मन्नू भंडारी की प्रथम पुण्यतिथि पर
बचपन में जिन्होंने धर्मयुग साप्ताहिक हिंदुस्तान जैसी पत्रिकाएँ पढ़ी होंगी वे हिन्दी की सुप्रसिद्ध कथाकार मन्नू भंडारी को बहुत अच्छी तरह जानते होंगे । मन्नू जी अपने लेखन के बारे में स्वयं कहती हैं कि एम ए करने के बाद उनकी पहली कहानी पत्रिका ‘कहानी’ में छपी थी लेकिन किताबों से उनकी दोस्ती बचपन से थी ৷ घर में पिता का निजी पुस्तकालय था और प्रेमचंद उनके आदर्श थे ৷ मन्नू जी की रचना यात्रा लम्बे समय तक जारी रही यद्यपि उस दौर के लेखकों की तुलना में उन्होंने कम ही लिखा ।
हिंदी कहानी की विकास यात्रा में साठ के दशक के अंतिम वर्षों में महिला कथाकारों का विपुल लेखन सामने आता है। इनमे शिवानी, मन्नू भण्डारी,कृष्णा सोबती, उषा प्रियंवदा, राजी सेठ, प्रभा खेतान आदि ने स्त्री संघर्ष के अनगिनत आयामों को अपने कथासाहित्य में अभिव्यक्त किया और उनके भीतर के प्रतिरोध को भी रेखांकित किया ৷
मन्नू भंडारी की अनेक कहानियों और उपन्यास में उनका उपन्यास ‘महाभोज’ ‘आपका बंटी’ और कहानी ‘यही सच है’ सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुए ৷ ‘महाभोज’ एक ऐसा उपन्यास है जो नौकरशाही और राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार और अनैतिकता को उजागर करता है ৷ सामान्य तौर पर उस दौर में महिला लेखकों द्वारा इस तरह का लेखन आम नहीं था लेकिन मन्नू जी राजनीतिक चेतना से युक्त लेखिका थीं और समाज का व्यापक अध्ययन उन्होंने किया था । सामाजिक आर्थिक विसंगतियों पर लिखे उनके इस उपन्यास ‘महाभोज’ का नाट्य रूपांतर भी बहुत पसंद किया गया ৷
मन्नू जी का उपन्यास ‘आपका बंटी’ सन 71 में आया था ৷ जैसे ही यह उपन्यास आया यह बात चर्चा में आई कि इस उपन्यास पर फिल्म बन रही है ৷ उन दिनों धर्मयुग पत्रिका बहुत चर्चित थी ৷ इस साप्ताहिक पत्रिका में इस पर बन रही फिल्म के भी कुछ दृश्य आये थे ৷ इस कथानक में बंटी नामक एक बच्चा है ৷ फिल्म में बच्चे को सड़क पर छोड़ दिया जाता है और वह जहां-जहां चलता है कैमरा उसके पीछे पीछे चलता है ৷
मन्नू भंडारी जी की कहानियां आधुनिक जीवन शैली से उपजी त्रासदी अवसाद, टूटन विवाहेतर प्रेम आदि को चित्रित करती है ৷ इन कहानियों में स्त्री जीवन के विविध चित्र दिखाई देते हैं स्त्री जो मुक्त हो रही है, ऊँची उड़ान भरना चाहती है, उसे नौकरी करना है, संतान को जन्म भी देना है, फिर उसे बड़ा करना है ৷ यह सब ‘आपका बंटी’ में आपको मिलेगा ৷ आजाद भारत में आज़ादी के कुछ वर्षों बाद स्त्रियों के आन्दोलन हुए ৷ स्त्रियों ने अपनी अस्मिता और सम्मान को लेकर संघर्ष किया । इन सबकी छाप उस दौर की कहानियों में दिखाई देती है ৷
मन्नू जी ने विपुल साहित्य लिखा है ৷ उनके एक प्लेट सैलाब, मैं हार गई, आँखों देखा झूठ त्रिशंकु, यही सच है यह कहानी संकलन हैं ৷ मन्नू भंडारी जी की सबसे चर्चित कहानी है ‘यही सच है’ ৷ यह कहानी इस लिए भी चर्चा में आई कि इस पर रजनीगंधा नामक फिल्म का निर्माण हुआ रजनीगंधा फिल्म उस समय की चर्चित फिल्म रही और उसे 1974 में फिल्मफेयर अवार्ड मिला ৷
