हिंदी की कविता
मैं हिंदी भारत की बेटी,राजभाषा कहलाती हूँ।
भाषाओं में ये ओहदा पाकर, मन ही मन इठलाती हूँ।
जन-जन की हूँ भाषा मैं, मैं भारत की आशा हूँ
पूरे देश को जोड़ रखा है,मैं वो मजबूत धागा हूँ।
लोगो को मैं लगती हूँ, प्यारी,चाहे कश्मीर हो या कन्याकुमारी,
अंग्रेजी से जंग हो जाती जारी,जब स्वाभिमान पर आती हूँ।
मैं हिंदी भारत की बेटी,राजभाषा कहलाती हूँ।
कोई कहता मुझे वर्तनी,कोई कहता व्याकरण है
कोई मुझे संस्कृति कहता आचरण है
कभी प्रेमचंद की लेखनी,तो कभी निराला की गान में
सूर, तुलसी,,मीरा ने मुझे लिखा, तो कभी जायसी की तान बन जाती हूँ
मैं हिंदी भारत की बेटी,राजभाषा कहलाती हूँ।
सुंदर हूँ, मनोरम हूँ, सरल हूँ, सहज हूँ,
सरलता और सादगी में निपुण, वाणी का वरदान हूँ।
है संस्कृत जननी में,लिपि है देवनागरी,
अपनेपन की मिश्री जैसे,सबके जबान से बोली जाती हूँ,
मैं हिंदी भारत की बेटी,राजभाषा कहलाती हूँ।
मैं ही स्वर,मैं ही व्यंजन,मैं भारत की हिन्दी हूँ,
जैसे है गगन में चांद-सूरज,मैं देश की बिंदी हूँ,
एकता की अनुपम परम्परा, मुझसे ही हिंदुस्तान है
जीवनरेखा बनकर काल को जीता है,कभी कालजयी भाषा कहलाती हूँ,
मैं हिंदी भारत की बेटी राजभाषा कहलाती हूँ।
जनभाषा, सम्पर्क भाषा,आधिकारिक भाषा नाम तो बहुत है,मेरे
लोगो ने मुझमें वेदना लिखी,आज मैं अपनी करुण कथा सुनाती हूँ
मैं इस देश की बेटी हूँ, मुझे भी सम्मान दो
और किसी चीज की आस नही,मुझे भी मेरा अधिकार दो,
पन्द्रह दिवस के पखवाड़े में क्यूँ पितरो सी आती हूँ?
जैसे श्राद्ध के बाद,अपने ही घर से बिसरा दी जाती हूँ।
मैं आज भी राष्ट्रभाषा नही! राजभाषा ही क्यूँ कहलाती हूँ
मैं हिंदी भारत की बेटी राजभाषा कहलाती हूँ,
भाषाओं में ये ओहदा पाकर,मन ही मन इठलाती हूँ
द्वारा
कु.कविता कन्नौजे
नर्सिंग ऑफिसर
बाल-शल्य चिकित्सा
विभाग(3C4)
एम्स रायपुर(छ. ग.)