मेरी डायरी का एक पन्ना…
डॉ प्रमोदशंकर शर्मा
भिलाई छत्तीसगढ़
पहले शिक्षक ही समाज का सबसे बड़ा सितारा होता था।पर आज जो शिक्षा नीति है,उसमे कुछ समय बीतने पर अच्छा शिक्षक एक खोई हुई प्रजाति हो जाएगा।जो हालात आज शेरों की हैं,जो धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं,वही हाल शिक्षकों का भी होगा,बेहद चिंतनीय है,पर किसी का ध्यान नहीं।जो शिक्षक बन कर आरहे हैं,वह शिक्षक हैं ही नहीं।सब कुछ मजबूरी में हो रहा है।सरकार की अस्थायी नीतियां इसके लिये जिम्मेदार हैं।मैं जिन शिक्षकों से पढ़ा, आज उसका शून्य भी नहीं आ रहा।शिक्षक का चयन वैसे ही होना चाहिये,जैसे एक सैनिक का होता है।एक देश की रक्षा करता है,दूसरा समाज की।आज पूरी शिक्षा व्यवस्था लापरवाही की शिकार है।पग-पग पर शिक्षक समझौते कर रहा है।शिक्षक के द्वारा ही एक अच्छे समाज का निमाण होता है।मैंने खुद अपने शिक्षकों से स्वतंत्र विचार प्रक्रिया सीखी,जो मेरे बहुत काम आयी।हमारा काम ही यही है कि हम अपने विद्यर्थियों स्वतंत्र विचार प्रक्रिया करना सिखाये।कोई भी विद्यार्थी शैतान हो सकता है,देश-द्रोही नहीं।ये आज की सरकारों को समझना होगा।विरोध कभी देश द्रोह नही हो सकता,पसंद-नापसन्द हो सकता है।मैंने इस शिक्षक को खूब उत्साह से जिया है,जीवन के सारे आनंद इसी में हैं।बस मेरी एक ही अभिलाषा है कि ऐसी शिक्षा नीति बने,जिसमें जो सर्वश्रेष्ठ हो,वही शिक्षक बने।तभी आप उत्तम राष्ट्र का निर्माण कर पाएंगे।किसी शिक्षक को देख कर ये पता किया जा सकता है,कि उस राष्ट्र का नैतिक स्तर क्या है?क्योंकि जैसे शिक्षक वैसा ही राष्ट्र।विचार करिए।।।।