‘यही सच है’ यह कहानी महानगर की एक ऐसी स्त्री की कहानी है जो एक साथ दो पुरुषों से प्रेम करती है ৷ यह विषय ही उन दिनों अपने आप में चौंकाने वाला था ৷ प्रेम करने वाली यह स्त्री नितांत प्रेमिका नहीं है वह आत्मनिर्भर होना चाहती है ৷उसके लिए अपना कैरियर भी महत्वपूर्ण है ৷ दीपा नमक यह स्त्री नौकरी की तलाश में कलकत्ता पहुँचती है, वहां उसे उसका पूर्व प्रेमी निशीथ मिलता है जिसने उसे ठुकरा दिया था ৷ भावनाओं के उतार चढ़ाव और छोटी छोटी घटनाओं की वज़ह से वह फिर उससे प्रेम करने लगती है ৷ वह उहापोह से गुजरती है एक ओर वर्तमान प्रेमी संजय है दूसरी और पूर्व प्रेमी निशीथ लेकिन अंत में वह अपने वर्तमान प्रेमी संजय के करीब ही आती है ৷
यह कहानी उस दौर की एक ऐसी कहानी है जिसमे सब कुछ नया है ৷ इससे पूर्व जो प्रेम कहानियां लिखी जाती थीं उसमे प्रेम की उदात्तता, भावनाओं का वर्चस्व , स्त्री का गौरवगान , उसकी मर्यादाएं , उसका त्याग, आदर्श, उसका दैवीय रूप इत्यादि बातों को केंद्र में रखा जाता था लेकिन यहाँ एक ऐसा कथानक है जिसमे स्त्री की उस परंपरागत नैतिकता को चैलेन्ज किया गया है ৷ यद्यपि मन्नू भंडारी जी के लिए यह काम कठिन था ৷ साठ के दशक में एक स्त्री का इस तरह विरोध करना, प्रेम और विवाह के बरक्स नौकरी को प्राथमिकता देना, अपने लिए सही पुरुष का चुनाव करना , प्रेमी को पति के रूप में न देख कर एक मित्र के रूप में देखना, यह सजग होती स्त्री के प्रतिरोध के स्वर ही थे ৷
मनोवैज्ञानिक रूप से इस कहानी का विश्लेषण करते हुए मैंने पाया कि यह कहानी एक सशक्त मनोविज्ञानिक कहानी है यहाँ प्रेम में देह भौतिक रूप से उपस्थित है . यह वह दौर था जब प्रेम को काफी उदात माना जाता है , यह वायवीय प्रेम था ।
मन्नू जी की यह कहानी ‘यही सच है ‘ डायरी शिल्प में लिखी गई है ৷ इस कहानी की नायिका दीपा अपनी बात डायरी के माध्यम से कहती है ৷ यह शिल्प भी उन दिनों कहानी के लिए बिलकुल नया था ৷ लेकिन इसमें कहानी की विश्वसनीयता बढ़ती है ৷ अगर नायिका अपनी निजी डायरी में अपने प्रेम प्रसंग लिखती है तो उसमे सच्चाई झलकती है ৷
इस कहानी ने मेरी पीढ़ी को बहुत अधिक प्रोत्साहन दिया और हमारे जैसे युवा लेखकों ने अपनी निजी डायरी में अपने प्रेम प्रसंग और जीवन से जुडी सच्चाइयाँ लिखने की हिम्मत जुटाई ৷ यकीनन डायरी के यह पन्ने बहुत से कवियों और लेखकों के लिए कहानी कविताओं की कच्ची सामग्री बने ৷ डायरी के शिल्प में लिखी इस कहानी ने तत्कालीन युवा पीढ़ी को एक महत्वपूर्ण सन्देश भी दिया कि डायरी रोजनामचे से अलग होती है ৷ इस तरह एक पूरी की पूरी पीढी इस कहानी से संस्कारित हुई ৷
मन्नू भंडारी जी ने न केवल विपुल साहित्य लिखा बल्कि बहुत अच्छा जीवन भी जिया ৷ वे अपनी आनेवाली पीढ़ी को बहुत कुछ दे गईं हैं ৷ हमें गर्व है मन्नू जी पर ৷
आज उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि
शरद कोकास
मन्नू भंडारी जी का यह पोस्टर शतदल रेडियो साहित्य समूह से साभार