रमई पाट की रम्य स्थली : स्त्री वेश में हनुमान और गर्भवती सीता का मंदिर
प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा
राम कथा के वैविध्य और विस्तार को मूर्त करते जीवंत किंवदंती स्थल छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित रमई पाट, सोरिद की यात्रा अविस्मरणीय रही। छत्तीसगढ़ राज्य सुदूर अतीत से प्रकृति के साहचर्य में मानवीय सभ्यता और संस्कृति की विलक्षण रंगस्थली रहा है। भारत के केंद्र में स्थित छत्तीसगढ़ अपनी पुरातात्विक सम्पदा और प्राकृतिक दृश्यों के कारण आज भारत ही नहीं, वरन समूचे विश्व में अपनी एक अलग ही पहचान बना चुका है। यहाँ के लगभग 15000 गांवों में से 1000 गांव में कहीं न कहीं प्राचीन इतिहास, परम्परा और संस्कृति के साक्ष्य आज भी विद्यमान हैं। छत्तीसगढ़ में स्थित रमई पाट, फिंगेश्वर, चंपारण जैसे स्थलों की यह यात्रा सुधी यायावर एवं ब्लॉगर ललित शर्मा के साथ करना विलक्षण अनुभव दे गया।
‘रामायन सत कोटि अपारा’ को जीवंत करता रमई पाट या रमई पाठ सीता माई का मंदिर छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के सोरिद ग्राम में स्थित है। रमई या सीता माता का यह मंदिर घने जंगल और तीन पहाड़ियों – झरन पहाड़ी, गरगच पहाड़ी और देवताधर पहाड़ी से घिरा होने से सुरम्य वातावरण का अंग बना हुआ है, जहाँ पहुंचते ही हमारा मन रम जाता है।
लोक समुदाय की रमई या सीता माता के प्रति अटूट आस्था और प्रेम है। यहाँ पर स्थापित माता की प्रतिमा का समय छठी सदी ई. अनुमानित है। गर्भवती सीता के साथ धनुर्धर श्री राम और चतुर्भुज विष्णु की प्रतिमाएं मुख्य मंदिर में स्थापित हैं। ऐसी मान्यता है कि माता को किसी ने स्थापित नहीं किया, स्वयम्भू हैं। मंदिर परिसर में ही श्री गरुड़ जी, मौली माता, बगरम पाठ जी की काले रंग की मूर्तियां, शीतला माता और जगन्नाथ की प्रतिमा स्थापित है। माना जाता है कि यहाँ की अनेक प्रतिमाएँ फिंगेश्वर राजघराने द्वारा स्थापित की गई थीं। फिंगेश्वर राजघराने ने अपने राज्य पर आने वाली विपत्तियों, प्राकृतिक बाधाओं एवं अन्य कारणों से सुरक्षा की दृष्टि से यहाँ अपनी कुल देवी की स्थापना की।
रमई पाट के नामकरण के लिए कहा जाता है कि जब सीता माता ध्यान मग्न थीं, तब भगवान राम, सीता माता के दर्शन के लिए यहाँ आए थे, किंतु माता के ध्यान मग्न होने के कारण वे उन्हे निहारने में ही रम गये थे। तब से ही सीता माता को रमई माता के नाम से यहाँ जाना जाता है। किंवदंतियों के अनुसार गर्भवती सीता परित्याग के बाद यहीं रहती थीं, जिन्हें ऋषि वाल्मीकि यहां से तुरतुरिया स्थित अपने आश्रम में ले गए थे और वहीं लव – कुश का जन्म हुआ।
माता के मंदिर के समीप स्त्री वेश में प्राचीन हनुमान जी की प्रतिमा काले रंग की शिला पर है। अहिरावण को परास्त करने के लिए पाताल लोक में जाते हुए हनुमानजी को स्त्री वेश धारण करना पड़ा था। इसीलिए यहाँ स्त्री रूप में हनुमानजी विराजित हैं। यहीं पर प्राचीन शिवलिंग, नृसिंह और भैरव की प्रतिमाएं भी हैं।
रमई माता मंदिर मुख्यतः निःसंतान महिलाओं की गोद भरने के लिए प्रसिद्ध है। इस कारण गादी माई के नाम से भी रमई माता को जाना जाता है। संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालुजन यहां लोहे का बना झूला या सांकल अर्पित करते हैं। मंदिर के बाहर बड़ी संख्या में लोहे से निर्मित लघु आकार के झूले देखे जा सकते हैं। इस स्थान को तपस्या स्थली के रूप में भी मान्यता मिली हुई है। यह रम्य स्थली छत्तीसगढ़ की वानस्पतिक विविधता का साक्ष्य देती है।
यहाँ स्थित विशाल आम्र वृक्ष के नीचे पवित्र गंगा का उद्गम हुआ है। ऐसी मान्यता है कि रामायण काल में जब भगवन राम ने अपने प्रजा के सुख के लिए अपने सुख का त्याग कर माता सीता को वन में छोड़ दिया था। तब भगवान श्री राम के अनुज लक्ष्मण जी माता सीता को सोरिद खुर्द के जंगल में छोड़ा था। जब लक्ष्मण माता सीता को यहाँ छोड़ने आए थे, तब यहाँ माता के लिए जल आपूर्ति के उद्देश्य से उन्होंने अपने तीर से माता गंगा की एक मीठे जल धारा के रूप में उत्पत्ति की, जो आज भी यहाँ आम के वृक्ष के नीचे देखने को मिलती है। जल का यह स्रोत भीषण गर्मी में भी कभी नहीं सूखता है। इस कुंड के जल का उपयोग आज भी मंदिर परिसर मे पानी पीने एवं भंडारे का भोजन बनाने के लिए किया जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार किसी ऋषि के तप से प्रसन्न होकर माता के वरदान स्वरूप इस जल स्रोत का उद्गम हुआ। इसके जल को बहुत पवित्र माना गया है। इसी जल से मंदिर में पूजा की जाती है।
यह मंदिर राजिम से 33 कि.मी. की दूरी पर फिंगेश्वर से होते हुए छुरा मार्ग पर सोरिद ग्राम के समीप बसाहट से एक कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह स्थान महासमुन्द से भी काफी नजदीक है। महासमुन्द से राजिम, फिंगेश्वर, छुरा मोड़ मार्ग होते हुए इस स्थान पर पंहुचा जा सकता है। अब यह स्थान पर्यटन स्थल के रूप में उभरता नजर आ रहा है।
चैत्र और क्वार की नवरात्रि में माता को प्रसन्न करने के लिए भक्तों द्वारा मनोकामना ज्योति जलाई जाती है। विशिष्ट अवसरों पर भंडारे का आयोजन किया जाता है। इस स्थल पर कुछ नवीन मंदिरों का निर्माण भी करवाया गया है, जिनमें राम – जानकी मंदिर, महादेव मंदिर, सिद्ध पीठ दुर्गा माता मंदिर, हनुमान मंदिर आदि प्रमुख हैं। एक बार जो रमई पाट जाता है, वह स्मृति कोष में इस रम्य स्थल की अमिट छबियाँ लेकर ही लौटता है।
प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिंदी अध्ययनशाला
कला संकायाध्यक्ष, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन
मध्यप्रदेश 456010
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