“उड़ते बादल…”
आंखों ने देखने लगे हैं उड़ते बादल ।
आंखों में तैरने लगे हैं उड़ते बादल ।।
आंखों ने देखे थे हसीन सपने,
सपने कुचलने लगे हैं मतवाले बादल ।
सपने बादलों में घुल गया है,
घुलकर बरसने लगे हैं उमड़ते बादल ।
बादल जब-जब बरसते हैं,
सपनों को छलने लगे हैं बरसते बादल ।
सपने जब बादलों में सजते हैं,
आंखों को डराने लगे हैं गरजते बादल ।
आंखें जब जब बरसती है !
आंखें चुपचाप बरसती है !!
आंखों के संग नहीं रोते बादल,
आंखें परखने लगे हैं उड़ते बादल ।
आंखों ने देखने लगे हैं उड़ते बादल ।
आंखों में तैरने लगे हैं उड़ते बादल ।।
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज शाह ‘मानस’
नई दिल्ली-110015
मो.नं.7982510985
27.09.2021