November 16, 2024

अप्रकाशित, अनूदित रूसी कहानी – दुख

0

मूल लेखक : अन्तोन चेखव
अनुवाद : सुशांत सुप्रिय

” मैं अपना दुखड़ा किसे सुनाऊँ ? ”
शाम के धुँधलके का समय है । सड़क के खम्भों की रोशनी के चारों ओर बर्फ़ की एक गीली और मोटी परत धीरे-धीरे फैलती जा रही है । बर्फ़बारी के कारण कोचवान योना पोतापोव किसी सफ़ेद प्रेत-सा दिखने लगा है । आदमी की देह जितनी भी मुड़ कर एक हो सकती है , उतनी उसने कर रखी है । वह अपनी घोड़ागाड़ी पर चुपचाप बिना हिले-डुले बैठा हुआ है । बर्फ़ से ढँका हुआ उसका छोटा-सा घोड़ा भी अब पूरी तरह सफ़ेद दिख रहा है । वह भी बिना हिले-डुले खड़ा है । उसकी स्थिरता , दुबली-पतली काया और लकड़ी की तरह तनी सीधी टाँगें ऐसा आभास दिला रही हैं जैसे वह कोई सस्ता-सा मरियल घोड़ा हो ।
योना और उसका छोटा-सा घोड़ा , दोनों ही बहुत देर से अपनी जगह से नहीं हिले हैं । वे खाने के समय से पहले ही अपने बाड़े से निकल आए थे , पर अभी तक उन्हें कोई सवारी नहीं मिली है ।
” ओ गाड़ी वाले , विबोर्ग चलोगे क्या ? ” योना अचानक सुनता है ,
” विबोर्ग ! ”
हड़बड़ाहट में वह अपनी जगह से उछल जाता है । अपनी आँखों पर जमा हो रही बर्फ़ के बीच से वह धूसर रंग के कोट में एक अफ़सर को देखता है , जिसके सिर पर उसकी टोपी चमक रही है ।
” विबोर्ग ! ” अफ़सर एक बार फिर कहता है । ” अरे , सो रहे हो क्या ? मुझे विबोर्ग जाना है । ”
चलने की तैयारी में योना घोड़े की लगाम खींचता है । घोड़े की गर्दन और पीठ पर पड़ी बर्फ़ की परतें नीचे गिर जाती हैं । अफ़सर पीछे बैठ जाता है । कोचवान घोड़े को पुचकारते हुए उसे आगे बढ़ने का आदेश देता है । घोड़ा पहले अपनी गर्दन सीधी करता है , फिर लकड़ी की तरह सख़्त दिख रही अपनी टाँगों को मोड़ता है और अंत में अपनी अनिश्चयी शैली में आगे बढ़ना शुरू कर देता है । योना ज्यों ही घोड़ा-गाड़ी आगे बढ़ाता है , अँधेरे में आ-जा रही भीड़ में से उसे सुनाई देता
है , ” अबे , क्या कर रहा है , जानवर कहीं का ! इसे कहाँ ले जा रहा है , मूर्ख ! दाएँ
मोड़ ! ”
” तुम्हें तो गाड़ी चलाना ही नहीं आता ! दाहिनी ओर रहो ! ” पीछे बैठा अफ़सर ग़ुस्से से चीख़ता है ।
फिर रुक कर , थोड़े संयत स्वर में वह कहता है , ” कितने बदमाश हैं …
सब के सब ! ” और मज़ाक करने की कोशिश करते हुए वह आगे बोलता
है , ” लगता है , सब ने क़सम खा ली है कि या तो तुम्हें धकेलना है या फिर तुम्हारे घोड़े के नीचे आ कर ही दम लेना है ! ”
कोचवान योना मुड़ कर अफ़सर की ओर देखता है । उसके होठ ज़रा-सा हिलते हैं । शायद वह कुछ कहना चाहता है ।
” क्या कहना चाहते हो तुम ? ” अफ़सर उससे पूछता है ।
योना ज़बर्दस्ती अपने चेहरे पर एक मुस्कराहट ले आता है , और कोशिश करके फटी आवाज़ में कहता है , ” मेरा इकलौता बेटा बारिन इस हफ़्ते गुज़र गया साहब ! ”
” अच्छा ! कैसे मर गया वह ? ”
योना अपनी सवारी की ओर पूरी तरह मुड़ कर बोलता है , ” क्या
कहूँ , साहब । डॉक्टर तो कह रहे थे , सिर्फ़ तेज़ बुखार था । बेचारा तीन दिन तक अस्पताल में पड़ा तड़पता रहा और फिर हमें छोड़ कर चला गया … भगवान की मर्ज़ी के आगे किसकी चलती है ! ”
” अरे , शैतान की औलाद , ठीक से मोड़ ! ” अँधेरे में कोई
