“नियति की रीत है…,”
जनम मरण तो केवल नियति की रीत है ।
जिंदगी की सुख दुख तो गति की गीत है ।।
धडकन धड़कता है ताल पर मृरदंग पर ,
अश्कों पर भी रश्क,ये अनुपम संगीत है ।
आंखों की नमी मुस्कानों की कमी को ,
जो पहचाने, उसकी जग में बड़ी जीत है ।
जो चोट कभी समझौता नहीं करता दर्द से,
ऐसे ही दर्दे दिल दर्दे महफिल जगजीत है ।
युग युगांतर से जुड़ा है हमारा तुम्हारा मन,
मानो ना मानो इसी को कहते मनमीत है ।
शहरों में खुशियां और आशियां खो रहा है ,
गांव से जो नाता जोड़े, जिंदगी नवनीत है ।
मिल जाए तो दवा, बिछड़ जाए तो दर्द हो,
शायद इसीको कहते इश्क मोहब्बत प्रीत है ।
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज शाह ‘मानस’
नई दिल्ली-110015
मो.नं.7982510985
26.10.2021