अमृत राय : 100 वीं जयंती पर याद
प्रेमचन्द के छोटे बेटे अमृत राय की आज जन्म शती है। अमूमन हम उनके साहित्यिक अवदान पर कम ही बात करते हैं या जानते हैं। यहीं फेसबुक में वीरेंद्र यादवजी की वाल पर उनपर यह महत्वपूर्ण लेख मिला –
आज अमृत राय के शताब्दी वर्ष (3 सितम्बर 1921) का अत्यंत ठंडेपन के साथ समापन हो रहा है. हिंदी समाज की अपने एक महत्वपूर्ण लेखक के प्रति यह उदासीनता गंभीर चिंता व विचार का विषय होना चाहिए. अमृत राय एक श्रेष्ठ जीवनीकार, संपादक, अनुवादक, उपन्यासकार, आलोचक, नाटककार तथा विचारक थे. उनके द्वारा लिखित प्रेमचंद की जीवनी ‘कलम का सिपाही’ हिंदी का एक गौरव ग्रंथ है. छपते ही उसे साहित्य अकादमी सम्मान दिया गया था.
‘अग्निदीक्षा’ ‘आदि विद्रोही’ और ‘समरगाथा’ सरीखे उनके अनुवाद हिंदी पाठकों की जुबान पर हैं. भाषा के प्रश्न पर उन्होंने ‘ए हाउस डिवाइडेड’ शीर्षक से अंग्रेजी में महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी थी. प्रेमचंद के बाद ‘हंस’ का कुशल संपादन करते हुए वे अंग्रेज़ तथा भारत सरकार दोनों के कोप के शिकार हुए थे. आजाद भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून में उनकी गिरफ्तारी और जेल भी हुई थी. वे वामपंथी सांस्कृतिक आंदोलन की नेतृत्वकारी भूमिका में रहे थे. कम्युनिस्ट पार्टी और प्रगतिशील लेखक संघ से उनका गहरा जुड़ाव रहा था. वे बनारस में कम्युनिस्ट पार्टी के होलटाइमर और प्रगतिशील लेखक संघ के सचिव भी रहे थे. 1953 के इलाहाबाद के लेखक सम्मेलन के प्रमुख आयोजकों में भी वे शामिल थे. बाद के दौर में भी 1980 और 1982 के प्रगतिशील लेखक संघ के क्रमशः जबलपुर व जयपुर के राष्ट्रीय सम्मेलनों का उन्होंने उद्घाटन किया था. मैंने उन्हें इन्ही सम्मेलनों में देखा सुना था.
‘साहित्य में संयुक्त मोर्चा’ की बहस अमृत राय ने ही चलाई थी. सत्तर के दशक में ‘सांप्रदायिकता का सवाल’ विषय पर 1968 में ‘ मुक्तधारा’ में उस बहस का आरंभ और समापन अमृत राय ने ही किया था जिसमें डा. नामवर सिंह, हरिशंकर परसाई और गिरीश माथुर आदि ने गर्मजोशी के साथ हिस्सा लिया था . उर्दू के क्षेत्रीय भाषा होने के प्रश्न पर भी उन्होंने विचारोत्तेजक बहसतलब हस्तक्षेप किया था. ‘डा. जिवागो’, ‘लोलिता ‘ और ‘नदी के द्वीप ‘ उपन्यासों पर उनके द्वारा लिखे गए आलोचनात्मक लेख भी लंबे समय तक चर्चा में रहे थे.” अज्ञेय के ‘नदी के द्वीप’ के बारे यह लिखकर उन्होंने साहित्यिक भूचाल ही ला दिया था कि ” ‘नदी के द्वीप’ एक चरम अहंकारी, व्यक्तिवादी आदमी की वासना की कहानी है, प्रेम हम उसे नहीं कह सकते. प्रेम की कहानी लिखने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन देखना होगा कि जो प्रेम चित्रित है वह जीवन को शक्ति और वेग और सौंदर्य देनेवाला प्रेम है या निरी वासना, ऐन्द्रिक भूख.” अमृत राय का यह हस्तक्षेपकारी लेखन उनकी पुस्तकों ‘साहित्य में संयुक्त मोर्चा’, ‘आधुनिक भावबोध की संज्ञा’,और ‘सहचिंतन’ आदि में उपलब्ध है. उनकी कुल लगभग चालीस पुस्तकें हैं.
इलाहाबाद से ‘हंस’ प्रकाशन का संचालन भी उन्होंने किया. पारिवारिक संयोग से वे प्रेमचंद के बेटे और सुभद्रा कुमारी चौहान के दामाद थे. उनकी पत्नी सुधा चौहान भी ‘मिला तेज से तेज’ शीर्षक सुभद्रा कुमारी चौहान की जीवनीकार होने सहित एक समर्थ लेखिका थीं. जाने माने बुद्धिजीवी व अंग्रेजी लेखक आलोक राय उनके बेटे हैं. सत्यजीत राय, सुभाष मुखोपाध्याय और हुसैन से उनकी गहरी मैत्री थी. ‘सद्गति’ फिल्म के डायलॉग अमृत राय ने ही लिखे थे.
अफ़सोस कि हिंदी के एक ऐसे महत्वपूर्ण लेखक को शताब्दी वर्ष में भी लगभग विस्मृत कर दिया गया. उम्मीद की जानी चाहिए कि अगले एक वर्ष में उन पर कुछ प्रकाशन, आयोजन अवश्य होगें. उनकी स्मृति में सादर नमन.
पियूष कुमार