पद्मलोचन शर्मा मुंहफट की तीन रचनाएं
हम क्या थे और क्या हो गए
जीने के अब सारे-
अर्थ ही खो गए
सोचें हम क्या थे और
क्या हो गए?
“मैं” का भाव प्रबल है
“हम” का भाव विलुप्त है
शरीर जाग रहा है
लेकिन आत्मा सुप्त है
स्वार्थ की चादर तान
स्वप्न में खो गए
हम क्या थे और
क्या हो गए?
धारणा संयुक्त परिवार की
आज खंडित है
स्वार्थ और पाप की पूँजी
महिमामण्डित है
आम की जगह क्यूँ
बबूल बो गए
हम क्या थे और
आज क्या हो गए?
पहले हम थे, हमारे थे
अब मैं और मेरा है
अभिमन्यु के आगे
दुश्मनों का घेरा है
निर्लज्जता का भार
सहजता से ढो गए
हम क्या थे और
क्या हो गए.
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जोकर
लोग मुझे देखकर हंसते हैं
मैं लोगों को हँसाता हूँ,
हास्य के सुनहरी आवृति में
लोगों को फँसाता हूँ,
दुनिया कहती है मैं जोकर हूँ
मैं विसंगति हूँ,परिस्थितिजन्य
ठोकर हूँ.
कभी मेरे अंतर्मन में झाँको
अगर तुममे दम है,
मैं पीड़ा की वो पराकाष्ठा हूँ
जिसके आगे दुनिया के सभी-
ग़म बहुत कम है,
फिर भी हँसता हूँ, हँसाता हूँ
लोगों को बहलाता हूँ,
आहत अंतर्मन और हँसना
सचमुच में एक कला है,
इसलिए रुलाने के बजाय हँसाने
में ही भला है,
आपने क्या किसी गधे को हँसते
हुए देखा है?
हास्य के बवंडर में फँसते हुए देखा है?
आप कहेंगे बिल्कुल नही-
मित्रों, इंसान और पशु में कुछ तो
फर्क दिखना जरूरी है,
आप जानवर नही है ये सिद्ध
करने आपको हँसना जरूरी है,
लोग गैरों पर हँसते हैं मैं खुद पर
मित्र कभी आप खुद पर हँसकर देखें
कल्पना से ही कलेजा हिल जायेगा
ये मुखौटों वालों का कलेजा नही
जो दस रुपए किलो मिल जाएगा,
इसलिए, मैं कभी विदूषक, कभी जोकर
बनकर आपको फँसाता हूँ
भीतर- भीतर बहुत रोता हूँ यारों
मगर आपको हँसाता हूँ।।
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मैं फिर भी बढूंगा
मँझधार में है कश्ती,
लहरों से लड़ूँगा
ऐ भँवर आजमा ले
मैं फिर भी बढ़ूँगा
1
रुकना मना है
ये जीवन में ठाना,
मेरे हौसले को भी है
संकट ने माना
है सीढ़ियों में फिसलन
मैं फिर भी चढूँगा
ऐ भँवर आजमा ले
मैं फिर भी बढ़ूँगा
2
भले ही राहों में
चुभते हो काँटे,
पिया है गरल को
अमृत ही बाँटें
डरे मुझसे डर भी
मैं क्यूँ डरूँगा
ऐ भँवर आजमा ले
मैं फिर भी बढ़ूँगा
3
चुनौती बड़ी हो
तभी तो मज़ा है,
मर- मर के जीना
स्वयं में सजा है
कदम लड़खड़ाये
मैं फिर भी अ डूंगा
ऐ भँवर आजमा ले
मैं फिर भी बढ़ूँगा
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