सुख का रहस्य
सुख का वास्तविक रूप क्या है? सुख क्या है? सुख की परिभाषा क्या है? सुख की पहचान क्या है? ये सभी प्रश्न यदि हम स्वयं से करें गंभीरता से इस पर विचार करेंगे तो अवश्य ही हमें सुख का मूल रहस्य मालूम हो जायेगा. कहते हैं सुख और दुःख मन के भावों की एक दशा हैं. यदि कोई कार्य हमारे मन के अनुकूल होता है तो हम सुखी महसूस करने लगते हैं और यदि कोई चीज हमारे मन के विपरीत हमारे समक्ष उपस्थित होती है तो हम टूट जाते हैं, हताश हो जाते हैं, निराशा मन मस्तिष्क पर घर कर लेती है. अब प्रश्न यह है कि क्या हम इतनी संकीर्ण विचारधारा की मानसिकता रखें? नहीं! बिल्कुल नहीं! ऐसा इसलिये कि हमें एक ही सोच या विचार पर अटकना या रुकना नहीं चाहिए. जीवन की गति विशाल और निरंतर परिवर्तन लेने वाली होती है. जो सतत् निर्बाध गति से चलती रहती हैं.
एक गाना है -जिंदगी की यही रीत है….. एक और गाना है जो हमें जीवन में मिलने वाले संघर्ष एवं कठिनाइयों से हमें सतत् आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है. गाने की पंक्ति है –दुनिया में जब आएँ हैं तो जीना ही पड़ेगा. “मदर इण्डिया”नामक यह मूवी हमें जीवन की विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों से अवगत कराती है जो एक जीवंत अनुभव का सशक्त माध्यम या उदाहरण है. मित्रों! मेरी आप सभी से इतनी ही प्रार्थना है कि चाहे जीवन में सुख मिले या फिर दुःख. उसे सहर्ष स्वीकार कर लीजियेगा. क्या पता उस विकट दुःख में ही वास्तविक सुख छिपा हो. या इसके विपरीत जिसे हम सुख मानकर चल रहे हैं, वही दुःख का महान कारण न बन जाए. कहा भी गया है कि जब सुख आए तो इतना होश मत गवाँ बैठो कि हमें अपार दुःख का सामना करना पड़ जाए. सुख और दुःख जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिये हैं. सुख के बाद दुःख और दुःख के बाद सुख आता ही है. इसमें कोई संदेह नहीं है. इसलिए हमें दोनों ही प्रकार की परिस्थितियों का सामना वीरता से करना चाहिए. यदि आप स्वयं में विश्वास रखते हैं तो विशाल से भी विशाल दुःख या समस्या आसानी से पार हो जाती है. किन्तु यदि आत्मविश्वास नहीं है तो तुच्छ समस्या भी विकराल दिखने लगती है. कभी भी अपने मन का गुलाम मत बनियेगा. ये मन बहुत ही दुष्ट होता है. यदि आपको जीतना है या विजेता बनना है तो हर रोज अपने आप से युद्ध कीजिये. क्योंकि यदि इस संसार में आपका सबसे बड़ा दुश्मन या शत्रु है तो वह केवल और केवल आपका स्वयं का ‘मन’ ही है. किसी और को व्यर्थ में दोषी ठहराने का कोई मतलब नहीं है.
यदि आपके जीवन पथ में कोई बड़ी आपदा आ जाए तो मन में सिर्फ एक ही सवाल कीजियेगा कि आखिर इसका मूलतः कारण कौन है? यदि आपने सचमुच ईमानदारी और निष्पक्ष होकर आत्मविश्लेषण किए हैं तो अवश्य ही आपको शीघ्र ही आपके प्रश्नों का उत्तर मिल जायेगा. और वह उत्तर यह होगा कि आपकी समस्या या दुःख के कारणों में मुख्य जिम्मेदार या वजह आपके स्वयं के व्यवहार या स्वयं का कर्म ही कसूरवार होते हैं. हम व्यर्थ या बेकार में ही दूसरों पर अपनी गलतियों को थोपते या मढ़ते हैं. भगवान श्रीराम का सम्पूर्ण व्यक्तित्व हमें इस बात के लिए प्रेरित करता है कि जीवन में मिलने वाले दुःखों के प्रति हमें ज्यादा हावी नहीं होना चाहिए. बल्कि अपने पूर्व जन्म के किए गये उचित -अनुचित कार्यों का प्रतिफल मान लेना चाहिए. कर्म के बंधन से कोई भी मुक्ति नहीं पा सका है. देवता, मानव, किन्नर एवं गंधर्व सभी को अपने =अपने हिस्से का सुख -दुःख भोगना पड़ता ही है.अतः अच्छा यही होगा कि हमें सदैव ईश्वर के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए.
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दिनाँक
10-07-2021
सीमा यादव, मुंगेली