। बहू पल्लू करने वाली चाहिए थी तो ले आते किसी छोटे शहर या गांव की लड़की मेरी जिंदगी क्यों बर्बाद कर दी। जानते हो क्या कहते थे शिफाली चार लोग का हीं तो परिवार है विराट को ऑफिस से आ जाने दोएसाथ मिलकर खाते हैं।
अरे यार भूख लगी है तो खाओ टीवी देखो और अपने अपने कमरे में जाकर सो पर नहीं अतुल हमारी तो कोई पर्सनल लाइफ ही नहीं थी। झक्क मारकर सबके साथ खाना खाना पड़ता, जब विराट से कहती तो विराट भी हंसकर टाल देते। मैडम इसे ही परिवार कहते हैं इन सब छोटी.छोटी बातों से ही प्यार बढ़ता है। सच बताऊं तो मेरा खून जल जाताए ऊपर से विराट की छोटी बहन जब देखो तब हर दूसरे महीने टपक पड़ती ।आते ही फरमाइश कार्यक्रम शुरूए भाभी बहुत दिन हो गए आपके हाथ का कुछ खाये। अरे यार मैं कुक थोड़ी हूँ ।इतना ही खाने का मन है तो चले जाओ होटल खा लो जी भर,
शेफाली लगातार बोलती जा रही पर अतुल ण्ण्ण्वो अपनी ही खयालों में गुम था। नम्रता का मासूम चेहरा उसकी आँखों के सामने से गुजर गया। दिनभर परिवार के लिए जीती और जूझती अचानक से उसे खूबसूरत लगने लगी थी। वर्षों पहले शेफाली के साथ जीवन बिताने का सपना तो कब का चूर.चूर हो चुका था पर ईश्वर ने जो उसकी झोली में जो अनमोल उपहार के रूप में नम्रता को डाला थाएवो उसकी कदर भी न कर पाया।नम्रता ने तो सिर्फ उसकी आँखों मे अपने लिए विश्वास और प्यार ही तो चाहा था और वो उसे भी न दे पाया। अतुल काम का बहाना करके शेफाली के केबिन से बाहर निकल आया। आज वर्षो बाद उसने अपना टिफिन खोला। नम्रता के हाथों का बना लड्डू बड़ी उम्मीद से उसे देख रहा था। अतुल ने वो लड्डू मुँह में डाल दिया, उसके चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान थी।आज उसे अपने पापा की पसन्द पर गर्व हो रहा था।
डॉ. रंजना जायसवाल
लाल बाग कॉलोनी
छोटी बसही
मिर्जापुरए उत्तर प्रदेश
पिन कोड 231001