चिल्लाया , ” अबे ओ बुड्ढे , तेरी अक़्ल क्या घास चरने गई है ? अपनी आँखों से काम क्यों नहीं लेता ? ”
” ज़रा तेज चलाओ घोड़ा … और तेज … ” अफ़सर चीख़ा , ‘ नहीं तो हम कल तक भी नहीं पहुँच पाएँगे ! ज़रा और तेज ! ” कोचवान एक बार फिर अपनी गर्दन ठीक करता है , सीधा हो कर बैठता है और रुखाई से अपना चाबुक हिलाता
है । बीच-बीच में वह कई बार पीछे मुड़ कर अपनी सवारी की तरफ़ देखता है , लेकिन उस अफ़सर ने अब अपनी आँखें बंद कर ली हैं । साफ़ लग रहा है कि वह इस समय कुछ भी सुनना नहीं चाहता ।
अफ़सर को विबोर्ग पहुँचा कर योना शराबख़ाने के पास गाड़ी खड़ी कर देता है , और एक बार फिर उकड़ूँ हो कर सीट पर दुबक जाता है । दो घंटे बीत जाते हैं । तभी फुटपाथ पर पतले रबड़ के जूतों के घिसने की ‘ चूँ-चूँ , चीं-चीं ‘ आवाज़ के साथ तीन लड़के झगड़ते हुए वहाँ आते हैं । उन किशोरों में से दो लंबे और दुबले-पतले हैं जबकि तीसरा थोड़ा कुबड़ा और नाटा है ।
” ओ गाड़ीवाले ! पुलिस ब्रिज चलोगे क्या ? ” कुबड़ा लड़का कर्कश स्वर में पूछता है । ” हम तुम्हें बीस कोपेक देंगे । ”
* * * * * * * * * * * * * * *
योना घोड़े की लगाम खींचकर उसे आवाज़ लगाता है , जो चलने का निर्देश है । हालाँकि इतनी दूरी के लिए बीस कोपेक ठीक भाड़ा नहीं है , पर एक रूबल हो या पाँच कोपेक हों , उसे अब कोई एतराज़ नहीं … उसके लिए अब सब एक ही है । तीनों किशोर सीट पर एक साथ बैठने के लिए आपस में काफ़ी गाली-गलौज और धक्कम-धक्का करते हैं । बहुत सारी बहस और बदमिज़ाजी के बाद अंत में वे इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि कुबड़े लड़के को खड़ा रहना चाहिए क्योंकि वही सबसे ठिगना है ।
” ठीक है , अब तेज़ चलाओ ! ” कुबड़ा लड़का नाक से बोलता है । वह अपनी जगह ले लेता है , जिससे उसकी साँस योना की गर्दन पर पड़ती है ।
” तुम्हारी ऐसी की तैसी ! क्या सारे रास्ते तुम इसी ढेंचू रफ़्तार से चलोगे ? क्यों न तुम्हारी गर्दन … ! ”
” दर्द के मारे मेरा तो सिर फटा जा रहा है ,” उनमें से एक लम्बा लड़का कहता है । ” कल रात दोंकमासोव के यहाँ मैंने और वास्का ने कोंयाक की पूरी चार बोतलें चढ़ा लीं । ”
” मुझे समझ में नहीं आता कि आख़िर तुम इतना झूठ क्यों बोलते
हो ? तुम एक दुष्ट व्यक्ति की तरह झूठे हो ! ” दूसरा लम्बा लड़का ग़ुस्से में बोला ।
” भगवान क़सम ! मैं सच कह रहा हूँ ! ”
” हाँ , हाँ , क्यों नहीं ! तुम्हारी बात में उतनी ही सच्चाई है जितनी इसमें कि सुई की नोक में से ऊँट निकल सकता है ! ”
” हें , हें , हें … आप सब कितने मज़ाक़िया हैं ! ” योना खीसें निपोर कर बोलता है ।
” अरे , भाड़ में जाओ तुम ! ” कुबड़ा क्रुद्ध हो जाता है । ” बुढ़ऊ ,
तुम हमें कब तक पहुँचाओगे ? चलाने का यह कौन-सा तरीका है ? कभी चाबुक का इस्तेमाल भी कर लिया करो ! ज़रा ज़ोर से चाबुक चलाओ , मियाँ ! तुम आदमी हो या आदमी की दुम ! ”
योना यूँ तो लोगों को देख रहा है , पर धीरे-धीरे अकेलेपन का एक तीव्र एहसास उसे ग्रसता चला जा रहा है । कुबड़ा फिर से गालियाँ बकने लगा है । लम्बे लड़कों ने किसी लड़की नादेज़्दा पेत्रोवना के बारे में बात करनी शुरू कर दी है ।
