November 16, 2024

“छत्तीसगढ़ी कविता और साक्षरता दिवस”

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युनेस्को ने 8 सितम्बर को “अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस” (International Literacy Day) 17 नवम्बर 1965 को घोषित किया था तत्पश्चात 08 सितम्बर 1966 से यह दिवस विश्व भर में मनाया जाने लगा।

जनकवि कोदूराम “दलित” ने सन् 1959 में अपनी छत्तीसगढ़ी भाषा की कविता के माध्यम से आम जन को अनिवार्य शिक्षा के महत्व के बारे में जागरूक करने का प्रयास किया था।

कवि, साहित्यकार और कलाकार अपने कर्तव्य का निर्वाह करने के लिए किसी “दिवस” का इंतजार नहीं करते। 1959 में लिखी गई इस छोटी सी कविता में शाला-भवन, पेय-जल की व्यवस्था, कृषि-कार्य का ज्ञान, अतिरिक्त हुनर की आवश्यकता, मध्याह्न भोजन, बेटी पढ़ाओ का संदेश, शिक्षा के महत्व, शिक्षा की अनिवार्यता, सहकारिता की भावना आदि समस्त मूलभूत आवश्यकताओं के लिए ग्रामीणों को उनकी ही लोक-भाषा में जागरूक किया गया है। लीजिए दलित जी की कविता पढ़िए –

अनिवार्य शिक्षा

पढ़े लिखे बर जाव-गुन सीखे बर जाव।
पढ़-लिख के भइया ! बने नाम ला कमाव।।

(1)
अपन गाँव मा शाला-भवन , जुरमिल के बनाव
ओकर हाता के भितरी मा , कुँआ घलो खनाव।
फुलवारी अउ रूख लगाके, अच्छा बने सजाव।
सुन्दर-सुन्दर पोथी-पुस्तक, बाँचे बर मँगवाव।
जउने चाहू होही, दू-दू हाथ तो लगाव ।

गुन गाँधी जी के गाव
पढ़-लिख के भइया !
बने नाम ला कमाव।

(2)
गुरूजी मन ला सदा सब किसम, खुश राखत तुम जाव
छै से ग्यारा बरिस भितर के, सब लइका पढ़वाव।
टूरा हो के टूरी सब ला,ज्ञानी-गुनी बनाव।
किसिम-किसिम के चिजबस गढ़ना, संगे सँग सिखवाव।
बनैं कमाईपूत सबो झन अइसन जुगुत जमाव।
खेती-बारी भी करवाव।
पढ़-लिख के भइया!
बने राज ला चलाव।।

(3)
अपन गाँव के शिक्षा ला,जल्दी अनिवार्य कराव।
सब लइका ला पढ़ना परिही, घर-घर-मा समझाव।।
वो लइका ला दोपहरी मा, भोजन घलो खवाव।
अउ गरीब गुरबा ला कपड़ा, पुस्तक स्लेट देवाव।
सिखो-पढ़ो के सबला विद्या के अँजोर मा लाव।
उँकर किस्मत ला चमकाव।
पढ़-लिख के भइया!
बने राज ला चलाव।।

रचना -जनकवि कोदूराम “दलित”
रचना काल – दिनांक 22 अगस्त 1959

(प्रस्तुतकर्ता – अरुण कुमार निगम)

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