तीजा (तीज)
हमारे यहाँ छत्तीसगढ़ में महिलाओं का सबसे बड़ा त्यौहार है तीजा। पति के निमित्त किया जा रहा यह व्रत बहुत कठिन है। इसमें तीज की पहली रात करेले की सब्जी या इधर मिलने वाली कड़वी भाजी के साथ ‘करू भात’ खाया जाता है। करू भात इसलिए कि प्यास नही लगती क्योंकि दूसरे दिन निर्जला व्रत किया जाएगा। सुबह से ही न दिन में खाना न रात में खाना न पीना। रात में शिव के परिवार का पूजन, रात्रि जागरण, सुबह विसर्जन, स्नान, श्रृंगार और पूजन। इस अवसर पर व्यंजनों की महक से रसोई गमकती रहती है। हमारे यहाँ ठेठरी, खुर्मी, चौसेला, बोबरा, गुझिया, सलोनी, पपची, तिखुर जैसी मिठाई बनती है। आमतौर पर उपवास ख़त्म होने के बाद के भोजन में मुख्य सब्जी ‘इडहर’ की होती है। यह अरबी के पत्तों में पिसे हुए उड़द की दाल को लपेटकर भाप में पकाया जाता है फिर टुकड़ों में काटकर मठे की खटाई में पकाया जाता है सब्जी की तरह। मुझे यह डिश सबसे अधिक पसंद है।
पर इस त्यौहार में मुझे व्यक्तिगत रूप से यह उचित प्रतीत नहीं होता कि महिलाएँ पति के नाम पर इतना कठिन व्रत करें। वे पति के लिए व्रत करती हैं और बहुत से पति अपने एन्जॉय करने की आजादी की तरह इसे देखते हैं। अभी इस मौके पर कुछ वीडियोज और जोक्स देखे हैं जिसमें पत्नी के तीजा के लिए मायके जाने पर कपड़े, बर्तन, पानी, सफाई के लिए पति को परेशान दिखाया जाता है। जाहिर है, पत्नी का रोल एक कामगार की तरह समझा गया है। तीजा ही क्यों, कविताओं में भी कवि पत्नी के घर में नहीं रहने पर कपड़े, बर्तन, जाले आदि का जिक्र करते हैं बजाय उसका प्रेम, सम्बल, ममता याद करने के। मैने हमेशा अपनी पत्नी को कहा है कि उत्सव मनाओ, निर्जला मत रहो बल्कि खाओ पियो, पर मेंटल कंडीशनिंग ऐसी है महिलाओं की कि इससे बाहर नहीं आ पातीं। अभी भी मेरी राय है कि तीजा मनाना ही है तो खा पी कर करें, ईश्वर यदि है तो तब भी खुश ही होगा।
छत्तीसगढ़ में तीजा पति के निमित्त यह व्रत उससे दूर मायके में रहकर किया जाता है। अन्य प्रदेशों में ऐसा चलन नहीं है। इसका कारण मुझे यह प्रतीत होता है, कठिन उपवास के कारण काम का मानसिक दबाव ससुराल में सहज होने नही देता है और मायके में यह स्वतंत्रता है। छत्तीसगढ़ में तीजा की सबसे ख़ास बात है कि माताओं बहनो को बाकायदे उनके घर से भाई या पिता लेने आते हैं। अगर भाई न आए तो लेवाल (लानेवाला) आता है जिसके साथ महिलाएँ अपने माता-पिता के घर जाती हैं। यह त्यौहार मायके का है। यह इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि माता-पिता के घर में उनका भाव और अधिकार बनाए रखता है। मायके जाने की ख़ुशी इस त्यौहार में महिलाओं के चेहरे पर दोगुनी होकर चमकती है। सिंगार की हुई बहन बेटियां बरसों पुरानी सहेलियों के संग ससुराली गंभीरता से मुक्त खिलखिल होती रहती हैं। यह दृश्य भावपूर्ण लगता है मुझे। यह उन्मुक्तता हर जगह कायम रहे, यह कामना है। छत्तीसगढ़ में अभी तीजहारिनें हमारे यहाँ बसों में, ट्रेनों में, हर तरह की गाड़ियों में या पैदल ही जाती दिखतीं हैं। लेवाल, बच्चे, छींट की रंग बिरंगी साड़ियां, झोला, बैग के यह दृश्य लोक में सर्वत्र इस वक्त दिख जाते हैं, जैसा कि इस तस्वीर में भी दिख रहा है। यह तस्वीर पांच साल पहले प्राण चड्ढा जी के वाल से ली है, उनका आभार ! तीजा के इस अवसर पर कवि मित्र रजत कृष्ण जी की एक कविता प्रस्तुत है जिसमें इस त्योहार का भावपूर्ण रूप उभर आया है जिसे पढ़कर सहज ही महसूस किया जा सकता है।
तीजहारिनें
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आज तीजा है
सुकाल हो
चाहे अकाल-दुकाल
हम भाई लोग
दौड़े-दौड़े जाएँगे
और बहनों को लिवा लाएँगे
हमारे संबंधों के मुख पर
यही चिटिक रंग-गुलाल
बाकी कब और क्या ?
तीजहारिन बहनें
मांगती हैं लंबी उमर
जन्म जन्मान्तर के लिए
घर उतरते साथ
पहले तो भरती हैं रस
इधर-उधर पसरे बारहमासी सूखे में
बढ़ाती हैं जीवन
रात ले-दे कर
सात-आठ तक खिंचते दीयों का
रहते तक
रोज लौटाती हैं
कभी अंचरा में बाँध ले गए
घाट-घरोंदा की खनक
रोज जगाती
पारा, मुहल्ला मंदिर देवाला
जो पाती होंगी
सो पाती होंगी
तीजहारीनें तीजा से
प्रकट में कितना उलटफेर जाती हैं
माँ की ममता
बाप का दुलार और भाइयों का प्यार !
– रजत कृष्ण
यह लिखते मन भर आता है, सभी दाई-दीदी बहिनी लोगों को भादो के बादल भर स्नेह और सम्मान। सभी तिजहारिनों को बहुत शुभकामनाएं