April 11, 2025

भगवान महावीर के संदेश और भी ज्यादा प्रासंगिक: कोरोना महामारी के संदर्भ में

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महावीर जयंती पर विशेष

आलेख- डाॅ अभिलाषा जैन भांगरे, छिंदवाड़ा
जैन धर्म के प्रवर्तक 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर की आज जयंती है। वर्तमान समय चारों ओर भय, दहशत और अशांति का माहौल है। जीवन बचाने की होड़, भविष्य की चिंता अजीब सी उलझन है। अपनों को खोने की असहनीय वेदना, अति आवश्यक चीजों का अभाव, अंजाना सा डर बड़ा अजीब सा दौर चल रहा है। ऐसी उलझनों के बीच हमेशा की तरह रास्ता दिखाता है-कोई मसीहा, कोई महापुरुष कोई फरिश्ता या जिसे हम कहते हैं ईश्वर, परमात्मा भगवान, खुदा और उनके संदेश। इसी तारतम्य में विश्व को राह दिखाने आज ही के दिन यानी चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को अवतरण हुआ था बालक महावीर का, जो आगे चलकर वीर, अतिवीर, सन्मति और महावीर कहलाए। आज विश्व को जियो और जीने दो के सूत्र को आत्मसात करने की आवश्यकता है। चीन की आसक्ति ना बढ़ती, ना बुहान से कोरोनावायरस विश्व को मिलता। एक देश दूसरे देश के खिलाफ हथियारों से लैस हैं, क्यों??? वैश्विक भाईचारे और सहयोग की भावना ही जियो और जीने दो की भावना है। विश्व शांति के लिए यह अति आवश्यक है वैश्विक स्तर पर छिड़े शीत युद्ध का समाधान है यह मंत्र।
अहिंसा परमो धर्म: जी हां पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति प्रकृति के पंचभूत तत्वों को बचाना संरक्षित करना है – द्रव्य अहिंसा। कोरोना मरीजों के लिए प्राण वायु ऑक्सीजन के लिए मची त्राहि-त्राहि, अत्यधिक जल के सेवन की अति आवश्यकता और साफ़ – सफ़ाई के लिए जल की उपयोगिता, सूर्य की ऊष्मा का सेवन; गर्म खाना, गर्म पानी, गर्म पानी के गरारे, भाप लेना यानी सब कुछ अग्नि तत्व के बिना संभव नहीं। तुलसी, नीम, अदरक, काली मिर्च, लॉन्ग, हल्दी, फल सब्जियां यानी वानस्पति के साथ हम अपनी इम्यूनिटी बनाने रखना , वनस्पति के सम्मान, संरक्षण और उपादेयता का प्रतीक नहीं तो और क्या है?? पृथ्वी यानि वसुंधरा जो हमें सब कुछ देती है। इसके संरक्षण की जिम्मेदारी हमारी ही है। उसकी छाती पर खेतों की जगह उगते कंक्रीट के जंगल एक दिन अन्न पानी को तरसा देंगे, इसलिए ज़रूरत चेतने की है।
लॉकडाउन में माउंट एवरेस्ट का दिखना, नदियों के पानी का स्वच्छ होना, हवा में ऑक्सीजन का बढ़ना, कार्बन डाइऑक्साइड का कम होना, पक्षियों का स्वतंत्र आकाश में चहचहाना प्रतीक नहीं वसुंधरा की चाहत का? मानव से अपेक्षा का? कि सचेतो मुझे अनावश्यक बोझ से मत दबाओ, विकास के नाम पर मेरी हरियाली को नष्ट मत करो।
कुरौना काल में बंद रेस्टोरेंट, पिक्चर हॉल, बड़े बड़े मॉल, बंद खोमचे वाले चाट और गुपचुप के ठेले, बंद चाइनीस मोमोज, डोमिनोज और भी बहुत कुछ बंद………संदेश नहीं देते कि इनके बिना भी काम चल सकता है। यह कितने हानिकारक है स्वास्थ्य के लिए????? अस्पतालों में सिर्फ़ मरीज है कोरोना के, बाकी बीमारियों के मरीजों का घटना प्रतीक है हमारी सेहत भरी दिनचर्या का और इन चीजों से दूरी का।
