November 17, 2024

इक ताज़ा ग़ज़ल के चंद अशआर आप सभी की खिदमत में पेश है मुलाहिज़ा हो…..

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हौसलों का क्या करेंगे जब सलामत सर नहीं
कैसे ले परवाज़ वो पंछी कि जिसके पर नहीं //१//

इक मुसलसल से सफ़र में रहने को मजबूर है
पास जिनके कहने को भी कोई बामो दर नहीं //२//

दूर तक बिखरी हुई है ख़ामोशी सी दरमियां
चाहता तो है यही दिल मैं सदा दूं,पर नहीं //३//

आ जुदा हो जाएं हम क्यूं तल्ख़ियों को तूल दें
रास्ता अब और कोई इससे तो बेहतर नहीं //४//

तुम कहो क्या है तुम्हारे सर झुकाने का सबब
बात कोई और ही तो यां पसे मंज़र नहीं //५//

ज़िंदगी इस तरह गुज़री है ग़मों की धूप में
अब किसी भी हादसे का हमकों कोई डर नहीं //६//

मनस्वी अपर्णा

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