कटंगी के पुरावशेष : भोरमदेव क्षेत्र
भोरमदेव के फणिनागवंशियो के साक्ष्य मुख्यतः मैकल श्रेणी के समानांतर मिलते हैं। यह आश्चर्यजनक भी है कि मैदानों को छोड़कर जंगलों में रहवास और मंदिरों के साक्ष्य अधिक मिलते हैं। सम्भवतः सुरक्षा की दृष्टि से यह चुनाव किया जाता रहा हो। यदि भोरमदेव को केंद्र माने तो उसके उत्तर में सहसपुर, बिलहरी, कटंगी, घटियारी , गंडई से खैरागढ़ क्षेत्र तक पुरावशेष मिलते हैं।
कटंगी घटियारी के शिव मंदिर से लगभग दो किलोमीटर उत्तर में एक गांव है। इस गांव के खार में एक शिव मंदिर तथा एक चबूतरा के अवशेष हैं। मंदिर पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है तथा उंसके निर्माण सामग्री आस-पास बिखरे हुए हैं,जो अब काफी कम हैं। कालक्रम में मूर्तियां तथा सामाग्री इधर -उधर हो गई होंगी।कुछ मूर्तियां संग्रहालयों में ले जायी गई हैं। मंदिर की ज़मीन से लगी नीव तक का हिस्सा सुरक्षित है। इसे देखने से पता चलता है कि मंदिर दो हिस्सों में विभक्त था मंडप और गर्भगृह। मंडप से गर्भगृह गहराई में था जहां तक पहुंचने के लिए दो-तीन सीढ़ी उतरना पड़ता है। गर्भगृह में प्राचीन जलहरी तथा जल-निकासी प्रनाली है, जिससे पता चलता है कि मंदिर शिव मंदिर था। मगर जलहरी में स्थित शिवलिंग बाद का प्रतीत होता है।इसी प्रकार मंदिर के पास ही नन्दी की क्षतिग्रस्त मूर्ति है, जो सम्भवतः मंदिर के सम्मुख रहा होगा। यह भी मंदिर के शिव मंदिर होने को इंगित करता है।
मंदिर के ध्वस्त मंडप में कुछ मूर्तियां रखी हुई हैं। जिनमे काले प्रस्तर निर्मित विष्णु की चतुर्भुजी मूर्ति विशिष्ट है। मूर्ति आंशिक खंडित है मगर इसकी शिल्पकला और चिकनाई आकर्षित करती है। मूर्ति ऐसी प्रतीत होती है मानो काला पेंट किया गया हो। मूर्ति के हाथों में शंख, चक्र, कमल तथा एक हाथ अभय मुद्रा में है। मूर्ति के पास ही एक देवी मूर्ति है जो सम्भवतः लक्ष्मी है।एक मूर्ति ‘नाग पुरूष’ की जान पड़ती है, जिसके धड़ का ऊपरी हिस्सा पुरूष तथा निचला हिस्सा नाग का है। यह मूर्ति इसलिए भी विशिष्ट है क्योंकि इस क्षेत्र में अन्यत्र ऐसी मूर्ति दिखाई नही पड़ती। इसे ‘फणि नागवंश’ से सम्बद्धता के रूप में भी देखा जा सकता है।
एक मूर्ति उपासक राजपुरुष की है जो हाथ जोड़े हुए है।उसके पार्श्व में रानी की मूर्ति थी जो लगभग खंडित हो चुकी है।राजपुरुष की एक अन्य मूर्ति गांव की शीतला मंदिर में रखी हुई है, इसके बारे में डॉ सीताराम शर्मा ने(भोरमदेव क्षेत्र: पश्चिम दक्षिण कोशल की कला,1990) लिखा है “इसी ग्राम की प्रवेश सीमा पर उपासक राजा की वाम तथा दक्षिण पार्श्वों में रानियों सहित मूर्ति है। मूर्ति के उपर छत्र सुशोभित है जो राजचिन्ह का प्रतीक है। पद्मासन स्थिति में राजा कमल कलिका सहित हाथ जोड़े हुए नमन करते हुए अंकित है। आसन की चौकी पर चँवरधारिणी परिचारिका की आकृति है।”
ज़ाहिर है मूर्ति पहले अन्यत्र थी जिसे बाद में शीतला मंदिर परिसर में लाया गया है। यह उपासक राजा इस क्षेत्र का स्थानीय सामंत अथवा अधिकारी अथवा सीधे फणिनागवंश का कोई शासक हो सकता है,और यही घटियारी और कटंगी के मंदिरों का निर्माता हो सकता है। दुर्भाग्य से अधिकतर राजपुरुषों की मूर्तियों की तरह इसमे भी कोई अभिलेख उत्कीर्ण नही है, जिससे उसके बारे में जानना सम्भव नही है। मंदिर के आस-पास उत्खनन से पुरातात्विक सामाग्री प्राप्त होने की संभावना है।
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#अजय चन्द्रवंशी, कवर्धा(छ. ग.)
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