कोई दिखावा नहीं कोई आडंबर नहीं सिर्फ दो जोड़ी कपड़ों में भी काम चल रहा है। लॉक डाउन है जो चीजें घरों में उपलब्ध उस से काम चल रहा है। ना चैन, ना घड़ी, ना पर्स,ना अंगुठी,ना कोई जेवर, पहन कर मत निकलो की हिदायतें; काम चल रहा है। यही तो संदेश भगवान महावीर के अपरिग्रह का-“कम से कम में काम चल सकता है” ।
पूजा के लिए ना कोई फूल तोड़ने निकल रहा है। बाजार बंद है। ना फल,ना फूल,ना अगरबत्ती,ना नारियल,ना प्रसाद, ना हो हवन सामग्री; फिर भी हमारे व्रत, त्योहार, पूजा पाठ हो रहा है। यही तो है आस्था और श्रद्धा भगवान के प्रति।
मंदिर के पट बंद। मन के मंदिर में भाव पूजा, यही तो संदेश है भगवान महावीर का अपनी और देखो।
स्व समय में परिणमन करो
व्यर्थ के कर्मकांड और आडंबर से बचो
अपने शरीर और आत्मा में भेद करो
स्व यानी आत्मा द्रव्य को पहचानो
*हमारा शरीर नश्वर है, यह बदलता है; परंतु आत्मा अमर है, हम शरीर को बदलकर अपनी पर्याय बदलते हैं, फिर कोरोना महामारी से क्या डरना???? शरीर तो छूटता ही है, आज नहीं तो कल। फिर कैसा शोक, कैसा डर, कैसी आकुलता, कैसा बिछोह?????सब कुछ मोह के वशीभूत होता है। इस मोह को त्यागो, तभी इस महामारी के भय से मुक्ति है। सच का सामना करो। चोरी और असत्य से बचो। कोरोना काल में अति आवश्यक चीजों की कालाबाजारी, स्टॉक करना चोरी ही तो है, झूठ फरेब है। यह पाप है बचो इससे।
2 गज की दूरी और मास्क है जरूरी। कोरोना ने लगाया अंकुश व्यभिचार और अश्लीलता पर। प्रकृति ने स्वयं व्यवस्था बनाई और कुशील पाप से बचे हैं लोग। इस तरह हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह पांचो पापों से बचना है- सीख देती है प्रकृति।
नहीं समझ पा रहे कोरोना महामारी को । नए – नए लक्षण पर जो भी है सच है। यह भी लक्षण है, वह भी लक्षण है, पर सच है कुरोना है। यही तो है भगवान महावीर का सबसे बड़ा सिद्धांत अनेकांतवाद या स्याद्वाद
और महान वैज्ञानिक आइंस्टीन का सापेक्षतावाद
हाथी की पूंछ पकड़ने वाला हाथी को पूछ की तरह, पैर पकड़ने वाले को खंबे की तरह, कान पकड़ने वाले को सूपा की तरह, तो पेट पकड़ने वाले को पहाड़ की तरह दिखता है हाथी। सभी अपने अपने दृष्टिकोण से सही है, लेकिन यही विवाद कर लिया तो झगड़ा है, अशांति है, युद्ध है। यही आज कोरोना सिखा रहा है।
अंततः भगवान महावीर के संदेशों क्षमा, आर्जव,मार्दव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग और ब्रह्मचर्य इन दस धर्मों को आत्मसात करने का समय है। सहज और सरल जीवन जीने का वक्त है। दूसरों को क्षमा करने और क्षमा मांगने का वक्त है। कम में गुजारा कर, दूसरों के लिए चीजें बचाने का वक्त है। यही तप है, यही त्याग है। पवित्रता की भावना से संयमित जीवन जीने का वक्त है। अपने ही घरों में बेगाना बना दिया करोना ने। कोई किसी का नहीं होता समझा दिया करोना ने। जीवन और मृत्यु हमारे हाथों में नहीं जता दिया करोना ने। यही तो संदेश हैं भगवान महावीर के- तुम एक स्वतंत्र सत्ता, एक स्वतंत्र आत्म द्रव्य हो। तुम्हारा किसी से कोई नाता नहीं। अपने कर्मों का फल तुम स्वयं पाते हो। जितना आयु कर्म है, उतना ही जिओगे। एक पल भी कम या ज़्यादा नहीं- तो जितना हो सके जियो बेफिक्र होकर और आत्मसात करो इन संदेशों को,जो भगवान महावीर ने हमें दिए हैं।

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