बहन
जब बहन को विदा किया
वह दूर किसी शहर चली गई घर बसाने
कितना रोई थी
रोते हुए
देर तक काँपती रही वह
हम सब एक-दूसरे की हिचकियाँ सुनते रहे
मैं नहीं गया उसके साथ
रथ के टूटे पहिये की तरह धँसा रहा
अब जब बहन किसी और शहर में है
उसके पास कैसे जा सकता हूँ
जीवन की लड़ाई में कोई अवकाश नहीं है
इस निष्ठुर समय में सिर्फ़ बहन निष्पक्ष रही
बहन रही करूणा से भरी
जिस शहर में बहन रही जब भी आया यह देखा
वह शहर मेरे लिए कभी कठोर नहीं हुआ
बहन ने कभी अनुचित नहीं कहा
बस इतना कहा- ठहर जाऊँ एक-दो दिन और उसके पास
जीवन के आपाधापी में बहन को कभी बता नहीं सका
वह जब कभी फुर्सत में एकटक देखती है
आकाश की ओर
सारे तारे चिड़ियाँ बन जाते हैं ।
रोहित ठाकुर
पेंटिंग – Mahesh