प्रकृति की गोद में बसा एक खूबसूरत जिला
कुछ काम से गौरेला-पेंड्रा-मरवाही आया हूं। प्रकृति की गोद में बसा एक खूबसूरत जिला। कहते हैं- यहां की हवा जादुई है। फेफड़ों में जाते ही मन प्रसन्न और चित्त साफ हो जाता है। शायद इसीलिए, जब टीबी जैसी बीमारी का कोई इलाज नहीं था, तब रविन्द्र नाथ टैगोर अपनी पत्नी मृणालिनी देवी को लेकर पेंड्रा आये थे और करीब 2 महीने तक यहां के सेनिटोरियम में रहे थे। यह बात 1902 की है, लेकिन कहते हैं पेंड्रा की हवा आज भी वैसी की वैसी है, साफ, स्वच्छ और निर्मल। 1900 में माधवराव सप्रे ने इसी पेंड्रा से ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ का प्रकाशन शुरू किया था।
बताते हैं, जिला आठ नदियों अरपा, सोन, तिपान, एलान, बम्हनी, पूटा, तान, जोहिला का उद्गम स्थल है। बगल में ही नर्मदा कल-कल करती बहती हैं। पेंड्रा से महज 40 किलोमीटर की दूरी पर अमरकंटक है। क्षेत्र में दो पर्वत श्रृंखलाएं विंध्य और सतपुड़ा साथ-साथ चलते दिखते हैं। राजमेरगढ़ में उगते सूरज को देखना सुकून देता है। जैसे ही सूरज की किरणें पहाड़ी से धरती पर गिरती हैं, धरती का रंग सुनहरा हो जाता है। और जैसे-जैसे सूरज चढ़ता है, आसमान नीला होता जाता है और धरती हरी होती जाती है। जंगल के अलग-अलग कोनों में झरते झरनों का संगीत अलग ही आनंद देता है।
आदिवासी बाहुल्य यह जिला मुख्य रूप से एकफसली धान की खेती पर निर्भर है। लेकिन क्षेत्र वन संपदा से परिपूर्ण है। चार, चिरौंजी, रेशम, लाख के अलावा यहां के आम, कटहल, जामुन और सीताफल देशभर में जाते हैं। बताते हैं- यहां बिना गुठलियों वाली जामुन होती है। यहां बारामासी मुनगा होता है, जिसका स्वाद लाजवाब है। हमने तो गुलाब जामुन के तौर पर केवल मिठाई का नाम सुना है, पर यहां तो गुलाब जामुन एक बेहद स्वादिष्ट फल है। गुठलियों वाला यह फल केवल इसी क्षेत्र में पाया जाता है।
लोग बता रहे हैं, जिले में भालू बहुत हैं। खासकर मरवाही वाले क्षेत्र में। भालू-मानव संघर्ष पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ा है। हाथी भी क्षेत्र से आते-जाते रहते हैं। कुछ महीने पहले जिले के एसपी साहब हाथी देखने चले गए थे। हाथी ने दौड़ा लिया, बड़ी मुश्किल से बचे। जिले में आवागमन के बेहतर साधन मौजूद हैं। बस, ट्रेन के अलावा निजी वाहन से भी आया जा सकता है। इस सरकार ने सड़क ठीक-ठाक बनवा दी है। राजनीति के अलावा और भी बहुत कुछ है इस जिले में, जो देखने और समझने लायक है। अभी एक-दो दिन और हूं। देखता हूं- क्या-क्या देख और जान पाता हूं।
प्रफुल्ल ठाकुर
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