एक दिन अचानक
एक शाम आप दफ़्तर से घर आते हैं — थके-माँदे । दरवाज़े पर लगा ताला आपको मुँह चिढ़ा रहा है । सुमी कहाँ गई होगी — ज़हन में ग़ुब्बारे-सा सवाल उभरता है । बिना बताए ? और पुलक ? आप का तीन साल का आँखों का तारा ? आप जेब में हाथ डाल कर चाभी निकालते हैं । ताले की एक चाभी आपके पास भी रहती है । चाभी आज पत्थर-सी भारी क्यों लग रही है ?
दरवाज़ा खोल कर आप भीतर आते हैं । वही जाने-पहचाने कमरे हैं । लगता है जैसे अभी रसोई के नल में से पानी गिरने की आवाज़ आएगी , बर्तन खड़केंगे और सुमी रसोई में से साड़ी के पल्लू से हाथ पोंछती हुई निकलेगी । कहेगी — बड़े थके हुए लग रहे हो आज । हाँ, आज कई मीटिंग्स थीं — आप कहेंगे । तुम हाथ-मुँह धो लो । मैं चाय बनाती हूँ — वह कहेगी । पुलक बेड-रूम के फ़र्श पर पड़े आज के अख़बार पर आड़ी-तिरछी रेखाएँ बना रहा होगा । आप उसे गोद में उठा कर चूम लेंगे । मेरे पापा — कह कर वह आपके गले में बाँहें डाल देगा ।
पर मकान आज सोया हुआ है । कहीं कोई आवाज़ नहीं । रसोई का नल ख़ामोश है ।बर्तन बेसुध पड़े हैं । बेड-रूम में वीरानी छाई है ।
आप फ़्रिज में से बोतल निकाल कर ठंडा पानी पिएँगे । एक अधूरी अँगड़ाई के बीच आप की निगाह डाइनिंग-टेबल पर पड़े काग़ज़ के एक टुकड़े पर जाएगी । आप लपक कर वह काग़ज़ उठाएँगे । सुमी के अक्षर हैं । पर आप से पढ़े क्यों नहीं जा रहे ? अक्षर धुँधले क्यों लग रहे हैं? आँखों में पानी क्यों आ गया है? या शायद आपको चक्कर आ गया है ।
” … मैं पुलक को ले कर जा रही हूँ । आपके जीवन से दूर । हमेशा के लिए ।”
आप लड़खड़ा कर कुर्सी पकड़ लेंगे । घड़ी की टिक्-टिक् आपके दिमाग़ में हथौड़े की तरह लग रही है ।
क्यों ? क्यों ? क्यों ?
कोई आपके ज़हन में शहर के घंटा-घर में लगा भारी-भरकम घंटा बजा रहा है ।
यह अचानक रात क्यों हो गई है ? चाँद कहाँ चला गया है ? आज आसमान में तारे क्यों नहीं हैं ? नहीं । यह रात नहीं है ? आपकी आँखों के आगे अँधेरा-सा छा गया है । आप लड़खड़ाते हुए क़दमों से जाएँगे और मेज़ की दराज़ से ब्लड-प्रेशर की दवाई निकालेंगे । आप की उँगलियाँ काँप रही हैं । दवाई फ़र्श पर गिर गई है । आप उसे नहीं ढूँढ़ पा रहे । दूसरी गोली लेकर आप उसे बिना पानी के निगल जाएँगे । और सिर पकड़ कर बिस्तर पर बैठ जाएँगे ।
बाहर धुँध भरी रात है और आप नींद में चल रहे हैं । दूर कहीं से रेल-गाड़ी की सीटी की आवाज़ सुनाई दे रही है । अचानक आप की आँखें खुल जाती हैं । आप बेड-रूम में नहीं हैं । सुमी कहाँ गई ? पुलक कहाँ गया ?
आप फ़ोन उठाते हैं । फ़ोन डेड है ।
तुमने ऐसा क्यों किया, सुमी ? छोटे-मोटे झगड़े किस घर में नहीं होते ?
अब ?
तनाव की तनी रस्सी पर यादों का नट नृत्य कर रहा है ।
अब ?
दीवार पर सरक रही एक पूँछ-कटी छिपकली आप ही को घूर रही है ।
अब ?
धुँध के उस पार एक गाँव है । गाँव में खपड़ैल का घर है । दरवाज़े पर केले के पेड़ हैं । बगल में चबूतरा है । पास ही पुआल का ढेर है । पुआल के ढेर पर एक बच्चा खेल रहा है ।
दादाजी , आपको क्या हुआ है ?
आँगन में दादाजी का शव पड़ा है । घर की महिलाएँ विलाप कर रही हैं ।
दादाजी, उठिए न ।
अर्थी श्मशान की ओर जा रही है ।
दादाजी, मुझे छोड़ कर मत जाइए । मुझे पहाड़ा कौन सिखाएगा ? रोज़ एक पन्ना हिंदी और एक पन्ना अंग्रेज़ी का डिक्टेशन कौन देगा ? गाँव के पास बहती नदी में मछली पकड़ना कौन सिखाएगा ? जलतरंग कौन बजाएगा ?
