November 16, 2024

तुम इश्क़ करना
और ज़रूर करना
इस तरह से करना कि एक आंच तुम्हे छूते हुए गुज़रे।
तुम इश्क़ में राबिया होना
रूमी होना
और जहन्नुम होना।
एक बार ज़रूर होना।

तुम इश्क़ करना
मजारों को औने-पौने दामों पर खरीदना।
काबा को निगलना
बनारस पर हंसना
गंगा को नकारना
कृष्ण को जालसाज़ कहना।

लेकिन इश्क़ करना
ज़रूर करना।

अपने होने को तार-तार करना
भंग करना अपना कुँवारापन
और देखना कि कौन-सा पहाड़ टूटता है तुम पर।
नहीं टूटेगा कोई बाँध
न रस्सी
न डसेगा कोई साँप।

तुम इश्क़ करना और ऐसे करना
जैसे राधा ने कृष्ण को अपनी उम्र के साथ अपनाया।
और कृष्ण ने राधा को खुद में समाया।

तुम ऐसे चोरी करना हृदय की
जैसे मुक्तिबोध कविता सुनाते अँधेरे की।
जैसे अज्ञेय की कहानी रोती सभ्यता के एक दिन पर।
जैसे मारकेज़ का जादुई यथार्थवाद चुराता है हृदय।

किसी सीले हुए मौसम में पीसना अनाज
और भीगना केरल के मॉनसून में बेवजह।
पीना शिलौंग की हरी और तिब्बत की मक्खनी चाय।

पर इश्क़ करना
और ज़रूर करना।
चाहे बनना पड़े मुस्लिम से हिन्दू या हिन्दू से मुस्लिम।
या पहनना पड़े बड़ा सा पंजाबी चूड़ा या लगानी पड़े माथे पर बिंदी।
खानी पड़े गुजरात की मीठी कढ़ी या चखना पड़े मछली में पड़ा नमक।
तुम शहर मिलाना
रंग मिलाना
नक़्शे मिलाना
सरहदें मिलाना

पर इश्क़ करना।
ज़रूर करना।

जयंती ओझा

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