November 21, 2024

पुस्तक हमनफस : वास्तविक घटनाओं पर आधारित

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आरुषि कंवर

हम सभी ने भारतीय रेल यात्रा का अनुभव लिया ही होगा। कैसे रेलगाड़ी अपनी रफ्तार कम-ज्यादा करती रहती है और विभिन्न स्टेशनों पर एक निश्चित समय तक रुक रुककर यात्री को अपनी मंजिल तक पहुंचाती है।
ठीक उसी तरह हम सभी की जीवन यात्रा भी तय होती है। कभी विपरीत परिस्थितियों में कुछ वक्त के लिये धीमी हो जाती है तो कभी जीवन के सुखदायक वक्त में अनवरत तेजी से भागती है।
इस भागती दौड़ती जिंदगी को अगर कोई जीवंत बनाये रखता है तो वे है हमारी खट्टी-मिट्टी यादों के सानी हमारे रिश्ते। कभी कोई दोस्त होता है तो कभी परिवार का कोई सदस्य। हम सभी ऐसे ही रिश्तों से घिरे रहते है। कुछ इनमें हमारे राजदार होते है तो कुछ हमसे खफा रहते है। कुछ हमारी कमजोरी होती है तो कुछ हमारी ताक़त।
मित्र हर्षित ने अपने कहानी संग्रह हमनफस से अपने जीवन की वास्तविक घटनाओं को कहानियों के रूप में रूबरू करवाया है।
हमनफ़स 25 कहानियों को 235 पन्नों में समाए हुए हर्षित जी के जीवन के अनुभवों का पुलिंदा है जिसमे वे “लेखक के परिचय” से ही पाठक से जुड़ जाते है और अंत तक वो जुड़ाव बना रहता है।

लेखक उनके बचपन से ही लेखन कार्य में उनकी रुचि को बख़ूबी दर्शाता है। इनके लेखन में एक ख़ास किस्म का क़िस्सागोईपन है जिसमे पाठक ही कहानी का असल क़िरदार बन जाता है और जब जब किरदार भावनात्मक होते है इनका लेखन आंखों के पौर गीले कर देता है। यही एक लेखक की सफलता है।
पुस्तक की शुरुआती 4 कहनियां हमनफ़स, सांवली, हैप्पी बर्थडे और प्यारी दीदु लेखक के बाल्यकाल के हठीपन के सुहावने स्वरूप को रखती हैं जो इस पूरी पुस्तक की जान कह सकते है।
इन कहानियों में सांवली से लेखक बचपन मे ही अपनी माँ से वियोग को समझने की कोशिश में ही रहते है कि हैप्पी बर्थडे कहानी में पिता से भी दूरियां बढ़ जाती है जैसे- तैसे करके वह हमनफ़स कहानी में अपनी अध्यापिका से लगाव बनाते ही हैं कि वह भी दूर हो जाती है और अपने सांसारिक जीवन में व्यस्त हो जाती हैं।
प्यारी दीदू में वे अपनी बहन से खट्टे-मिठ्ठे रिश्ते को दिखाते हैं जो एक बार में अपनी कहानी सी लगती है और बालहठ में घर छोड़कर दी जाने वाली आम धमकी को वो असल मे जी लेते हैं।
जैसे-जैसे पुस्तक आगे बढ़ती है जिंदगी की अप्रत्याशित घटनाओं ने हर्षित के जीवन को धीमा बना दिया और उसके हठीपन की साफ-साफ झलक उसके साथ अपने आप आ जाती है। पुस्तक बार्बी डॉल, पाकीजा और सम्पूर्ण पारिवारिक रिश्तों की लापरवाही से रूबरू करवाती है तो कहीं यह पुस्तक समाज के डर को घिनौना बताने की कोशिश करती है जिसमे समाज वास्तविक रूप में इन्वॉल्व तो नहीं पर छद्म रूप से अपने प्रभाव को दिखाता है। कुछ मामलों में समाज मौन रहकर भी चीखता रहता है तो कुछ मुद्दों में जहाँ इसे चीखना चाहिए वहाँ मौन प्रतीत होता है। समाज का यूं मौन रहना अपने आप मे एक विद्रोह को जन्म देता है।
जैसे-जैसे पुस्तक आगे बढ़ती है, भले ही कहानी रूप में, पर जब आप एक सजग पाठक के तौर पर पढ़ते है तो आप डॉट्स मिलाते हैं और यही आदत पाठक का पुस्तक के साथ जुड़ाव बनाये रखती है। हालांकि पाठक की इस आदत के चलते ही लेखक के लिए बहुत मुश्किल हो बनता है कि वो अपने पाठक को अपनी कहानियों से बांधे रखें पर यहाँ हर्षित जी कहानियों के बजाय समाजिक सीख और अनुभवों की तरफ निकल पड़ते हैं और कहानी को छोड़कर ऐसा लगता है सेल्फ हेल्प बुक के रूप में अपनी पुस्तक को आगे बढ़ाते हैं।
एक विशेष वर्ग को ध्यान में रखकर लिए इस कदम को व्यापक पाठक कहानियों वाली पुस्तक में अनुभवों को पचा नही पाता और मेरे साथ भी यही हुआ मुझे ये अनुभव कहानी रूप में ही चाहिए थे।
थिशिस ऑफ लव और धर्म दोनो पूर्ण रूप से अनुभव है और जो नए नए पाठकों को लुभा सकते है पर एक सजग पाठक को ये दोनों अखरते ही है।

