“मेरा गाँव”
धूप और छाँव ये मेरा गाँव,
तालों पर चलता,
ये डगमग नाँव,
बरगद का पेड़,
तालों का किनारा,
शाम जहाँ बैठे,
वो मन्दिर पुराना,
भाभी के हंसते लब,
भैया डांटे जब
छुपते थे जहाँ,
उनका आँचल अब,
धूप में भागते वो नन्हें पांव,
धूप और छाँव…….
रात का सन्नाटा,
हवाओं की सरसराहट,
ममता भरी थपकी,
जो देते थे राहत,
बनते थे कन्हैया,
करके माखन चोरी,
हरकते हमारी,
बड़ी नटखट और भोली,
रंग गुलाल से,
भीगी कितनी ही होली,
हसते रोते उठती,
कितनी ही डोली,
नदी का किनारा,
और बरगद की छाँव,
धूप और छाँव,
ये मेरा गाँव।
#Prakriti_ Dipa sahu
Tilda Raipur (C.G.)