धुँध के उस पार सुमी हँस रही है । उसकी कलाई में पड़ी चूड़ियाँ खनक रही हैं । मुझे पकड़ो तो जानँू ।पुलक किलकता हुआ तितलियाँ पकड़ रहा है । यह धुँध क्यों नहीं छँट रही है ?
सुमी , मुझे छोड़ कर मत जाओ । मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ ।
आपको झपकी आ गई है । पिताजी आपको डिक्शनरी में से अंग्रेज़ी शब्दों के अर्थ और हिज्जे रटवा रहे हैं — बी ए टी बैट । बैट माने चमगादड़ । एन आइ जी एच टी एम ए आर ई नाइटमेयर । नाइटमेयर माने दु:स्वप्न …
दादाजी, दादी, पिता, माँ — आपने जिन्हें चाहा, सब एक-एक करके आप से दूर चले गए । आप रो रहे हैं । पर आँखों में आँसुओं का समुद्र बहुत पहले सूख गया है । भीतर रिक्तता की आँधी साँय-साँय कर रही है ।
आपको लगता है , सब आपकी ग़लती है । आप सुमी को ज़्यादा समय नहीं दे पाते थे । बात-बात पर उसे डाँट-डपट देते थे । आपके ग़ुस्से का लावा उन्हें लील गया ।
सुमी , लौट आओ ! अब मैं तुम्हें पलकों पर बिठा कर रखूँगा । पुलक , मेरे लाल — तुम दोनों के बिना मैं अधूरा हूँ । पानी में बुलबुले-से आपके मन में विचार उठ रहे हैं । समय के ताल में यादों के पत्थर डूब रहे हैं — गुड़ुप् , गुड़ुप् …
आप तेज ज्वर से पीड़ित हैं । सुमी आपके माथे पर ठंडे पानी की पट्टियाँ बदल रही है । नीम बेहोशी में आप कुछ बड़बड़ा रहे हैं । पुलक डर कर रो रहा है । कोई उन दोनों को आप से दूर लिए जा रहा है । आप उसे रोकना चाहते हैं । पर आपके हाथ-पैर जड़ हो चुके हैं । आप चिल्ला कर उन्हें आवाज़ देना चाहते हैं । पर आपके गले से कोई आवाज़ नहीं निकल रही । बुख़ार काफ़ी तेज़ है । आप ठंड से काँप रहे हैं । सुमी आपको कंबल ओढ़ा रही है । आपका सिर तेज दर्द से फटा जा रहा है । सुमी आपका सिर दबा रही है । पुलक आपके गाल चूम रहा है । पापा , उठो …
सूरज डूबने से पहले ही रात हो गई है । भुतहा अँधेरे में आप सड़क पर अकेले चले जा रहे हैं । आप के गंतव्य तक कोई बस नहीं जाती । आगे एक गूँगा जंगल है । अपने क़दमों की चाप से डरकर आप भागने लगे हैं । आप हाँफ़ रहे हैं । हवा में सड़े हुए पत्तों की गंध है । आगे एक खंडहर में पीली रोशनी है । एक जाना-पहचाना नारी स्वर कोई भूला हुआ गीत गा रहा है । सुमी , सुमी । वहाँ वह रहस्यमयी आकृति किस की है ? आप उस ओर बढ़ते हैं । और तभी रोशनी बुझ जाती है । गीत थम जाता है । घुप्प अँधेरे के समुद्र में आप एक थके हुए तैराक-सा डूबने लगते हैं । सुमी , सुमी । आपकी भारी आवाज़ अँधेरे में गूँज रही है ।
बाहर लगातार दरवाज़े की घंटी बज रही है । आप चौंक कर बिस्तर से उठते हैं । लड़खड़ाते हुए क़दम दरवाज़े तक पहुँचते हैं । काँपते हुए हाथ दरवाज़ा खोलते हैं । फूलों की ख़ुशबू लिए हवा का वासंती झोंका आता है ।
अरे सुमी , तुम ! शब्द आपके गले में फँस रहे हैं । बाहर सुमी खड़ी है । बगल में माँ की उँगली पकड़े हुए पुलक है । सुमी के दूसरे हाथ में थैला है जिसमें सब्ज़ियाँ हैं ।
नहीं , अभी रात नहीं हुई है । अभी बाहर उजाला है ।
सुमी के भीतर आते ही आप उसे कस कर बाँहों में भींच लेते हैं ।
कहाँ चली गई थीं तुम ?
आज एक अप्रैल है , जान — सुमी खिलखिलाते हुए कह रही है । आप कुछ नहीं सुन रहे । बस उसे और पुलक को बेतहाशा चूम रहे हैं ।
बाहर कहीं कोयल कूक रही है । । इस बार आप बच गए । पर याद रखिए , हर दिन एक अप्रैल नहीं होता । आप जिन्हें प्यार करते हैं , उनका ख़याल रखिए ।
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प्रेषकः सुशांत सुप्रिय
A-5001 ,
गौड़ ग्रीन सिटी ,
वैभव खंड ,
इंदिरापुरम ,
ग़ाज़ियाबाद – 201014
( उ. प्र. )
मो: 8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail.com