लेखक का ध्यान समाज मे सेक्स लाइफ से जुड़ी अज्ञानता को दूर करने पर भी दिखता है पर वो कहानी रूप में कम अनुभव रूप में ज्यादा लगता है।

इस पुस्तक में हर कहानी के साथ एक इलुस्ट्रेशन पिक्चर भी जो मेरा ध्यान आकर्षित करती रही है ये काम तारीफ के लायक है।मुझे इन इलुस्ट्रेशन ने लेखक की कहानी से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है और साथ मे पुस्तक को भी चार चांद लगाए है।
मेरी पसंदीदा इलुस्ट्रेशन लेखक के परिचय वाली रही जिसमे लेखक बचपन में अपनी माँ से बिछुड़ने के बाद पिताजी से जुड़ने के लिए पत्राचार किया करते थे वो पत्राचार के दौरान लेखक के अपने पिता के प्रति आत्मीय प्रेम को खिंचता इलुस्ट्रेशन था जिसने बहुत प्रभावित किया।

वेडिंग सगा से पुस्तक को पुनः गति मिलती है और शगुन और वेडिंग सगा कहानियों में लेखक ने भारतीय शादियों का सुंदर चित्रण किया है।वेडिंग सगा में युवक युवक्तियों के मेल-मिलाफ़ और फिर उम्मीदों के बवंडर के बाद फिर से मिलने की तसल्ली के साथ विदाई होती है।
वही शगुन में शादियों के जोड़े बनाने और बिगड़ने की जिद्दोजहद को एक खूबसूरत हमनफस के मिलने के साथ पुस्तक का समापन होता है।

हम सभी ने भारतीय रेल यात्रा का अनुभव लिया ही होगा।कैसे परिस्थितियों के साथ रेलगाड़ी अपनी रफ्तार कम-ज्यादा करती रहती है और विभिन्न स्टेशनों पर एक निश्चित समय तक रुक रुककर यात्री को अपनी मंजिल तक पहुंचती है।
ठीक उसी प्रकार हम सभी की जीवन यात्रा भी तय होती है। कभी विपरीत परिस्थितियों में कुछ वक्त के लिये धीमी हो जाती है तो जीवन के सुखदायक वक्त में ये अनवरत तेजी से भागती है।
इस भागती दौड़ती जिंदगी को अगर कोई जीवंत बनाये रखता है तो वे है हमारी खट्टी-मिट्टी यादे के सानी हमारे रिश्ते।
कभी कोई दोस्त होता है तो कभी परिवार का कोई सदस्य।
हम सभी ऐसे ही रिश्तों से घिरे रहते है।कुछ इनमें हमारे राजदार होते है तो कुछ हमसे खफा रहते है। कुछ हमारी कमजोरी होती है तो कुछ हमारी ताक़त।
ऐसे ही रिश्तों और जिंदगी के अनुभवों पर मित्र हर्षित अपनी पुस्तक हमनफस से अपने जीवन की वास्तविक घटनाओं को कहानियों के रूप में अपनी पुस्तक से रूबरू करवाया है।

हमनफ़स 25 कहानियों को 235 पन्नों में समाए हुए हर्षित जी के जीवन के अनुभवों का पुलिंदा है जिसमे वे “लेखक के परिचय” से ही पाठक से जुड़ जाते है और अंत तक वो जुड़ाव बना रहता है।

हर्षित जी का लेखक उनके बचपन से ही लेखन कार्य में उनकी रुचि को बख़ूबी दर्शाता है।
इनके लेखन में एक ख़ास किस्म का क़िस्सागोईपन है जिसमे पाठक ही कहानी का असल क़िरदार बन जाता है और जब जब किरदार भावनात्मक होते है इनका लेखन आंखों के पौर गीले कर देता है।
यही एक लेखक की सफलता है।