योना उनकी ओर कई बार देखता है । वह किसी क्षणिक चुप्पी की प्रतीक्षा के बाद मुड़कर बुदबुदाता है , ” मेरा बेटा … इस हफ़्ते गुज़र गया । ”
” हम सबको एक दिन मरना है । ” कुबड़े ने ठंडी साँस ली और खाँसी के एक दौरे के बाद होठ पोंछे । ” अरे , ज़रा जल्दी चलाओ … खूब तेज ! दोस्तो , मैं इस धीमी रफ़्तार पर चलने को तैयार नहीं । आख़िर इस तरह यह हम सबको कब तक पहुँचाएगा ? ”
” अरे , अपने इस घोड़े की गर्दन थोड़ी गुदगुदाओ ! ”
” सुन लिया … बुड्ढे ! ओ नर्क के कीड़े ! मैं तुम्हारी गर्दन की हड्डियाँ तोड़ दूँगा ! अगर तुम जैसों की ख़ुशामद करते रहे तो हमें पैदल चलना पड़ जाएगा ! सुन रहे हो न बुढ़ऊ ! सुअर की औलाद ! तुम पर कुछ असर पड़ रहा है या नहीं ? ”
योना इन शाब्दिक प्रहारों को सुन तो रहा है , पर महसूस नहीं कर
रहा ।
वह ‘ हें , हें ‘ करके हँसता है । ” आप साहब लोग हैं । जवान हैं … भगवान आपका भला करे ! ”
” बुढ़ऊ , क्या तुम शादी-शुदा हो ? ” उनमें से एक लंबा लड़का पूछता है ।
” मैं ? आप साहब लोग बड़े मज़ाक़िया हैं ! अब बस मेरी बीवी ही
है … वह अपनी आँखों से सब कुछ देख चुकी है । आप समझ गए न मेरी बात । मौत
बहुत दूर नहीं है … मेरा बेटा मर चुका है और मैं ज़िंदा हूँ … कैसी अजीब बात है
यह । मौत ग़लत दरवाज़े पर पहुँच गयी … मेरे पास आने की बजाए वह मेरे बेटे के पास चली गयी … ”
योना पीछे मुड़कर बताना चाहता है कि उसका बेटा कैसे मर गया ! पर उसी समय कुबड़ा एक लम्बी साँस खींच कर कहता है , ” शुक्र है खुदा का ! आख़िर मेरे साथियों को पहुँचा ही दिया ! ” और योना उन सबको अँधेरे फाटक के पार धीरे-धीरे ग़ायब होते देखता है । एक बार फिर वह खुद को बेहद अकेला महसूस करता
है । सन्नाटे से घिरा हुआ … उसका दुख जो थोड़ी देर के लिए कम हो गया था , फिर लौट आता है , और इस बार वह और भी ताक़त से उसके हृदय को चीर देता है । बेहद बेचैन हो कर वह सड़क की भीड़ को देखता है , गोया ऐसा कोई आदमी तलाश कर रहा हो जो उसकी बात सुने । पर भीड़ उसकी मुसीबत की ओर ध्यान दिए बिना आगे बढ़ जाती है । उसका दुख असीम है । यदि उसका हृदय फट जाए और उसका दुख बाहर निकल आए तो वह मानो सारी पृथ्वी को भर देगा । लेकिन फिर भी उसे कोई नहीं देखता । योना को टाट लादे एक क़ुली दिखता है । वह उससे बात करने की सोचता है ।
” वक़्त क्या हुआ है , भाई ? ” वह क़ुली से पूछता है ।
” नौ से ज़्यादा बज चुके हैं । तुम यहाँ किसका इंतज़ार कर रहे हो ?
अब कोई फ़ायदा नहीं , लौट जाओ । ”
योना कुछ देर तक आगे बढ़ता रहता है , फिर उकड़ूँ हालत में अपने ग़म में डूब जाता है । वह समझ जाता है कि मदद के लिए लोगों की ओर देखना बेकार है । वह इस स्थिति को और नहीं सह पाता और ‘ अस्तबल ‘ के बारे में सोचता है । उसका घोड़ा मानो सब कुछ समझ कर दुलकी चाल से चलने लगता है ।
*** *** *** *** *** *** *** ***
लगभग डेढ़ घंटे बाद योना एक बहुत बड़े गंदे-से स्टोव के पास बैठा हुआ है । स्टोव के आस-पास ज़मीन और बेंचों पर बहुत से लोग खर्राटे ले रहे हैं । हवा दमघोंटू गर्मी से भारी है । योना सोये हुए लोगों की ओर देखते हुए खुद को खुजलाता है … उसे अफ़सोस होता है कि वह इतनी जल्दी क्यों चला

[Message clipped] View entire message

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *