समय का नेपथ्य
भला जंग भी कभी मुकम्मल होती है ?
समय का नेपथ्य
भला जंग भी कभी मुकम्मल होती है ?
(क्या इस युद्ध में अशोक की तरह पश्चाताप की आग में जलकर किसी एक का हृदय परिवर्तन होगा ?जो अशोक का हुआ था इसलिए भी कलिंग का युद्ध याद रखा जाता है| दुर्भाग्य है अभी तक हम वसुधैव कुटुंबकम नहीं हुए )
साधन के रूप में धन की महत्ता किसी भी युग में कम नहीं रही ,लेकिन हमारे समय में उसने ‘विचार’ का दर्जा हासिल कर लिया है | वह विचार अब हथियार में रूपांतरित होने लगा | कई हिंसक सवालों के जवाब में अब हथियारों की उपयोगिता सामने आ रही |जो काम पहले विचार करता था अब हथियार करता है | फिर वो युद्ध हो या उन्माद | आने वाला समय हथियार में निवेश/रोजगार के अवसर देने वाला होगा |इस युद्ध के बाद फैले हुए सन्नाटे को आखिर कौन समेटेगा ? बरसों बाद युद्ध से रचे स्मारकों को यात्री देखने आएंगे विधालयों में प्रदर्शनी लगेगी हथियारों के साथ आदमी | बंदूकों से निकले धुंए की लकीरों पर चुनौतियां लिखी जाएंगी जीवन की जिन्हें पाठ्यक्रमों में पढ़ाया जायेगा इतिहास का आकार देकर | सरहदें किसी की भी हो युद्ध तो युद्ध होता है मरते तो इंसान ही हैं |
सबक के रूप में हमें यही हासिल होगा शिक्षा स्वास्थ्य और भूख से ज्यादा अब आदमी की सुरक्षा और हथियारों पर खर्च होगा |इंसानियत सुरक्षित हाथों में हो तब आदमी की सुरक्षा स्वतः हो जाती है | जब देशकाल परिस्थितयों के कारण मानव कबीले बौद्धिक रूप से ‘जल्दी –जल्दी’ विकसित होने लगे तो कालांतर में स्थितयां युद्ध जैसी होती है | इसलिए कहते हैं विकसित /विकाशील होने के लिए बौद्धिक रूप से पकना जरुरी है | पकना जरुरी है उस प्रतिनिधित्वकर्ता का जिस पर जिंदगियां टिकी हैं, निर्णय निर्भर हैं | सर्वजनहिताय वाली चेतना की दुनिया आज भी समाज के कुछ वर्ग लिए अपच है | युद्ध से हासिल क्या होगा ?संभावित है दूसरे विश्व युद्ध के बाद इतने ख़राब हालात देखे नहीं गए होंगे| यह जंग ताकत आजमाने की तो नहीं है, सत्ता को आजमाने के लिए कभी जाने भी दाव पर लगाई जाती है ?भला कौन सी जंग कभी मुकम्मल हुई है ? भारतीय दर्शन कहता है युद्ध में कभी कोई नहीं जीतता, युद्ध में कभी कुछ हासिल नहीं होता | जिन कर्मकांडों को भूमंडलीकरण का नाम दिया जा रहा है उसके केंद्र में सत्ता है | विचार के हथियार में परिणत होने के केंद्र में भी सत्ता है | समय अपने बदलाव को किस रूप में रेखांकित करना पसंद करेगा विचार या हथियार यह तय करना अभी शेष है |मनुष्य द्वारा घोषित किये बिना भी ये तिथियां जो युद्ध के साथ जन्मी याद रह जाएंगी बल्कि भूली नहीं जाएंगी | यह युद्ध भी किसी नए विचार /विचारक को जन्म देगा या शायद किसी नायक को भी ? ठीक वैसे ही जैसे सहसा पेड़ से टपके सेब से विज्ञान के नए सिद्धांत को जन्म दिया था | युद्ध लड़े क्यों जाते हैं (भूमि किसी की भी हो )विचारशील मानव के नेपथ्य में ऐसा कौन सा द्वन्द उसके विचारों को युद्ध में तब्दील कर देता है ? कोई भी युद्ध अंत में क्या छोड़ जाता है ?कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि युद्ध अकाल की तरह अकस्मात नहीं जन्मता | चक्रवात ,भूकंप या प्लेग की तरह (अब कोरोना )अकस्मात सामने नहीं आता | वह नगाड़े बजाते हुए सामने आता है बहरी व्यवस्था को यह आवाज सुनाई नहीं देती (सत्ता किसी की भी हो, युद्ध कहीं भी हो, किसी भी भू-भाग पर हो, युद्ध युद्ध होता है )शोषक शक्तियां उसकी अगवानी की तैयारी में जुट जाती है यही सबस ेबड़ा संकट है इस समय | व्यापारिक संधियों द्वारा राष्ट्रों के बीच व्यापार होता है अर्थ तंत्र ही मूल में है | जब संधियों का विकल्प है तो युद्ध क्यों ?युद्ध जन्म लेता है रातों रात हुए किसी प्रलय की तरह | बेकसूर जिंदगियां इतिहास के पन्नों में कहीं दब छिप जाती है| दुखद है हम विचारों के बजाय हथियारों की दुनिया में जी रहे हैं या हमने अपने विचारों को हथियारों में तब्दील कर दिया | क्या इस युद्ध में अशोक की तरह पश्चाताप की आग में जलकर किसी एक पक्ष का हृदय परिवर्तन होगा ?जो अशोक का हुआ था इसलिए भी कलिंग का युद्ध याद रखा जाता है| दुर्भाग्य है अभी तक हम वसुधैव कुटुंबकम नहीं हुए |
डॉ. शोभा जैन
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