पुस्तक की शुरुआती 4 कहनिया हमनफस,सांवली,हैप्पी बर्थडे और प्यारी दीदु लेखक के बाल्यकाल के हट्टीपन के सुहावने स्वरूप को रखती है जो इस पूरी पुस्तक की जान कह सकते है।
इन कहानियों में सांवली से लेखक बचपन मे ही अपनी माँ से वियोग को समझने की कोशिश में ही रहते है कि हैप्पी बर्थडे कहानी में पिता से भी दूरियां बढ़ जाती है कैसे तैसे करके वह हमनफ़स कहानी में अपनी अध्यापिका से लगाव बनाते है कि समय से वह भी दूर हो जाती है और अपने सांसारिक जीवन मे व्यस्त हो जाती है।
प्यारी दीदू में वे अपनी बहन से खट्टे-मिठ्ठे रिश्ते को दिखाते है जो एक बार मे अपनी कहानी सी लगती है और बचपनी हट्टीपन में घर छोड़कर दी जाने वाली आम घर छोड़ने की धमकी को वो असल मे जी लेते है।

जैसे-जैसे पुस्तक आगे बढ़ती है जिंदगी के अप्रत्याशित घटनाओं ने हर्षित के जीवन को धीमा बना दिया और उसके हट्टीपन की साफ साफ झलक उसके साथ अपने आप आ जाती है।
पुस्तक खुशी ,बार्बी डॉल, पाकीजा और सम्पूर्ण से पारिवारिक रिश्तों की लापरवाही से रूबरू करवाती है तो कही ये समाज के डर को घिनोना बताने की कोशिश करती है।जिसमे समाज वास्तविक रूप में इन्वॉल्व तो नही पर छद्म में रूप ये अपने प्रभाव को दिखाता है।कुछ मामलों में समाज मौन रहकर भी चीखता रहता है तो कुछ मुद्दों में जहाँ इसे चीखना चाहिए वहाँ मौन प्रतीत होता है समाज का यूं मौन रहना अपने आप मे एक विद्रोह को जन्म देता है।
जैसे-जैसे पुस्तक आगे बढ़ती है भले ही हो कहानी रूप में पर जब आप एक सजग पाठक के तौर पर पढ़ते है तो आप डॉट्स मिलाने लगते है और यही आदत पाठक को पुस्तक के साथ जुड़ाव बनाये रखती है हालांकि पाठक के इस आदत के चलते ही लेखक के लिए बहुत मुश्किल हो बनता है कि वो अपने पाठक को अपनी कहानियों से बांधे रखें पर यहाँ हर्षित जी कहानियों के बजाय समाजिक सीख और अनुभवों की तरफ निकल पड़ते है और कहानी रूप को छोड़कर अनुभव रूप में अपनी पुस्तक को आगे बढ़ाते है और ये एक कमजोर कड़ी साबित होती है। एक विशेष वर्ग को ध्यान में रखकर लिए गए इस कदम को व्यापक पाठक वर्ग कहानियों वाली पुस्तक में पचा नही पाता और मेरे साथ भी यही हुआ मुझे ये अनुभव कहानी रूप में ही चाहिए थे। ‘थिशिस ऑफ लव’ और ‘धर्म’ दोनो पूर्ण रूप से प्रवचन लगते हैं जो नए नए पाठकों को लुभा सकते है पर एक सजग पाठक को ये दोनों अखरते ही है।
लेखक का ध्यान समाज मे सेक्स लाइफ से जुड़ी अज्ञानता को दूर करने पर भी दिखता है पर वह भी कहानी रूप में कम आख्यान रूप में ज्यादा लगता है।
इस पुस्तक में हर कहानी के साथ एक इलुस्ट्रेशन पिक्चर भी है जो मेरा ध्यान आकर्षित करती रही है ये काम तारीफ के लायक है। मुझे इन इलुस्ट्रेशन ने लेखक की कहानी से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है और साथ में पुस्तक को भी चार चांद लगाए हैं।
वेडिंग सगा से पुस्तक को पुनः गति मिलती है और शगुन और वेडिंग सगा कहानियों में लेखक ने भारतीय शादियों का सुंदर चित्रण किया है। वेडिंग सागा में युवक युवतियों के मेल-मिलाफ़ और फिर उम्मीदों के बवंडर के बाद फिर से मिलने की तसल्ली के साथ विदाई होती है। शगुन में शादियों के जोड़े बनाने और बिगड़ने की जद्दोजहद में एक खूबसूरत हमनफस के मिलने के साथ पुस्तक का समापन होता है।

भाषा भी पूरी पुस्तक में ग्राह्य और सरल है। उर्दू (फारसी) शब्दों का प्रयोग अच्छा है और भावनाओं को गहराई देने में लेखक ने प्रयोग किया है। संवाद के स्तर पर भाषा आज के युवा पीढ़ी के करीब समझी जा सकती जिसमे इंग्लिश का भी बीच बीच मे जहां जरूरत आन पड़ी है वहां इस्तेमाल किया गया है।

किसी भी कहानी संग्रह की सभी कहानियों से पूर्ण उत्कृष्टता की उम्मीद नहीं की जा सकती है लेकिन एक कहानी संग्रह को सफल बनाने के लिए आधी कहानियां भी पर्याप्त हैं और यह संग्रह उस सीमा से ऊपर ही है। पुस्तक की सफलता की आशा के साथ शुभकामनाएं।

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