दृश्य ही अदृश्य हो जाएगा
प्रिय भारत!
शोध की खातिर
किस दुनिया में ?
कहां गए ?
साक्षात्कार रेणु से लेने ?
बातचीत महावीर से करने?
त्रिलोचन – नागार्जुन से मिलने ?
कविता – आलोचना
जीवनी – संपादन
ये भी तो थे साथ तुम्हारे
इन्हें छोड़
हमसे दूर
बहुत दूर गए
‘चुपचाप’
अचानक यायावर
कैसी-कैसी बातें?
किसकी – किसकी बातें?
साहित्य की अंत:कथा
सच – झूठ का अंत:पुर
खुली हंसी
खुश की विधि
लाएगा कौन ?
चुहल विवाद कटुता – रस
कहां से आएगा ?
‘झेलते हुए’, ‘मैं हूं, यहां हूं’
‘बेचैनी’, ‘हाल – बेहाल’
कौन बताएगा ?
‘कैसे जिंदा है आदमी’
सवाल रख
उत्तर जाने बिना
अंतरलोक – यात्री
कैसे बन गए तुम ?
तुम्हारी कविता में
कितनी बातें !
कितनी चिंता!
तुमने कहा था
‘दृश्य ही अदृश्य हो जाएगा’
और आज हो कर
दिन को रात बना
तुमने बता दिया
तुम्हारी कविता देख रहा हूं :
दृश्य ही अदृश्य हो जाएगा
– भारत यायावर
एक दृश्य है जो अदृश्य हो गया है
उसका बिम्ब मन में उतर गया है
मैं चुप हूँ
चुपचाप चला जाऊँगा
कहाँ
किस ओर
किस जगह
अदृश्य !
किसी के मन में यह बात प्रकट होगी
कि एक दृश्य था
अदृश्य हो चला गया है !
अब उसके शब्द जो हवा में सनसनाते थे
किसी के साथ कुछ दूर घूम आते थे
उसके विचार कहीं मानो किसी गुफ़ा से निकलते थे
पहले गुर्राते थे
फिर गले लगाते थे
फिर कुछ चौंक – चौंक जाते थे
फिर बहुत चौंकाते थे
अब उसकी कहीं छाया तक नहीं है
अब कोई पहचान भी नहीं है
दृश्य में अदृश हो जाएगा
कहीं नजर नहीं आएगा