November 16, 2024

हिन्दी साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत मेरे ग़ज़ल संग्रह फल खाए शजर से यह ग़ज़ल प्रस्तुत है–

बहर – बहरे मुतक़ारिब असलम मक़बूज़ मुसम्मन
अर्कान – फ़ऊलु फ़ैलुन फ़ऊलु फ़ैलुन
वज़्न – 121 22 121 22

🌹 ग़ज़ल 🌹

मैं ज़ख़्म दिल का दिखाऊँ कैसे?
कहानी ग़म की सुनाऊँ कैसे?

गले किसी को लगाऊँ कैसे?
क़सम तुम्हारी भुलाऊँ कैसे?

रक़ीब के हो गये हो तुम तो,
सबक वफ़ा का सिखाऊँ कैसे?

बनी हैं यादें ही ज़िन्दगी अब,
तो इनको दिल से मिटाऊँ कैसे?

तुम्हारे कारण हुआ हूँ रुसवा,
नज़र किसी से मिलाऊँ कैसे?

ख़ुदा नहीं तुम तुम्हारे आगे,
ये सर मैं अपना झुकाऊँ कैसे?

न तो दिवंगत हूँ औ’ न बूढ़ा,
पदक पुरस्कार पाऊँ कैसे?

दुआ की हद से भी जो परे है,
‘विजय’ उसे मैं बुलाऊँ कैसे?
विजय तिवारी, अहमदाबाद, गुजरात ( भारत)

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