ट्यूबलाइट जलनी चाहिए!
ट्यूबलाइट जलनी चाहिए!
खुलेंगी करतूतें काली
अंधेरगर्दी के काले चेहरें
वर्दी में उलझी मोहरें
अपराधों की काली छाया
उजागर उत्कोच का साया
मस्तिष्क गुहा में फिर…!
ट्यूबलाइट जलनी चाहिए।
अंधेरे का पर्दाफाश
बचा रहे न कोई काश!
हो समाज अपराधी जो
शासक की तानाशाही
दमघुटती साँसों के हेतु
बुझते दीपों के सहारे
क्रांति की आग जलाने
ट्यूबलाइट जलनी चाहिए।
बूढ़े समाज की रूढ़ी सोच
प्रगति के चक्र बढ़ाने
विवादों पर विराम लगाने
सृष्टि की सृष्टि जीवन को
दुःख-सुख का मेल कराने
संताप-त्रास भय भगाने
दीप प्रज्वलित करने को
ट्यूबलाइट जलनी चाहिए।
तर्क विचार बुद्धि का मेल
नवनिर्माण की श्रृंखला हेतु
बुनने मानव का तानाबाना
हर बार बार-बार…!
ट्यूबलाइट जलनी चाहिए।
विधा – कविता
परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राज.
मो. 9001321438