कहानी : विकास-सेवा
असग़र वजाहत
‘र’ ने अपने दोस्त ‘स’ से कहा – मैं तुम्हारा विकास करना चाहता हूं।
‘स’ ने जवाब दिया – नहीं नहीं यह कैसे हो सकता है… मैं तुम्हारा विकास करूँगा।
‘पहले आप’, ‘पहले आप’ के तर्ज़ पर दोनों में बहस होने लगी पर बात बढ़ते- बढ़ते काफी बढ़ गई।
उनके बीच बड़ी तीखी बहस हुई । उसके बाद गाली गलौज हुई । फिर मारा- पीटी हुई । उसके बाद चाकू चले । उसके बाद उन्होंने एक दूसरे पर गोलियां चलायीं । फिर उन्होंने माफिया ग्रुप को एक दूसरे की हत्या कराने की सुपारी दी। दोनों ने एक दूसरे के बाल बच्चों का अपहरण कराने की भी कोशिश की।
एक दूसरे के खिलाफ जान से मार देने की धमकी देने की एफ आई आर भी दर्ज कराई । दोनों एक दूसरे की शक्ल देखना तो दूर नाम तक नहीं सुनना चाहते थे।
एक दूसरे को गालियां देते हुए वे कहा करते थे कि उसकी हिम्मत है, वह मेरा विकास करना चाहता है। मैं तो उसे अपना दोस्त समझता था और वह कहता है कि मेरे विकास करेगा ।
एक दिन उन दोनों का सामना हो गया । दोनों खूंखार दरिंदों की तरह लड़ने लगे। बहुत देर तक लड़ाई चली। लड़ाई में ‘स’ हार गया और ‘र’ जीत गया।
लड़ाई में जीतने के बाद ‘र’ ने पत्थर की चट्टान पर खड़े होकर घोषणा की कि अब ‘स’ का विकास हो गया है। उसने यह भी कहा कि ऐसा हो नहीं सकता कि दो लोग आपस में एक दूसरे का विकास करें। क्योंकि विकास कोई करता है और किसी का होता है। उसी तरह जैसे सरकार जनता का विकास करती है। जनता तो सरकार का विकास नहीं करती न? क्या कभी किसी मंत्री, बड़े अधिकारी, उद्योगपति या ठेकेदारों का किसी ने विकास किया है? क्या कभी किसी की यह हिम्मत हुई कि उनका विकास करे ?
उसने भाषण के अंत में “विकास जिंदाबाद” का नारा लगाया और पत्थर की चट्टान से नीचे उतर गया।
भाषण सुनने वाले समझ गए कि अब ‘र’ ने देश सेवा करने का पक्का इरादा कर ही लिया है और वह किसी के रोके न रुकेगा।